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Mokama Murder: मोकामा में लोकतंत्र की बयार पर रंजिश की चिंगारी, दुलारचंद यादव की हत्या से तनाव

deltin33 4 day(s) ago views 1156

  

मोकामा में लोकतंत्र की बयार पर रंजिश की चिंगारी, दुलारचंद यादव की हत्या से तनाव



संवाद सूत्र, मोकामा। बाढ़ और मोकामा का इलाका दशकों से चुनावी रंजिश और हिंसा के लिए कुख्यात रहा है। बिहार की राजनीति में यह क्षेत्र उस कालखंड से लेकर आज तक चर्चा में रहता आया है, जब चुनाव जनसेवा से अधिक बाहुबल और दबंगई के अखाड़े में बदल जाते थे। दुलारचंद यादव की हालिया हत्या के बाद एक बार फिर इसी खूनी इतिहास की परतें खुलने लगी हैं।  विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

स्थानीय राजनीतिक समीकरणों और जातीय खींचतान ने इस क्षेत्र के चुनावी माहौल को हमेशा तनावपूर्ण बनाया। नब्बे के दशक के पूर्व भी यहां चुनावी झड़पों में कई निर्दोषों की जान जा चुकी थी। गांवों तक पहुंच मार्गों की कमी और संचार साधनों के अभाव में उस दौर की अधिकांश घटनाएं न तो पुलिस के दस्तावेजों तक पहुंच पाईं और न ही अपराधियों को सजा मिल सकी।

1991 के लोकसभा उपचुनाव में हिंसा ने बड़ा रूप लिया था। मतदान के दिन कांग्रेस के पोलिंग एजेंट सीताराम सिंह की हत्या कर दी गई। घटना के बाद पोलिंग बूथ पर अंधाधुंध फायरिंग हुई, जिसमें करीब आठ लोग गंभीर रूप से जख्मी हो गए। इस वारदात ने पूरे इलाके में दहशत फैलाने के साथ-साथ चुनावी निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े कर दिए थे।

वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में भी हिंसा का दौर नहीं थमा। बाहुबलियों की रंजिश ने भावनचक गांव को रणक्षेत्र बना दिया। यहां सैकड़ों राउंड फायरिंग की गई और बच्चू सिंह सहित कई और लोगों की हत्या कर दी गई। इस घटना ने उस समय की प्रशासनिक व्यवस्था को हिलाकर रख दिया था।

2005 के विधानसभा चुनाव भी खून-खराबे से मुक्त नहीं रहे। बड़हिया की सीमा पर बसे नौरंगा-जलालपुर गांव में बाहुबली समर्थकों ने तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इस चुनावी हिंसा में गोपाल, सलवीर और भोसंगवा की जान चली गयी।

इन सिलसिलेवार हत्याओं ने साफ कर दिया कि बाढ़-मोकामा क्षेत्र में चुनाव का अर्थ सिर्फ मतदान नहीं, बल्कि सत्ता की होड़ में जान की बाजी लगाना भी है। हाल के वर्षों में चुनाव आयोग ने सख्ती और इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन की पारदर्शिता से हिंसा पर नियंत्रण पाया है।

साथ ही पगदंडी की जगह सड़क मार्ग से बूथों तक पहुंचना, पुलिस के साथ अर्ध सैनिक बलों की तैनाती, लगतार गश्ती, आसमाजिक तत्वों नकेल कसना, नियंत्रण कक्ष, वीडियो सर्विलांस जैसी तकनीकों ने घटनाओं पर रोक में मदद की। बावजूद इसके टाल क्षेत्र में रंजिश की आग बुझी नहीं, बल्कि सुलगती रहती है।

30 अक्टूबर को जसुपा के प्रचार अभियान के दौरान दुलारचंद यादव हत्या कांड इस सिलसिले की नई कड़ी बन गई। गोलीबारी की इस घटना के बाद इलाके में फिर से भय और सन्नाटा पसरा है। स्थानीय लोगों की मानें तो वर्षों से चली आ रही राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और निजी दुश्मनी जब चुनावी मैदान में उतरती है, तो नतीजा बेहतर नहीं हाेते हैं। एक बार फिर यह रंजिश का रण बन गया है।

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