कांग्रेस ने 18 साल बाद बदली रणनीति। फाइल फोटो
अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। हरियाणा में कांग्रेस हाईकमान पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की राजनीतिक ताकत को नजरअंदाज नहीं कर पाया है। पिछले साल जीत से मामूली दूरी पर रह गई कांग्रेस ने एक बार फिर न केवल भूपेंद्र हुड्डा को विपक्ष के नेता की कमान सौंपकर जाट नेतृत्व पर भरोसा जताया है, बल्कि प्रदेश अध्यक्ष के पद पर दलित राजनीति की बजाय अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) चेहरे राव नरेंद्र पर दांव खेला है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
कांग्रेस इस बदलाव और नये जातीय समीकरणों के मद्देनजर जहां बिहार चुनाव में यादवों का समर्थन हासिल करने की सोच रही है, वहीं फिर से अहीरवाल में पैठ बढ़ाने की कोशिश की गई है। अहीरवाल में कांग्रेस का चुनावी प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है। केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत के साल 2014 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद से ही कांग्रेस पार्टी अहीरवाल में लगातार चुनाव हार रही है।
इस बार भी 12 सीटों में से कांग्रेस सिर्फ एक ही सीट जीत पाई। 53 साल बाद यह पहला मौका है, जब कांग्रेस ने अहीरवाल के नेता राव नरेंद्र को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी है। राव नरेंद्र से पहले राव निहाल सिंह साल 1972 से 1977 तक हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं, जोकि अहीरवाल से आते थे। कांग्रेस हाईकमान ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विपक्ष का नेता और उनके करीबी राव नरेंद्र को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर जाट और ओबीसी गठजोड़ को महत्व दिया है।
हुड्डा दो बार मुख्यमंत्री, चार बार नेता प्रतिपक्ष, चार बार सांसद, छह बार विधायक और छह साल तक हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं। राव नरेंद्र तीन बार विधायक और हुड्डा सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं। भाजपा का पूरा जोर इस समय ओबीसी की राजनीति पर है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी भी ओबीसी हैं। कांग्रेस ने एक कदम आगे बढ़ते हुए न केवल ओबीसी को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाया, बल्कि अहीरवाल क्षेत्र से आने वाले नेता को इस पद के लिए इसलिए चुना ताकि कांग्रेस को अहीरवाल में मजबूती प्रदान की जा सके।
chamoli-general,Chamoli news,Hemkund Sahib closing date,Badrinath Dham closing date,Hemkund Sahib Yatra,Badrinath Yatra,Chamoli tourism,Uttarakhand tourism,Hindu pilgrimage,Sikh pilgrimage,Lokpal Lakshman Temple,uttarakhand news
पिछले तीन कार्यकाल से अहीरवाल ही भाजपा के लिए सत्ता की चाबी साबित हुआ है। बाक्स 18 साल बाद गैर दलित को प्रदेश अध्यक्ष की कमान मिली कांग्रेस ने 18 साल बाद गैर दलित को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी है। साल 2007 में फूलचंद मुलाना से कांग्रेस का दलित प्रदेश अध्यक्ष बनाने का युग शुरू हुआ था। फूलचंद मुलाना सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहे थे। उनके बाद डा.अशोक तंवर, कुमारी सैलजा और फिर चौधरी उदयभान प्रदेश अध्यक्ष बने।
यह सभी नेता दलित समाज से आते हैं। ओबीसी चेहरे के रूप में राव नरेंद्र के जरिये कांग्रेस की कोशिश अति पिछड़े वर्ग को साधने की है। राव नरेंद्र की खास बात यह रही कि किसी एक गुट के साथ वे नहीं दिखे। हालांकि विधानसभा चुनाव में उन्हें भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रचार करते हुए देखा गया था। कांग्रेस हाईकमान ने हुड्डा को विधायक दल का नेता और राव नरेंद्र को अध्यक्ष बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि प्रदेश अध्यक्ष का चेहरा चुनने के लिए गुटबाजी को दरकिनार किया गया है।
हुड्डा को इसलिए नजरअंदाज नहीं कर पाया कांग्रेस हाईकमान कांग्रेस हाईकमान ने एक बार फिर मान लिया कि हरियाणा में भूपेंद्र हुड्डा ही कांग्रेस हैं। 37 में से अधिकतर विधायक हुड्डा के समर्थक हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान भूपेंद्र हुड्डा को कांग्रेस पार्टी ने खुली छूट दी थी। इस दौरान कुमारी सैलजा लगातार विरोध करती रहीं। उन्होंने टिकट आवंटन को लेकर नाराजगी भी जताई थी औऱ 14 दिन तक प्रचार से दूर रही थीं। हुड्डा अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए कामयाब हुए थे, लेकिन हार के बाद उन पर सवाल उठाए गए।
तमाम तरह की रिपोर्ट और सर्वे में यह बात सामने आई कि हार का कारण आपसी गुटबाजी थी। आगे हुड्डा को यदि हरियाणा में नजरअंदाज किया गया तो पार्टी को नुकसान होगा। बाक्स हुड्डा विपक्ष के नेता नहीं बनते तो कांग्रेस में गहरा जाती फूट कांग्रेस हाईकमान द्वारा भूपेंद्र हुड्डा पर भरोसा जताने की दूसरी बड़ी वजह यह रही कि यदि हुड्डा की जगह किसी अन्य विधायक को विधानसभा का नेता प्रतिपक्ष बनाया जाता तो कांग्रेस में फूट हो जाती।
आब्जर्वरों की रिपोर्ट में भी ये बात सामने आई थी कि पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को ही नेता प्रतिपक्ष बनाया जाए। तीसरी बड़ी वजह उनका जाट समुदाय से होना है। यह कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक है। हालांकि गैर जाटों में भी हुड्डा की मजबूत पकड़ है। जाट समाज को नाराज कर हरियाणा में कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकती थी।
 |