प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे आने के साथ ही राज्य के वित्त विभाग राजकोषीय के गणित की चर्चा हो रही है क्योंकि सरकार गठन के बाद एनडीए के घोषणा पत्र में किए गए वादों को पूरा करने के लिए संसाधन भी जुटाने होंगे। ऐसे में एक बार फिर शराबबंदी को लेकर फिर बात हो रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
दरअसल, घोषणापत्र में किए वादों के मुताबिक, राज्य के 74 लाख किसानों, अनसूचित जाति के छात्रों के साथ-साथ अन्य लोगों को धनराशि देने होगी। इसके अलावा दो ग्रीनफील्ड शहरों (नया पटना और सीतापुरम) के निर्माण और कृषि बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए पूंजीगत व्यय भी करना होगा।
शराबबंदी की समीक्षा की हो रही चर्चा
पिछले साल सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 9.2% के अनुमानित राजकोषीय घाटे और इस साल राज्य के सकल घरेलू उत्पाद के 5.3% के बजट वाले राज्य में, नीतीश कुमार की ओर से 2016 में लगाई गई शराबबंदी की समीक्षा की चर्चा हो रही है।
एनडीए के सामने मुश्किलें कम नहीं
- एनडीए के लिए शराबबंदी वापस लेना या इस पर से प्रतिबंध हटाना आसान नहीं होगा क्योंकि शराबबंदी समर्थक महिला मतदाताओं में इसकी अच्छी पकड़ है। लेकिन राजस्व की अपार संभावना है क्योंकि राज्य सरकार 2015-16 में शराब की बिक्री से सालाना 3,000 करोड़ रुपये से ज्यादा कमा रही थी - जो किसानों को अतिरिक्त प्रत्यक्ष हस्तांतरण के लिए जरूरी 2,200 करोड़ रुपये की भरपाई के लिए पर्याप्त रकम से ज्यादा है।
- मौजूदा कीमतों को अगर देखा जाए तो यह राशि और भी ज्यादा होगी। किसी भी स्थिति में, मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत वर्तमान में नामांकित 1.5 करोड़ महिलाओं के लिए 10,000 रुपये की चुनाव-पूर्व घोषणा पर 15,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
- इसके अलावा, 1.1 करोड़ बुजुर्गों, विधवाओं और विकलांगों के लिए मासिक पेंशन बढ़ाकर 1,100 रुपये करने से लगभग 8,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च आएगा, साथ ही लगभग 4,000 करोड़ रुपये 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली के लिए दिए जाने की संभावना है।
- पहले से लागू योजनाओं के कारण अतिरिक्त 28,000 करोड़ रुपये के खर्च से आगे निकल जाएगा। एनडीए के घोषणापत्र में कॉलेजों में पढ़ने वाले अनुसूचित जाति के छात्रों को 2,000 रुपये की सहायता और मछुआरों को सहायता देने का वादा भी किया गया है।
- परिणामस्वरूप, बिहार के लिए इस वर्ष राज्य सकल घरेलू उत्पाद के 3% के बजटीय राजकोषीय घाटे के साथ वित्तीय वर्ष समाप्त करना संभव नहीं है, जब तक कि वह अन्य व्ययों में कटौती न कर सके या नए स्रोतों से संसाधन न जुटा सके। आखिरकार, 60% व्यय पहले से ही ब्याज भुगतान, वेतन और पेंशन तथा अन्य स्थापना-संबंधी खर्चों में लगा हुआ है, इसलिए विकल्प बहुत कम हैं।
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