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बक्सर पंचकोशी यात्रा 9 नवंबर से शुरू, 13 को चरित्रवन में लिट्टी-चोखा महोत्सव

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बक्सर पंचकोशी यात्रा



गिरधारी अग्रवाल, बक्सर। जिले की पहचान बन चुकी पूरे भोजपुरी अंचल का सुप्रसिद्ध बक्सर धाम पंचकोशी यात्रा प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष (अगहन) के कृष्णपक्ष की पंचमी तिथि से प्रारंभ होती है, जिसकी शुरुआत इस बार नौ नवंबर, दिन रविवार से हो रही है। यात्रा प्रारंभ, प्रसिद्ध व पौराणिक स्थल रामरेखा घाट से स्नान, पूजन के बाद अहिल्या धाम को होगी। यहां धर्मावलंबी पहला पड़ाव लेंगे।  विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

मेले की विशेष बात है कि इसके पांच दिनों में पांच कोस की यात्रा कर पांच अलग-अलग भोग लगाए जाने की परंपरा है, जिसमें दूर-दराज से भी काफी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। मेले में हर साल उमड़ने वाली हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए जिला प्रशासन ने हर पड़ाव पर सुरक्षा एवं सुविधाओं के व्यापक प्रबंध किए जाने के आदेश भी दिए हैं।
वाराह पुराण में जिक्र

वाराह पुराण में सिद्धाश्रम (बक्सर) में पंचकोस परिक्रमा के महत्व का जिक्र किया गया है। धार्मिक मान्यता है कि बक्सर के चरित्रवन में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद रवाना होने से पहले प्रभु श्रीराम ने महर्षि विश्वामित्र के आश्रम से पांच कोस के दायरे में रहने वाले पांच ऋषियों से आशीर्वाद ग्रहण किया था।  

इसके लिए प्रभु राम ने पांचों ऋषियों के यहां एक-एक रात व्यतीत किए थे। तब ऋषियों द्वारा प्रभु राम को प्रत्येक दिन ऋषि के आश्रम में अलग-अलग प्रकार के खाद्य पदार्थ भोग लगाने के लिए दिए थे। उसी परंपरा का तब से अनुसरण करते हुए बक्सर में पंचकोसी मेला आयोजित करने की परंपरा चली आ रही है।
13 नवंबर तक चलेगा मेला

नौ नवंबर से आरंभ होने वाला मेला 13 नवंबर तक चलेगा। मेले में हर दिन अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग प्रसाद बनेगा। पहला पड़ाव बक्सर के रामरेखाघाट से एक कोस की दूरी पर मौजूद अहिरौली स्थित अहिल्या स्थान पर होगा। यात्रा आरंभ किए जाने से पहले साधु-संत व श्रद्धालुओं का जत्था रामरेखा घाट पर पवित्र गंगा स्नान करेगा, फिर यात्रा प्रारंभ होगी।  

मान्यता अनुसार पहला पड़ाव अहिरौली में अहिल्या माता की पूजा आदि के बाद पुआ पकवान का भोग लगाया जाएगा। कहा जाता है कि यहां गौतम ऋषि का आश्रम मौजूद था।
अगला (दूसरा) पड़ाव नारदाश्रम

अगले दिन सोमवार को मेला का दूसरा पड़ाव यहां से एक कोस दूर नदांव स्थित नारदाश्रम पर होगा, जहां नारद ऋषि का आश्रम था। यहां लोग खिचड़ी का प्रसाद ग्रहण करते हैं।  

तीसरे दिन नदांव से एक कोस दूर भभुवर में भार्गव सरोवर पर श्रद्धालु पहुंचेंगे। मान्यता है कि यहां भार्गव ऋषि का आश्रम था। जहां प्रभु ने चूड़ा दही का भोग लगाया था।  

वहीं, चौथा पड़ाव एक कोस दूर नुआंव स्थित सरोवर के तट पर होता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार यहां उद्दालक ऋषि का आश्रम था और प्रभु ने यहां सत्तू मूली का भोग ग्रहण किया था।
बक्सर के चरित्रवन में होगा यात्रा का आखिरी पड़ाव

यात्रा का पांचवां और अंतिम पड़ाव बक्सर के चरित्रवन में महर्षि विश्वामित्र आश्रम के इर्द-गिर्द लिट्टी-चोखा के भोग के साथ पंचकोसी यात्रा पूर्ण की जाएगी। पांच दिवसीय यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव बक्सर का चरित्रवन होता है। इसमें शामिल होने के लिए न सिर्फ राज्य के, बल्कि कई जिलों (यूपी व झारखंड) से भी प्रति वर्ष लाख की संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर शामिल होते हैं।  

श्रद्धालुओं की संख्या का अनुमान इससे भी लगाया जा सकता है कि यहां पकाई होने वाली लिट्टी-चोखा के उपले के धुआं से पूरा आसमान श्यामल रंग में रंगा दिखता है। अंतिम पड़ाव के दिन विधि-व्यवस्था बनाए रखना प्रशासन के लिए कड़ी चुनौती के समान होती है, जिसमें प्रशासन को अपनी पूरी ताकत झोंक देनी पड़ती है।
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