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Uttarakhand Rajat Jayanti: उत्तराखंड गठन से पहले बढ़ी राजनीतिक चेतना, बाद में पिथौरागढ़ बना सियासत का केंद्र

LHC0088 2025-11-9 00:37:22 views 507

  

पिथौरागढ़ बना सियासत का केंद्र. File



जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़ । उत्तराखंड राज्य गठन से पहले ही सीमांत जनपद पिथौरागढ़ में राजनीतिक चेतना आकार लेने लगी थी। राज्य आंदोलन के दौर ने यहां की राजनीति को नई दिशा दी। राज्य गठन के बाद यह चेतना और प्रबल हुई और जिले ने कई बड़े नेताओं को प्रदेश की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाते देखा।

राज्य बनने से पूर्व पिथौरागढ़ ने उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) के संस्थापक काशी सिंह ऐरी को विधानसभा भेजा। वे राज्य निर्माण से पहले और बाद, दोनों दौरों में उत्तराखंड की राजनीति के केंद्रीय चेहरों में रहे। राज्य गठन के बाद जिले ने एक अनूठा इतिहास भी रचा राजी जनजाति जैसी एक हजार से भी कम जनसंख्या वाली जनजाति के प्रतिनिधि को दो बार विधानसभा भेजा गया। इसी जिले की धारचूला विधानसभा सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने जीत हासिल की और आगे चलकर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

वहीं, पिथौरागढ़ सीट से चुने गए स्व. प्रकाश पंत राज्य के पहले और सबसे कम उम्र के विधानसभा अध्यक्ष बने। उनकी सादगी और कार्यशैली ने उन्हें प्रदेश की राजनीति में अलग पहचान दिलाई। कांग्रेस के युवा नेता मयूख महर भी जिले की राजनीति में एक मजबूत चेहरा बनकर उभरे। विधायक बनने के बाद उन्होंने अपनी ही सरकार के विरुद्ध गांधी चौक, पिथौरागढ़ में धरना दिया। उनके संघर्ष के आगे सरकार को झुकना पड़ा और उनकी मांगे स्वीकार करनी पड़ीं, जिनका असर आज धरातल पर दिख रहा है। राज्य गठन से पहले उक्रांद जिले की प्रमुख राजनीतिक ताकत थी और कांग्रेस के बाद दूसरा बड़ा दल माना जाता था, लेकिन राज्य बनने के बाद धीरे-धीरे उसका जनाधार घटता गया और अब दल हाशिये पर पहुंच चुका है।

वहीं, इस अवधि में भाजपा का प्रभाव लगातार बढ़ता गया, जो वर्तमान समय तक जिले की राजनीति में मजबूती से बरकरार है। आज जिले में भाजपा और कांग्रेस ही मुख्य राजनीतिक दल के रूप में मौजूद हैं, जबकि अन्य दलों का प्रभाव सीमित रह गया है।

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