बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में बदल गया चुनावी चर्चा का अंदाज  
 
  
 
  
 
व्यास चंद्र, पटना। बिहार का चुनाव बतकही और रोचक किस्सों का अखाड़ा रहा है। अंतर मात्र इतना है कि पहले यह गांव की चौपालों और पान की दुकानों तक सीमित था, जबकि आज यह मोबाइल स्क्रीन और इंटरनेट मीडिया की टाइम-लाइन तक पहुंच चुका है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
 
पुराने जमाने के चुनाव और आज के हाईटेक चुनावों के बीच तुलना करने पर यह बदलाव साफ नजर आता है। पहले के चुनाव में चौपाल सबसे बड़ी खबरों का अड्डा होती थी।  
 
  
 
लालटेन की रोशनी में लोग इकट्ठा होकर चर्चा करते थे कि किस नेता ने कहां भाषण दिया, किसने कितना वादा किया और किसने किसे पटखनी दी। उस दौर में नेता जी साइकिल, बैलगाड़ी या जीप से प्रचार करने निकलते और सीधे गांव के चौक-चौराहे पर रुककर हाथ मिलाते थे।  
 
यही नजदीकी वोटरों को लुभाने का सबसे बड़ा हथियार होती थी। कई बार सिर्फ खानदान और जातीय समीकरण के आधार पर प्रत्याशी को वोट मिल जाता। चुनावी मंच पर तुकबंदी और हाजिरजवाबी ज्यादा असर डालती थी।  
 
  
 
लोग कहते थे, नेताजी हमारे खेत में भी बैठे थे, बहुत बड़े दिल के हैं। आज का मतदाता कहता है, नेताजी ने मेरे पोस्ट का जवाब दिया और यही उसकी नई चुनावी उपलब्धि बन जाती है। अब के चुनाव में तस्वीर पूरी तरह बदल गई है।  
सोशल मीडिया ने चौपाल की जगह  
 
गांव की चौपाल की जगह अब वाट्स-एप ग्रुप, फेसबुक और एक्स ने ले ली है। नेताजी अब बैलगाड़ी से नहीं, बल्कि हेलीकाप्टर और हाईटेक रथ से गांव पहुंचते हैं। भाषण में तुकबंदी की जगह पैकेज, योजनाएं और आरोप-प्रत्यारोप ने ले ली है।  
 
  
 
जातीय समीकरण अब भी महत्वपूर्ण है, लेकिन युवा मतदाता अब नौकरी, शिक्षा और विकास को लेकर प्रश्न करते हैं। चर्चा का अंदाज भी बदल गया है। पहले चुनावी मजाक पान की दुकानों और गांव की गलियों तक ही सीमित रहता था, लेकिन अब वही मजाक फेसबुक लाइव और इंस्टाग्राम रील्स में वायरल हो जाता है। पहले जीत के बाद मिठाई और भोज की प्रतीक्षा होती थी, अब जीत के जश्न के वीडियो और ट्वीट वायरल होते हैं।  
 
  
 
दरअसल, चर्चा का स्वरूप भले ही बदल गया हो, लेकिन बिहार चुनाव का मिजाज आज भी वैसा ही है : रोचक, मनोरंजक और रंगीन। फर्क बस इतना है कि पहले चर्चा मुंह से कान तक चलती थी, अब स्टेटस से टाइमलाइन तक पहुंच गई है।  
लाइक-शेयर रखता है अहम   
 
आज की चर्चा यही है कि किस नेता ने किसका पोस्ट लाइक किया, किसका ट्वीट रि-ट्वीट किया और किसे रिप्लाई दिया। यह रिप्लाई मतदाता के लिए वैसा ही गर्व का पल बन जाता है, जैसा पहले किसी बड़े नेता का हाथ मिलाना या घर आना हुआ करता था।  
 
  
 
इंटरनेट मीडिया ने गॉसिप का तरीका ही बदल दिया है। अब हैशटैग ट्रेंड की चर्चा होती है। यूं कहें कि चुनावी चर्चा अब रियलिटी से ज्यादा वर्चुअल रियलिटी में बिखरी रहती है।  
 
आज की राजनीति ने पारंपरिक चौपाल को डिजिटल चौपाल में बदल दिया है। फर्क बस इतना है कि पहले नेता से सीधी मुलाकात पर गर्व होता था और अब इंटरनेट मीडिया पर लाइक और रिप्लाई ही नई राजनीतिक निकटता का प्रतीक बन गए हैं।  
 
  
 
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