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Hemant 2.0: मजबूत जनादेश का पहला वर्ष, मंइयां सम्मान योजना ने बढ़ाई लोकप्रियता

Chikheang 2025-11-27 22:37:02 views 754

  



प्रदीप सिंह, रांची। एक साल पहले झारखंड विधानसभा चुनाव के परिणामों ने पूरे देश को चौंका दिया था। भाजपा देश के कई राज्यों में सत्ता पर काबिज हो रही थी, लेकिन झारखंड में बुरी तरह हार गई।झारखंड मुक्ति मोर्चा(झामुमो) के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने 81 में से 56 सीटें जीतकर अपार बहुमत हासिल किया। यह हेमंत सोरेन के अब तक के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी जीत थी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

जेल से बाहर आने के सिर्फ चार-पांच महीने बाद ही उन्होंने न केवल अपने दल की सीटें बढ़ाई, बल्कि पूरे गठबंधन को अभूतपूर्व सफलता दिलाई। जनता ने उन्हें सिर्फ सत्ता नहीं, एक मजबूत और भावनात्मक जनादेश दिया था।

हेमंत 2.0 सरकार ने अपने पहले साल में खुद को स्थिर, तेज और जन केंद्रित साबित किया है। घाटशिला उपचुनाव में झामुमो की रिकार्ड जीत इसका सबसे ताजा प्रमाण है। भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) राज्य में लगातार हार के बाद बैकफुट पर है।

दूसरी ओर Hemant Soren ने गठबंधन के भीतर एकछत्र नेतृत्व स्थापित कर लिया है। पार्टी ने उन्हें औपचारिक रूप से केंद्रीय अध्यक्ष बना दिया। विरोधियों के हर हमले का उन्होंने आक्रामक, लेकिन परिपक्व जवाब दिया। नतीजा यह कि आज झारखंड की राजनीति में उनके कद के आसपास भी कोई नहीं है।  
योजनाओं का धरातल पर उतरना

सरकार ने वादों को पूरा करने में असाधारण तेजी दिखाई है। मंइयां सम्मान योजना के तहत 52 लाख से ज्यादा महिलाओं को हर महीने 2,500 रुपये मिल रहे हैं। योजना इतनी लोकप्रिय हुई कि छत्तीसगढ़, ओडिशा जैसे पड़ोसी राज्यों समेत अन्य प्रांतों ने भी इसी तर्ज पर योजनाएं शुरू कीं।

गुरुजी स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड से 1.20 लाख से ज्यादा छात्रों ने चार प्रतिशत ब्याज पर 15 लाख तक लोन के लिए आवेदन किया। सावित्रीबाई फुले किशोरी समृद्धि योजना से 10 लाख से अधिक लड़कियां लाभान्वित हुईं।

यूनिवर्सल पेंशन स्कीम के तहत सभी 60 उम्र के लोगों को 1,000 रुपये (एससी-एसटी एवं विधवाओं को 1,500) मासिक पेंशन शुरू हुई। 8.30 लाख नए राशन कार्ड, 5.40 लाख नए पीएम आवास स्वीकृत (1.10 लाख पूरे) हुए।

12,000 किमी से ज्यादा ग्रामीण सड़कें स्वीकृत हुई, जिसमें 7,000 किमी से अधिक बन चुकीं हैं। इन योजनाओं ने गठबंधन की जमीन को और मजबूत किया है।
सबसे बड़ा व्यक्तिगत संकट

इस साल की सबसे दुखद घटना रही दिशोम गुरु शिबू सोरेन का निधन। झारखंड आंदोलन के पुरोधा और हेमंत सोरेन के पिता की कमी को कोई नहीं भर सकता। उनके जाने से पूरे राज्य में भावनात्मक शून्य पैदा हो गया।

हेमंत सोरेन के लिए यह दोहरा संकट था। व्यक्तिगत अपार दुख और उस विशाल राजनीतिक छांव के बिना आगे बढ़ने की चुनौती उनके समक्ष थी। दिशोम गुरु के निधन के बाद हेमंत सोरेन ने संयम और परिपक्वता का परिचय दिया। यह दौर उनके राजनीतिक जीवन का सबसे कठिन परीक्षा काल था और उन्होंने इसे उत्तीर्ण कर लिया।
अभी बाकी है चुनौतियां

सफलताओं के बावजूद कई मोर्चे पर अब भी चुनौतियां हैं। खनन राजस्व का बड़ा हिस्सा अभी भी केंद्र के पास जाता है; राज्य का कोल रायल्टी बकाया अब भी नहीं मिला। स्वास्थ्य और शिक्षा में अभी लंबा रास्ता तय करना है।

हेमंत 2.0 का पहला साल स्थिरता, विश्वसनीयता और जनता के भरोसे को बनाए रखने का साल रहा। एक साल में हेमंत सोरेन ने साबित कर दिया कि वे झारखंड की सत्ता पर मजबूती से कायम हैं। विशाल जनादेश को देखते हुए कल्याणकारी योजनाओं की गति बरकरार रखनी होगी। इससे आगे का उनका मार्ग और प्रशस्त होगा।
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