क्या 50 साल बाद बनेगी शोले 2
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। इस साल ब्लॉकबस्टर फिल्म शोले ने अपनी रिलीज के 50 साल पूरे कर लिए हैं। इस मौके पर इस फिल्म को ओरिजिनलक्लाईमैक्स के साथ जागरण फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित किया गया। इस मौके पर रमेश सिप्पी ने कई दिलचस्प बातें साझा कीं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इस बार जागरण फिल्म फेस्टिवल में \“शोले\“ को प्रदर्शित किया गया। वहां पर दर्शकों में इसे लेकर काफी उत्साह दिखा....
चार्म तो बरकरार है। सब पूछते हैं कि यह आप दोबारा क्यों नहीं बनाते हैं। मेरा जवाब होता है कि पहली बार जो बनाई वो नहीं भूल पा रहे तो दूसरी बार कैसे बनाऊं। एक बार जब इतने सारे बेहतरीन कलाकार, सलीम खान-जावेद अख्तर की बेहतरीन स्क्रिप्ट पर फिल्म बन गई तो मुझे लगता है कि दोबारा इसे बनाने का मतलब नहीं बनता है। यह जैसी है, वैसी रहने दें।
यह भी पढ़ें- एक आदत जिसने ले ली Sanjeev Kumar की जान, महज 47 की उम्र में हो गई थी शोले के \“ठाकुर\“ की मौत!
अब फिल्म के रीस्टोरवर्जन को मूल अंत के साथ लाने की तैयारी है....
\“शोले\“ का क्लाईमैक्स पूर्व पुलिस अधिकारी ठाकुर बलदेव सिंह द्वारा डाकू गब्बर सिंह को नुकीले जूतों से मारकर बदला लेने के तौर पर शूट हुआ था। फिल्म के इस क्लाइमेक्स से नाखुश केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने क्लाईमैक्स बदलने को कहा। मैंने कहा कि आप यह तो कहना चाहते हैं कि मेकर्स फिल्म को अच्छी तरह बनाए, लेकिन खून को कम करके फिर भी प्रभाव ले आए तो आप मेकर को सही करने के लिए सजा दे रहे हैं। लेकिन उस वक्त ज्यादा बहस नहीं कर सकते थे, तब देश में इमरजेंसी लगी थी। सो हमने क्लाईमैक्स बदला और गब्बर को पुलिस पकड़कर ले गई।
\“शोले\“ की शूटिंग खत्म करने के अगले दिन आप, अमजद खान और उनकी पत्नी किसी टैरो कार्ड रीडर से मिलने भी गए थे?
हां गए थे, लेकिन किसी डर से नहीं गए। वो भविष्य की जानकारी देते हैं। उन्होंने कहा कि फिल्म पांच साल चलेगी। हमने कहा कि फिल्म चल जाए, हमारे लिए यही काफी है। उनकी भविष्यवाणी सही निकली। पर उन्होंने और कितनी भविष्यवाणी की थी यह तो हमें भी नहीं पता।
फिल्म की कहानी पहले तो सैन्य अधिकारी की थी...
हमारे पास दो लाइन की कहानी आई थी। तब पुलिस आफिसर की जगह वह आर्मीआफिसर था। आर्मी को इसलिए छोड़ दिया क्योंकि परमिशन में दिक्कत आएगी तो उसे पुलिस अधिकारी में बदला। आइडिया में कोई बदलाव नहीं किया। उस आइडिया को सलीम-जावेद और हमने बनाया। सलीम-जावेद ने बेहतरीन स्क्रिप्ट तैयार की। कास्टिंग भी आसानी से हो गई। उस समय डकैत की फिल्में उत्तर भारत में बनती थीं राजस्थान या उत्तर प्रदेश के इलाकों में। जब मैंने साउथ की लोकेशन देखी तो लगा कि यह हटकर होगी। वहां शूट किया, चट्टानों के बीच यह सब हो रहा था तो उसका अपना योगदान था। हर चीज सही जगह बैठने लगी। पर इसका यह मतलब नहीं कि यह बनाना आसान हो गया था।
कामयाबी की मिसाल है \“शोले
एक-एक सीक्वेंस पर 20-25 दिन लग रहे थे। फिल्म बनने में 300 दिन लग गए। पूरी मेहनत की। कलाकारों से लेकर तकनीशियन तक सबने दिल लगाकर काम किया। पंचमदा और आनंद बख्शी साहब का गीत-संगीत सोने पर सुहागा रहा।
\“शोले\“ की सफलता में कहीं न कहीं आपकी बाकी फिल्में दब गई...
मुझे तो लगा कि मेरी बाकी फिल्में ऐसी बनीं कि सभी को सफलता मिली, लेकिन \“शोले\“ हटकर हो गई। दूसरी फिल्में अपनी जगह सही थीं। \“शोले\“ को छोड़ दें तो उन फिल्मों ने भी अच्छी कमाई की। \“शक्ति\“ ब्लाकबस्टर नहीं थी। पिता पुत्र का ड्रामा थी। जितना ड्रामा होता है वो सब उसमें था। लोगों को पसंद आई। मुंबई में एक महिला थीं जो दोपहर के खाने के बाद पड़ोसियों के साथ रोजाना \“शक्ति\“ देखती थीं। मेरी हर फिल्म को उसका हक मिला।
संजीव कुमार को कैसे याद करते हैं ?
बहुत ही प्यारे कलाकार थे। \“सीता और गीता\“ के साथ राजेश खन्ना और मुमताज के साथ बनी मेरी फिल्म \“बंधन\“ में उन्होंने मेहमान भूमिका निभाई थी। हमारा रिश्ता अच्छा था। दुर्भाग्य से वह और अमजद खान दोनों ही जल्दी दुनिया को अलविदा कह गए। काश दोनों की लंबी उम्र होती।
अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से फिल्मों का क्लाईमैक्स बदला जा सकता है। \“रांझणा\“ इसका उदाहरण है। आप इसे कैसे देखते हैं...
मैं जानता हूं \“रांझणा\“ के बारे में। निर्माता मालिक है वो अलग बात है, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए था। डायरेक्टर को साथ लेना चाहिए। एआई की मदद से कुछ करना भी है तो निर्देशक को साथ ले लो। अगर उन्हें क्लाईमैक्स सही लगा तो मिलकर फैसला हो जाएगा। वो क्यों नहीं चाहेगा कि फिल्म के प्रति दोबारा उत्साह पैदा हो।
यह भी पढ़ें- \“जेलर बनने के लिए हुआ था जन्म,\“ Asarani के निधन से टूटा \“शोले डायरेक्टर का दिल, किरदार को लेकर खोले राज |