खेल परिसर का टूटा पड़ा गेट। जागरण
जागरण संवाददाता, नारनौल। शिक्षा के प्रसार के लिए जाने वाले बाबा खेतानाथ की जन्मस्थली जिला के सिहमा गांव में खिलाड़ियों के उत्साह को नई उड़ान देने के लिए वर्ष 2012 में लाखों करोड़ों रुपये की लागत से बना राजीव गांधी खेल परिसर आज अपनी उपेक्षा पर आंसू बहा रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
सरकार की महत्वाकांक्षी योजना और जमीनी हकीकत के बीच का यह फर्क अब बदहाली के रूप में ग्रामीणों के सामने खड़ा है। ग्रामीण युवाओं को खेलों से जोड़ने की मंशा से बनाया गया यह स्टेडियम अब उपेक्षा और अव्यवस्था की मिसाल बन चुका है। इसका सबसे बड़ा कारण है सरकारी अनदेखी और गैर मानिटरिंग के चलते यह हाल स्टेडियम का हुआ है।
कहने को तो यहां एक ग्राउंड मेन और एक कोच की तैनाती है और यहां विभाग के कागजों में जिम्नास्टिक खेल का अभ्यास कराए जाते हैं। साथ ही विभाग की ओर से अनुबंध में यहां एथेलिटिक्स की एक प्राइवेट नर्सरी भी संचालित हैं। लेकिन जागरण संवाददाता की ओर से की गई पड़ताल में सारे दावे खोखले साबित हुए। परिसर की खंडहर हो चुकी इमारत ऐसी प्रतीत हो रही थी जैसे असामाजिक तत्वों का यह अड्डा बन चुका था।
सड़क से परिसर तक बदहाली की कहानी
दैनिक जागरण की पड़ताल में पाया कि खेल परिसर की बदहाली की शुरुआत गांव से स्टेडियम तक जाने वाली जर्जर सड़क से ही हो जाती है। उखड़ी हुई सड़क और गड्ढों से भरा रास्ता खेल परिसर तक पहुंचने से पहले ही खेल भावना को ठंडा कर देता है। मुख्य द्वार टूटा हुआ है और उसके आसपास उगी ऊंची झाड़ियां यह साबित करती हैं कि रखरखाव नाम की कोई चीज यहां बाकी नहीं।
जब खेल परिसर के मुख्य द्वार से जब अंदर प्रवेश करते हैं तो सबसे पहले ग्राउंड मैन की कार्यशैली पर सवाल उत्पन्न होते हैं। कहने को तो यहां एक ग्राउंड मैन की तैनाती है, लेकिन उनकी कार्यशैली बास्केटबाल कोर्ट को देखकर साफ झलकती है। टूटी फर्श, जगह-जगह झाड़ियां और बिखरी मिट्टी मानो यह कह रही हों कि खेल यहां नहीं, खामोशी खेलती है।
स्टेडियम के बीचोंबीच से गुजर रही हाइटेंशन लाइन भी किसी बड़े हादसे को दावत दे रही है। वर्षों पुरानी यह लाइन अब जर्जर हालत में है, जिससे खिलाड़ियों की सुरक्षा पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। जब आगे बढ़ते हैं तो स्टेडियम का भवन अपनी कहानी खुद बयां करता है। टूटी खिड़कियां, उखड़े दरवाजे, दीवारों पर गंदगी और बदबू से भरे कमरे व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं।
इनडोर व्यायामशाला नाम मात्र की रह गई है, जहां उपकरणों के पुर्जे बिखरे पड़े हैं। भवन के कुछ दरवाजों पर ताले जरूर लगे हैं, पर वे भी आधे टूटे हुए हैं। ग्रामीण बताते हैं कि सर्दी में लोग दरवाजे तोड़कर अंदर आग जलाते रहे हैं, जिसके निशान अब भी परिसर में मौजूद हैं। वहीं स्वच्छता मिशन की धज्जियां उड़ाते हुए स्टेडियम के शौचालयों की हालत सबसे बदतर है। एक फीट तक गंदगी जमा है। सफाई का नामोनिशान तक नहीं दिखता।
युवाओं की उम्मीदें धूमिल
सरकार की मंशा ग्रामीण युवाओं को खेलों से जोड़ने की थी, मगर लापरवाही और उपेक्षा ने इस योजना को ध्वस्त कर दिया है। खेल मैदान वीरान पड़ा है और जिन युवाओं को यहां से आगे बढ़ना था, वे अब निराशा के साए में हैं। खेलप्रेमियों का कहना है कि विभाग को तुरंत इस स्टेडियम की सुध लेनी चाहिए।
नियमित सफाई, टूटे हिस्सों की मरम्मत और सुरक्षा इंतजाम किए जाएं, ताकि गांव के खिलाड़ी दोबारा इस स्टेडियम में खेल सकें और राजीव गांधी खेल स्टेडियम फिर से अपनी पहचान पा सके।
विभाग की ओर से जिले के सभी राजीव गांधी खेल स्टेडियम के लिए करीब एक करोड़ दस लाख का बजट जारी हो चुका है। पीडब्ल्यूडी बीएंडआर विभाग के समक्ष टेंडर प्रक्रिया जारी है, जिससे इन स्टेडियमों की मरम्मत होगी। -
दलेल सिंह, उप अघीक्षक, खेल विभाग, नारनौल |