जंगल में लोकतंत्र का अनोखा पर्व
संवाद सूत्र, फतेहपुर (गया)। लोकतंत्र की असली ताकत केवल शहरों या कस्बों तक सीमित नहीं, बल्कि उसकी सबसे सुंदर तस्वीर जंगलों में भी दिखाई देती है। फतेहपुर प्रखंड के कठौतिया केवाल पंचायत के गुरपा स्टेशन से सटे जंगल में रहने वाले बिरहोर एवं मुंडा जनजाति परिवार इसका जीवंत उदाहरण हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पढ़ाई-लिखाई से दूर और आधुनिक सुविधाओं से लगभग कटे ये लोग हर चुनाव में बढ़-चढ़कर मतदान करते हैं। इस बार भी जब 11 नवम्बर को बोधगया विधानसभा क्षेत्र में मतदान होगा, तब बिरहोर समाज के 49 एवं मुंडा के 80 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए मध्य विद्यालय गुरपा स्थित मतदान केंद्र पहुंचेंगे।
जिसमें बिरहोर में पुरुष 25 एवं महिला 24 है। इनकी यह यात्रा सिर्फ कुछ कदमों की नहीं, बल्कि लोकतंत्र पर अटूट विश्वास की प्रतीक है। मुंडा जाति में लगभग 80 लोगो का नाम मतदाता सूची में जुड़ा हुआ है।
ईवीएम से मतदान का प्रशिक्षण
बिरहोर समुदाय के अधिकांश लोग अशिक्षित हैं, लेकिन लोकतांत्रिक जिम्मेदारी को भलीभांति समझते हैं। प्रशासन ने इन मतदाताओं को मतदान प्रक्रिया से परिचित कराने के लिए विशेष पहल की है।
बीएलओ और निर्वाचन पदाधिकारियों की टीम ने बिरहोर टोला पहुंचकर ईवीएम मशीन का डेमो दिया और बताया कि कैसे बटन दबाकर अपना मत दिया जाता है। ग्रामीणों ने उत्सुकता से अभ्यास किया और कहा कि इस बार वे “पहली बार मशीन से मतदान” को लेकर बेहद उत्साहित हैं।
जंगल से निकलकर लोकतंत्र की राह पर
बिरहोर समाज अब भी जंगलों में झोपड़ी बनाकर जीवन यापन करता है। मेहनत-मजदूरी इनका प्रमुख पेशा है। पास में ही झारखंड की सीमा है, जहां बिरहोर और मुंडा जनजाति के परिवार पीढ़ियों से बसे हैं। मुंडा समाज के कुछ लोग शिक्षित हो चुके हैं, लेकिन बिरहोर परिवार अब भी साक्षरता से कोसों दूर हैं।
फिर भी, लोकतंत्र के इस पर्व में उनकी भागीदारी किसी शिक्षित नागरिक से कम नहीं है। वे सुबह-सुबह समूह बनाकर मतदान केंद्र तक पहुंचते हैं, अपने अंगूठे की स्याही दिखाकर गर्व से कहते हैं “हम वोट देना जानते हैं, सरकार वोट से बनती है।”
विकास की ओर कदम
सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना, शौचालय निर्माण और पेयजल योजनाओं के तहत बिरहोर टोला में विकास के प्रयास जारी हैं। दुख एक बात का है मुंडा जाति जो जंगलों में रहता है। उसे अपनी जमीन नहीं होने के कारण सरकारी कोई सुविधाएं नहीं मिल रही है।
आज भी पुरसाहाल का जीवन जीने को विवश है। फिर भी मेहनत के बदौलत स्वत बदलाव लाया है। बिजली की जगह सोलर लाइट, गड्ढा खोदकर पेयजल की सुविद्या, आवागमन के लिए पगडंडी बनाया।
अधिकारियों का कहना है कि बिरहोर टोला में बुनियादी सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं, ताकि ये समाज मुख्यधारा से जुड़ सके। इनकी यह जागरूकता बताती है कि लोकतंत्र की जड़ें कितनी गहरी हैं जहां साक्षरता नहीं, वहां भी “मतदान का महत्व” पूरी ईमानदारी से समझा जाता है। गुरपा के जंगलों में रहने वाले ये लोग भले ही अंतिम पायदान पर हों, लेकिन लोकतंत्र की पहली कतार में खड़े हैं। |