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Jagran Film Festival: जेएफएफ में आज दिखाई जाएंगी नौ फिल्में, खास रहेगा संवाद सत्र

LHC0088 5 day(s) ago views 269

  

मास्टरक्लास में फिल्म निर्देशक दीपक पंत साझा करेंगे अपने अनुभव, ‘द ताज स्टोरी’ की होगी स्क्रीनिंग। प्रतीकात्‍मक



जागरण संवाददाता, देहरादून। सितंबर को दिल्ली से चले दुनिया के सबसे बड़े घुमंतु समारोह जागरण फिल्म फेस्टिवल (जेएफएफ) ने शुक्रवार से तीन दिन के लिए दून में पड़ाव डाल दिया। राजपुर रोड स्थित सिल्वर सिटी सिनेमाज में फेस्टिवल के दूसरे दिन आज कुल नौ फिल्में दिखाई जाएंगी। साथ ही फिल्म जगत से जुड़े लोगों से बातचीत खास रहेगी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

दोपहर सवाल एक बजे मास्टर क्लास में दीपक पंत अपने अनुभव साझा करेंगे। साथ ही फिल्मों को लेकर दर्शकों की जिज्ञासा भी शांत करेंगे। दोपहर सवा दो बजे परेश रावल अभिनीत ‘द ताज स्टोरी’ की स्पेशल स्क्रीनिंग भी होगी। इस फेस्टिवल को लेकर लोगों में खासा उत्साह है। विभिन्न मुद्दों के साथ सामाजिक संदेश देती फिल्मों को देखने के लिए आज भी काफी संख्या में दर्शक पहुंचेंगे।
आज दिखाई जाने वाली फिल्में

हिंदी फीचर फिल्म: अगर मगर किंतु लेकिन परंतु

निर्देशक: गौतम सिद्धार्थ, अवधि: 111 मिनट
प्रदर्शन: सुबह नौ बजे।
इस फिल्म में स्कूल की कहानी का मुख्य पात्र एक बच्चा अमल है, जिसकी कल्पनाशीलता असाधारण है। उसे एक बीमारी है, जिसके लिए उसे आपरेशन कराना पड़ता है। पढ़ाई-लिखाई, खेलकूद और सामान्य बचपन की गतिविधि भी चल रही हैं, लेकिन बीमारी ने उसे कुछ अलग ही बना दिया। वह अपनी इच्छा, सपने व उम्मीद के बीच मुक्ति खोजता है। एक ऐसी दुनिया, जहां पर सीमाओं से ऊपर उठता और वंडर ब्वाय बन जाता है। फिल्म में इस फेंटेसी और परिवार श्रेणी के माध्यम से दिखाया है कि एक बच्चा कैसी अपनी चुनौतीपूर्ण परिस्थिति में हिम्मत दिखाकर आगे बढ़ता है।

इंटरनेशनल फीचर फिल्म : ओबराज

निर्देशक: निकोजा वुकेसविक, अवधि: 98 मिनट
प्रदर्शन: सुबह 11:15 बजे।
यह फिल्म 1940-50 के दशक के दौरान यूगोस्लाविया पर आधारित है, जहां एक क्रूसेडियन (मसीही) बच्चा माता-पिता की मृत्यु व अपने गांव को जलाए जाने के बाद भागकर बच निकलता है। बच्चे का नाम पेटर है, जो एक मुस्लिम के घर शरण लेता है। इसके बाद मुस्लिम को एक अत्यंत कठिन निर्णय का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उसे शरणार्थी बच्चे की रक्षा करने की चुनौती झेलनी पड़ती है। फिल्म की कहानी इस बात के इर्द-गिर्द है कि युद्ध की सूरत में शत्रु-घर और मित्र-घर की सीमाएं कैसे धुंधली हो जाती हैं। मानवता, धर्म, जात-पात, परिवार और राष्ट्र-दायित्व के बीच कैसा संघर्ष होता है। यह फिल्म में दर्शाया गया है।

इंडियन फीचर: स्पेशल स्क्रीनिंग: द ताज स्टोरी
निर्देशक: तुषार अमरीश गोयल, अवधि: 165 मिनट
प्रदर्शन: दोपहर 2:15 बजे।
इस फिल्म के मुख्य पात्र परेश रावल हैं, जो एक स्थानीय गाइड हैं और ताजमहल के पास काम करते हैं। एक दिन विष्णु दास ताजमहल के इतिहास को लेकर सवाल उठाता है और चुनौती देता है कि क्या ताजमहल वास्तव में वैसा है, जैसा इतिहास में बताया गया है। उसके इस सवाल के बाद मामला कानूनी लड़ाई तक पहुंच जाता है। विष्णु दास कोर्ट में जाता है, पारंपरिक इतिहास पर बहस करता है। दस्तावेजों व पुरालेखों को लेकर वकीलों के बीच बहस होती है। फिल्म में यह दिखाया गया है कि कैसे एक साधारण गाइड अपनी आवाज उठाता है और एक बेहद प्रतिष्ठित स्मारक की कथा को चुनौती देता है। साथ ही समाज, इतिहास और पहचान से जुड़े सवाल भी उठते हैं।

हिंदी फिल्म: रजनीगंधा अचीवर्स स्टोरी : फुले
निर्देशक: अनंत महादेवन, अवधि: 129 मिनट
प्रदर्शन: शाम 5:15 बजे
यह फिल्म सामाजिक सुधारक ज्योतिराव फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के जीवन-संग्राम पर आधारित है। कहानी शुरू होती है 1887 में पुणे में प्लेग की महामारी के समय से, जहां सावित्रीबाई एक बच्चे को पीठ पर लादकर मेडिकल कैंप की ओर जाती हैं। फिर कहानी पीछे लौटती है, जब ज्योतिराव फुले का परिवार, उनकी पृष्ठभूमि और कैसे उन्होंने महिलाओं और पिछड़े वर्ग-सम्प्रदायों की शिक्षा के लिए काम शुरू किया, यह सब दिखाया जाता है। उस समय की सामाजिक स्थितियां, जाति-भेद, लैंगिक असमानता, विधवाओं की स्थिति, ब्राह्मण-उच्च वर्ग का विरोध आदि फिल्म में प्रमुख रूप से सामने आते हैं। यह फिल्म दिखाती है कि कैसे फुले दंपती ने घर-घर जाकर स्कूल शुरू किया, समुदाय के विरोधों का सामना किया, अपनी संपत्ति बेची और सामाजिक सुधार की राह पर अग्रसर हुए।

राजस्थानी शार्ट फिल्म : अवार-नवार छोरियां ( एवरी नाउ एंड देन गर्ल्स)
निर्देशक: शैफाली जैन, शिवि भटनागर, अवधि: 21 मिनट
प्रदर्शन: शाम 7:40 बजे।
यह एक स्टाप-मोशन व एनिमेशन शार्ट फिल्म है। इसमें तीन कहानियां बताई जाती हैं, जो कुछ जिज्ञासु लड़कियों के समूह-संपर्क से जुड़ी हुई हैं। इस फिल्म को अंतरराष्ट्रीय-फेस्टिवल सर्किट में दिखाया गया है। फिल्म-लिस्टिंग और ब्रिटिश काउंसिल की स्क्रीनिंग में भी इसका उल्लेख है।

कुमाऊंनी शार्ट फिल्म: द गारलैंड आफ घुघुति (घुघुति की माला)
निर्देशक: केतन पाल, अवधि: नौ मिनट
प्रदर्शन: शाम 7:30 बजे।
यह फिल्म एक उत्तराखंड के गांव के पारंपरिक त्योहार घुघुतिया पर आधारित है। जिसे स्थानीय भाषा में घुघुतिया अथवा घुघुतीया कहा जाता है। मुख्य पात्र भानु एक उत्साही बच्चा है। जो मिठाई खाने के लिए बेताब है। त्योहार के दिन मिठाई तैयार की जाती हैं और बच्चों की ओर से उन्हें काले कौआ को चढ़ाया जाता है। भानु को उसकी दादी मिठाई खाने से रोकती है, क्योंकि उसे उस रस्म के पीछे का अर्थ जानना है। फिल्म में दिखाया गया है कि भानु का दादा उसे उस त्योहार-रीति की कथा सुनाता है। कैसे यह परम्परा शुरू हुई, क्यों मिठाई बनती थीं, क्यों उन्हें पक्षियों को दी जाती थीं।

जर्मन फिल्म: डोब्रिना
निर्देशक: हनीश हाल, अवधि: पांच मिनट
प्रदर्शन: रात आठ बजे।
यह एक एनिमेटेड शार्ट फिल्म है, जो पांच मिनट की है और जर्मनी में बनी है। कहानी एक ट्रुबाडूर (गायक-यात्री) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपनी मुराद यानी अपने प्रेम-विषय को पाने की लालसा में होता है। फिल्म का दृश्य सेट एक सूर्य-धूप से झुलसी न्यू मैक्सिकन टाउन में है यानी ऐसा वातावरण जहां रेगिस्तान, धूप और साये का खेल है। इसमें प्रेम-त्रिकोण दर्शाया गया है। एनिमेशन स्टाइल और दृश्य भाषा में यह बताया गया है कि कैसे इच्छा, प्रेरणा, साया और धूप मिलकर एक भाव-यात्रा बनाती हैं, जहां पात्र अपने वजूद, प्रेम और संघर्ष की परछाइयों में खुद को तलाशते हैं।

हिंदी शार्ट फिल्म : अधूरी पहचान
निर्देशक : हर्षिता नहलानी, अवधि: चार मिनट
प्रदर्शन: 8:10 बजे
फिल्म अधूरी पहचान की कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है, जो हर सुबह एक ही तरह से शुरू होती दिनचर्या में फंसा हुआ है। काम तक पहुंचने की भागदौड़, फिर वहां पहुंचते ही उसे उपेक्षा व अनदेखा होने का सामना करना पड़ता है। फिल्म दिखाती है कि कैसे निरंतर चल रही इस दिन-दिन की रूटीन, समाज में उसकी जगह की कमी, और पहचान-विहीनता उसके अंदर एक उबाल ले आती है। फिल्म में समाज, काम, पहचान-खोना, और कैसे व्यक्ति अपने ‘अधूरे’ होने का एहसास करता है और उससे उबरने की कोशिश करता है। यह दिखाया गया है।

तमिल फीचर : गेवी
निर्देशक: तमिल ढयालन, अवधि: 132 मिनट
प्रदर्शन: 8:15 बजे
यह एक तमिल फिल्म है, जो कोडिकनाल के पास एक पहाड़ी गांव वैला गेवी पर फिल्माई गई है। कहानी तब शुरू होती है, जब अभिनेत्री मंधारई गर्भवती होती है और गांव में बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़क, चिकित्सा सुविधाएं बेहद कम होती हैं। एक दिन उनके इलाके में भू-स्खलन होता है और गांव के लोगों को घायलों को अस्पताल पहुंचाने में कठिनाई होती है। इस दौरान अभिनेता को भ्रष्ट उच्चाधिकारी पुलिस, वनरक्षक और व्यवस्था-दमन का सामना करना पड़ता है, क्योंकि जब वह अपने गांव और पत्नी की रक्षा के लिए आवाज उठाता है तो परिस्थितियां और विकट हो जाती हैं।
क्यूआर कोड स्कैन कर ले सकते हैं टिकट

जागरण फिल्म फेस्टिवल में आने के लिए 18 वर्ष से अधिक आयु के लोग क्यूआर कोड को स्कैन कर टिकट ले सकते हैं। आप बुक माय शो के लिंक https://in.bookmyshow.com/events/jagran-film-festival-dehradun-chapter/ET00456001?webview=true से भी तीनों दिन अथवा किसी भी दिन का टिकट ले सकते हैं।
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