बिहार विधानसभा चुनाव 2025  
 
  
 
दिलीप कुमार ओझा, बक्सर। राजनीति की संग्रामभूमि में इन दिनों सुरों की गूंज सुनाई दे रही है – ता ता तुना, ता ता तुना, ना धीन धीना, ना धीन धीना, यह कोई लोकगीत का महोत्सव नहीं, बल्कि टिकट प्राप्ति की खुशी में गाए जा रहे विजयगीत का हिस्सा है। कुछ दिन पहले अचानक इंटरनेट मीडिया पर एक पुराना वीडियो छा गया था, जिसमें एक स्थानीय जनप्रतिनिधि मंच पर लोकगायक के साथ सुर में सुर मिलाते हुए गा रहे थे –ता ता तुना, ना धीन धीना…”। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
 
गाने में भाव था, सुर थे, ताल थी, पर तब तक टिकट कंफर्म नहीं था। उनके विरोधी उस वीडियो को शेयर कर खूब मजे ले रहे थे और लिख रहे थे कि टिकट तो मिलेगा नहीं, अब यही नया पेशा अपनाना पड़ेगा।\“ कई लोगों ने तो उन्हें \“\“\“\“\“\“\“\“बक्सर का बप्पी लहरी\“\“\“\“\“\“\“\“ घोषित कर दिया।  
 
कुछ ने सुझाव दिया कि नेताजी संगीत रियलिटी शो में भी किस्मत आजमा सकते हैं। लेकिन जब पार्टी की सूची जारी हुई और नेताजी को टिकट मिल गया, तब सारे विरोधी सुर बदलकर बेसुरा हो गए। चेहरे पर ऐसा सन्नाटा छाया, मानो किसी ने उनका हारमोनियम छीन लिया हो।  
 
 
अब वही समर्थक जो पहले चुपचाप बैठे थे, अचानक फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप पर ता ता तुना की धुन पर नाच रहे हैं। कुछ समर्थकों ने तो टिकट की खुशी में पार्टी रख दी – गीत वही, नेता वही, पर अब भावनाएं बदली हुई हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार टिकट इसलिए मिला, क्योंकि नेताजी “जनता के दिलों में बसते हैं और गले में सुर है।” कुछ वरिष्ठ नेताओं ने तो कहा कि हमने देखा कि जो नेता सुर में रह सकता है, वो पार्टी लाइन में भी रह सकता है।  
 
अब विरोधी खेमे में हड़बड़ी मची है। खबर है कि एक अन्य उम्मीदवार तबला सीखने के लिए म्यूजिक क्लास ज्वाइन कर रहे हैं। रणनीति साफ है – अगली बार अगर टिकट न मिले, तो कम से कम स्टेज पर ताल तो बजा सकें। राजनीति का यह नया युग बताता है कि अब भाषणों से ज्यादा ज़रूरी हो गया है सुरों में रियाज।  
 
क्योंकि आज के मतदाता सिर्फ वादों से नहीं, वाइरल वीडियो से भी प्रभावित होते हैं। तो अगली बार जब कोई नेता बोले, \“मैं जनता की सेवा करूंगा\“, तो ध्यान से देखिए – कहीं बैकग्राउंड में  ता ता तुना तो नहीं बज रहा! |