बिहार के रोहतास में निर्माणाधीन 13 करोड़ रुपए की लागत वाला रोपवे शुक्रवार को ट्रायल के दौरान ही ढह गया। रोपवे का पोल और ट्रॉली अचानक गिर गए। रोपवे का निर्माण रोहतास ब्लॉक हेडक्वार्टर को ऐतिहासिक चौरासेन मंदिर से जोड़ने के लिए किया जा रहा था, जिससे पर्यटकों के लिए यह दुर्गम रास्ता आसन हो सके। इसका उद्घाटन नए साल में होना था।
अधिकारियों ने बताया कि परीक्षण के दौरान पोल भार सहन नहीं कर सका, जिसके कारण वह ट्रॉली सहित गिर गया। राहत की बात ये रही कि उस समय ट्रॉली पर कोई नहीं था, जिससे कोई हताहत नहीं हुआ। रोपवे का तार भी टूटकर जमीन पर गिर गया।
क्वालिटी और सुरक्षा मानकों पर सवाल उठे
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रोपवे दुर्घटना के बाद स्थानीय निवासियों ने रोपवे प्रोजेक्ट की क्वालिटी और सुरक्षा मानकों पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने इस घटना के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
हर साल हजारों श्रद्धालु और पर्यटक ऐतिहासिक रोहतासगढ़ किले और चौरासान मंदिर देखने आते हैं। रोपवे से इन स्थलों तक पहुंच आसान होने, पर्यटन को बढ़ावा मिलने और स्थानीय अर्थव्यवस्था को सहारा मिलने की उम्मीद थी। हालांकि, दुर्घटना के बाद परियोजना पर काम रोक दिया गया है, जिससे इसके खुलने में और देरी होने की आशंका।
LJP विधायक मुरारी प्रसाद गौतम ने इस घटना की निंदा करते हुए विभाग और प्रोजेक्ट में शामिल इंजीनियरों पर लापरवाही का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि पोल के निर्माण के दौरान गुणवत्ता मानकों का पालन नहीं किया गया, जिसके कारण पोल गिर गया। विधायक ने गहन जांच और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
चौरासन मंदिर तक पहुंचने के लिए चढ़नी पड़ती हैं 84 सीढ़ियां
रोहतास जिले में स्थित चौरासन मंदिर एक प्राचीन शिव मंदिर है। श्रद्धालु 84 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर तक पहुंचते हैं। ऐसा माना जाता है कि राजा हरिश्चंद्र ने यज्ञ करने के बाद इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
यह मंदिर रोहितेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर तक जाने वाली 84 सीढ़ियों के कारण इसका नाम “चौरासन“ पड़ा है और इसे स्थानीय भाषा में “चौरासन सिद्धि“ कहा जाता है।
मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
मान्यता के अनुसार, राजा हरिश्चंद्र ने सातवीं शताब्दी ईस्वी में पुत्र प्राप्ति के लिए इस जगह पर 84 यज्ञ किए थे। पुत्र रोहितश्व की प्राप्ति के बाद, उन्होंने इस स्थान पर मंदिर का निर्माण करवाया। यह स्थान धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है और साल भर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं।
बादल छाए रहने के दिनों में, मंदिर और आसपास की पहाड़ियां अक्सर कोहरे से ढकी रहती हैं, जो धार्मिक कारणों और प्राकृतिक सौंदर्य दोनों के लिए पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।
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