उत्सर्जन में कटौती अनिवार्य।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सरकार ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन घटाने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी उत्सर्जन कटौती लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके तहत भारी कार्बन पैदा करनेवाले उद्योगों के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तीव्रता लक्ष्य नियम, 2025 को अधिसूचित किया गया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से अधिसूचना जारी की गई, जिसके लिए इस साल 16 अप्रैल को मसौदा नियमों का प्रकाशन किया गया था और 282 औद्योगिक इकाइयों से आपत्तियां और सुझाव मांगे गए थे। इन उद्योगों में एल्यूमिनियम, सीमेंट, पल्प और पेपर और क्लोरअल्कली सेक्टर समेत तमाम इकाइयां शामिल हैं।
उत्सर्जन को 2023-24 के बेसलाइन स्तर से लाना होगा नीचे
इनको प्रति यूनिट ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 2023-24 के बेसलाइन स्तर से नीचे ले जाना होगा। नियमों के अनुसार, जो संयंत्र अपने निर्धारित लक्ष्य से कम उत्सर्जन करेंगे, वे व्यापार योग्य कार्बन क्रेडिट प्रमाण-पत्र प्राप्त कर सकेंगे। वहीं लक्ष्य से अधिक उत्सर्जन करने वाले संयंत्रों को भारतीय कार्बन बाजार से उसी अनुपात में क्रेडिट खरीदना होगा या जुर्माना देना होगा। जुर्माने को पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति कहा जाएगा। ये अनुपालन वर्ष के दौरान कार्बन क्रेडिट के औसत व्यापार मूल्य से दोगुना होगा। औसत मूल्य को ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) तय करेगा, जबकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) जुर्माना लगाएगा और वसूली की निगरानी करेगा। इसका भुगतान 90 दिनों के भीतर किया जाना होगा।
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन घटाने का लक्ष्य क्या है?
सरकार की तरफ से तय लक्ष्य के तहत सीमेंट क्षेत्र को दो वर्षों में 3.4 प्रतिशत, एल्युमीनियम क्षेत्र को 5.8 प्रतिशत, क्लोरअल्कली में 7.5 प्रतिशत और लुगदी एवं कागज में 7.1 प्रतिशत तक की ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करनी होगी। पेरिस समझौते के तहत भारत को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 2005 से 2030 के बीच जीडीपी के 45 प्रतिशत तक की कमी करनी है, जबकि 2070 तक इसे शून्य के स्तर पर ले आना है।
(न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ) |