search

NDA के आगे क्यों नहीं टिका महागठबंधन? सामने आई बिहार चुनाव रिजल्ट की इनसाइड स्टोरी

cy520520 2025-11-14 23:13:11 views 569
  



अरुण अशेष, पटना। सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन-दोनों के लिए विधानसभा चुनाव की जीत-हार अप्रत्याशित है। याद कीजिए। जदयू ने नारा दिया था-2025 में 225। एनडीए के घटक दलों-भाजपा, लोजपा (रा), हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने इस लक्ष्य को स्वीकार किया, लेकिन गृह मंत्री अमित शाह जब चुनाव प्रचार में आए, उन्होंने इस लक्ष्य को 160 पर लाकर स्थिर कर दिया। फिर एनडीए के किसी गंभीर नेता ने 225 के लक्ष्य को प्रचारित नहीं किया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

यह नारा अंत समय तक चलेगा-एक बार फिर एनडीए सरकार। मगर, परिणाम बता रहा है कि जीत के लक्ष्य के लिए एनडीए ने प्रारंभिक तौर पर जो तय किया था, जनता ने उसके समर्थन में ही मतदान किया। जीत और हार के कई कारण होते हैं। हर पक्ष अपनी सुविधा के अनुसार इसे प्रस्तुत करता है। फिर भी कुछ चीजें बहुत साफ हैं।

एक यह कि आम लोगों ने महागठबंधन की तुलना में एनडीए की घोषणाओं पर भरोसा किया, जबकि मात्रा में महागठबंधन की लाभकारी घोषणाएं एनडीए से अधिक थीं। दोनों गठबंधनों ने उम्मीदवारों के चयन में सामाजिक संतुलन का पूरा ख्याल रखा। महागठबंधन ने उन सामाजिक समूहों को भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया, जिन्हें वोट देने की प्रवृति के आधार पर एनडीए का समर्थक माना जाता है।

ये अति पिछड़ी, कुशवाहा और वैश्य समुदाय के लोग हैं। महागठबंधन ने सवर्णों को भी पर्याप्त उम्मीदवारी दी, जिन्हें सामान्य तौर पर एनडीए का हमदर्द माना जाता है। इसके बावजूद वोटों का विभाजन लक्ष्य के अनुरूप नहीं हुआ। यह 2020 के स्तर को भी नहीं छू पाया, जब महागठबंधन के दलों की 243 में से 110 सीटों पर जीत हुई थी।

यहां तक कि महागठबंधन लोकसभा चुनाव की अपनी उपलब्धि को कायम नहीं रख पाया। लोकसभा चुनाव में एक निर्दलीय सहित विपक्ष की 10 सीटों पर जीत हुई थी। एक लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा सीट के हिसाब से विधानसभा चुनाव में भी महागठबंधन को कम से कम 60 सीटें मिलनी चाहिए थी। वह नहीं मिली। चुनाव में सुनियोजित प्रचार के मोर्चे पर महागठबंधन कमजोर नजर आ रहा था।

भाजपा का बूथ स्तर पर सघन प्रचार था। महागठबंधन के सबसे बड़े प्रचारक विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव थे। उन्होंने जबरदस्त प्रचार किया। उनकी यह कमजोरी साबित हुई कि हर सभा में विस्तार से अपना पक्ष नहीं रख पाए। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी मेहमान की तरह प्रचार के लिए आ-जा रहे थे। महागठबंधन और खासकर राजद एनडीए के उस आरोप का जवाब नहीं दे पाया कि अगर उन्हें (महागठबंधन) सत्ता मिली तो जंगलराज कायम हो जाएगा।

असल में महागठबंधन की चुनावी रणनीति 1990-2005 के मंडल के उत्कर्ष के दौर और बदली हुई सामाजिक स्थिति के बीच तालमेल नहीं बिठा पाई। इसमें कोई दो राय नहीं कि तेजस्वी यादव ने अपने संबोधन में शालीनता का पूरा ध्यान रखा।उन्होंने कभी सामाजिक विभाजन की बात नहीं की। किसी समूह को दुखी करने का प्रयास नहीं किया, लेकिन जमीनी स्तर पर उतना ही शालीन व्यवहार उनके समर्थकों का नहीं रहा।

कई जगहों पर अपने व्यवहार से वे एनडीए के आरोप को पुष्ट ही कर रहे थे कि अवसर मिला तो प्रतिशोधात्मक कार्रवाई से बाज नहीं आएंगे। उनके कई नेताओं की देह और बोली की भाषा युवाओं को पसंद नहीं आ रही थी। विकासशील इंसान पार्टी और आइपीपी जैसी विशुद्ध जाति आधारित दलों को जोड़ने का भी महागठबंधन को लाभ नहीं मिल पाया।

सीटों के बंटवारे के दौरान कई अप्रिय प्रसंग आए। सहयोगी दलों ने तो टिकट का वितरण इस आत्मविश्वास के साथ किया, मानों टिकट नहीं, जीत का प्रमाण-पत्र बांट रहे हों। दूसरी तरफ एनडीए में सीटों का बंटवारा आसानी से हो गया। विपक्ष क्याें इतना कमजोर हो गया, सबसे पहले उसे इसी पर विचार करने की जरूरत है।
like (0)
cy520520Forum Veteran

Post a reply

loginto write comments
cy520520

He hasn't introduced himself yet.

410K

Threads

0

Posts

1410K

Credits

Forum Veteran

Credits
140061

Get jili slot free 100 online Gambling and more profitable chanced casino at www.deltin51.com