हथियारों की धाक हुई कम, शस्त्र लाइसेंस से लोगों का हो रहा मोहभंग

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खतरनाक साबित हो रहा,इंटरनेट मीडिया पर फोटो डालना। सांकेतिक तस्वीर  



स्कन्द कुमार शुक्ला, बस्ती। एक दौर था जब कंधे पर बंदूक या कमर में पिस्टल टांगना रसूख और शान का प्रतीक माना जाता था। लेकिन अब समय बदल रहा है। कभी हथियारों के लाइसेंस के लिए सिफारिशें लगवाने वाले लोग अब शस्त्र लाइसेंस से किनारा कर रहे हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

जिला प्रशासन के आंकड़ों और हालिया आवेदनों की स्थिति को देखें तो यह स्पष्ट है कि नए लाइसेंस बनवाने के प्रति उत्साह में भारी गिरावट आई है, वहीं पुराने लाइसेंस धारक भी अब शस्त्र सरेंडर करने की राह चुन रहे हैं। नवीनीकरण शुल्क की वजह से यह अब महंगा साबित हो रहा है।

यही कारण है कि उम्रदराज अवस्था में पहुंचने वाले लोग अब शस्त्र लाइसेंस का विरासतन स्थानांतरण न कर इसे निरस्त कराने के लिए आवेदन दे रहे हैं। शस्त्रों से मोहभंग के पीछे कई ठोस कारण हैं, मसलन नियमों की सख्ती से अब शस्त्र लाइसेंस मिलना कोई आसान प्रक्रिया नहीं रह गई है।

आपराधिक रिकार्ड की जांच से लेकर फायरिंग रेंज में ट्रेनिंग तक, मानक बेहद कड़े कर दिए गए हैं। सरकार ने हाल के वर्षों में लाइसेंस फीस और नवीनीकरण शुल्क में कई गुना वृद्धि की है। साथ ही, कारतूसों की बढ़ती कीमत और हथियारों के रखरखाव का खर्च मध्यम वर्ग की जेब पर भारी पड़ रहा है।

अब फेसबुक या इंस्टाग्राम पर हथियार के साथ फोटो डालना कूल नहीं, बल्कि खतरनाक\“\“ साबित हो रहा है। पुलिस द्वारा इंटरनेट मीडिया पर प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ तुरंत केस दर्ज करने और लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई ने भी शौकीनो के उत्साह को कम किया है। शादी-ब्याह और उत्सवों में हर्ष फायरिंग पर लगी पूर्ण रोक और सख्त कानूनी सजा के प्रावधानों ने हथियारों के सार्वजनिक प्रदर्शन का रास्ता बंद कर दिया है।

यह भी पढ़ें- डीएम ने अधिकारियों को लगाई फटकार, शिकायतों को गंभीरता से सुनने और समय से निस्तारित करने के निर्देश



आंकड़े दे रहे गवाही, 10 लाेगों ने निरस्त कराने का दिया आवेदन

पिछले तीन वर्षों के तुलनात्मक अध्ययन को देखें तो नए आवेदनों में 30 से 40 प्रतिशत की कमी आई है। जिला कलेक्ट्रेट के असलहा विभाग के सूत्रों का कहना है कि अब लोग नए लाइसेंस लेने के बजाय पुराने विरासत वाले लाइसेंस को भी सरेंडर करने में रुचि दिखा रहे हैं, क्योंकि कानूनी औपचारिकताएं पूरी करना उन्हें बोझ लगने लगा है। जनवरी से लेकर 20 दिसंबर तक दस लोगों ने स्वेच्छा से अपने लाइसेंस निरस्त कराने के आवेदन किए हैं। पहले हर छह माह में 300 नए आवेदन आते थे। अब इनकी संख्या दहाई में पहुंच गई है।

स्टेट्स सिंबल पुरानी सोच
सिटी हास्पिटल के निदेशक व सर्जन डा: मुस्हब खान ने कहा कि अब सुरक्षा के लिए लोग निजी हथियारों के बजाय सीसी कैमरों, अलार्म सिस्टम और बाउंसर्स या सुरक्षा गार्ड्स पर अधिक भरोसा कर रहे हैं। डिजिटल इंडिया के दौर में हथियारों को स्टेटस सिंबल मानना पुरानी सोच बनती जा रही है।

थाना वार/ शस्त्र लाइसेंस
कोतवाली: 1596
पुरानी बस्ती: 343
वाल्टरगंज: 402
हर्रैया: 300
छावनी : 344
परसरामपुर : 437
पैकोलिया: 315
गौर : 232
कलवारी: 391
नगर: 495
कप्तानगंज : 402
दुबौलिया : 243
रुधौली : 355
सोनहा: 310
मुंडेरवा : 458
लालगंज : 571
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