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साहित्य सृजन को बढ़ावा देगी यह पहल : प्रसून जोशी

deltin33 3 hour(s) ago views 970

  

हिंदी कवि, लेखक, पटकथा लेखक और भारतीय सिनेमा के गीतकार प्रसून जोशी। फाइल फोटो



डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। लोकप्रिय गीतकार, लेखक प्रसून जोशी ने दैनिक जागरण के साहित्य सृजन सम्मान को साहित्य को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि आज जब मानव स्वभाव में एकाग्रता अल्प है। उसमें साहित्य को ठहरकर बैठकर, सुनने व पढ़ने के लिए ऐसे पर्याप्त प्रयासों की आवश्यकता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

उन्होंने भाषाओं को संस्कृति की रीढ़ बताते हुए कहा कि जब तब हम अपनी उन मौलिक भाषाओं को जिसमें विचार आते हैं, उसके लेखकों को सम्मानित नहीं करेंगे, तो मौलिक विचारों के नहीं बचने का खतरा रहेगा। साथ ही चेताते हुए कहा कि साहित्य कुआं और पाठक प्यासा है।
पाठक को साहित्य तक जाना चाहिए: प्रसून जोशी

प्रसून जोशी के अनुसार, हमेशा पाठक को साहित्य के पास जाना चाहिए। साहित्य को खुद पाठकों तक जाना सही नहीं है। मौजूदा वक्त में रचना और सृजनात्मक में मूर्ति भंजना और परंपराओं को तोड़ने के चलन पर चिंता जताते हुए कहा कि सिर्फ मूर्ति भंजना, परंपराओं को तोड़ना, उसे नहीं रहना देना, रचना नहीं है। साधना व धैर्य की प्रशंसा हमारी संस्कृति का हिस्सा है। हमारी भाषा संस्कृति में साहित्य बिकाऊ नहीं है।
जागरण के पूर्व प्रधान संपादक नरेन्द्र मोहन की सराहना

प्रभात प्रकाशन के निदेशक प्रभात कुमार ने दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान संपादक नरेन्द्र मोहन जी को विराट व्यक्तित्व का बताते हुए कहा कि वह जितने बड़े लेखक, पत्रकार व संपादक थे, उतने ही सहज थे। मुलाकात में कभी नहीं लगा कि मैं इतने विराट व्यक्तित्व के सामने बैठा हूं। वह कलम के धनी थे, राष्ट्रीय विचारों के प्रवर्तक और राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक थे। सनातन का जयघोष करते उनके संपादकीय निर्भीक पत्रकारिता के प्रतीक थे। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन हो या राष्ट्रीय भावभूमि का कोई प्रसंग, उनका प्रखर लेखन उन विषयों पर पूरी स्पष्टता से भारतीय दृष्टि प्रस्तुत करके पाठकों को सही संदर्भ व परिप्रेक्ष्य बताने में सहायक होता था। उनकी पहली पुस्तक भारतीय संस्कृति, भारतीय संस्कृति में आस्था व निष्ठा का प्रमाण है। वह शब्दों के जादूगर थे। उनपर मां सरस्वती का वरदहस्त था।

दैनिक जागरण के कार्यकारी संपादक विष्णु प्रकाश त्रिपाठी ने अपने संबोधन में कहा कि नरेन्द्र मोहन जी ने पत्रकारिता व साहित्यकारिता के बीच की सीमा रेखा को न्यून किया और उसका एकीकरण किया, क्योंकि दोनों का समाज, राष्ट्र, संस्कृति, विचार का हित चिंतन एक है। नरेन्द्र मोहन जी के हित चिंतन में वर्तमान व भविष्य के साथ सब समाहित हो जाता था। यह विशेषता उनके व्यक्तित्व को विराट बनाती थी। उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोहन जी को हिंदी के प्रति आग्रह विरासत में मिला। इस मौके पर उन्होंने हिंदी को बढ़ावा देने पर पीएम मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह के योगदान की प्रशंसा की।

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