2026 में सुप्रीम कोर्ट पर रहेंगी देश की निगाहें।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। नया वर्ष सुप्रीम कोर्ट के लिए भी अहम होगा। सुप्रीम कोर्ट में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण (एसआइआर), राजद्रोह, वक्फ कानून, ऑनलाइन गेमिंग, महिलाओं के धार्मिक स्थलों में प्रवेश पर पाबंदी, मुसलमानों में प्रचलित विभिन्न तरह के तलाकों में मनमाना रवैया, आवारा कुत्तों का आतंक जैसे कई महत्वपूर्ण मामले लंबित हैं जिन पर इस वर्ष लोगों की निगाह रहेगी। इन मामलों में आने वाले फैसले कानूनी और सामाजिक रूप से व्यापक प्रभाव डालने वाले होंगे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
सुप्रीम कोर्ट में लंबित कुछ अहम मामलों पर अगर निगाह डाली जाए तो सबसे महत्वपूर्ण मामला तो एसआईआर का है जिसे विपक्षी दलों ने बड़ा मुद्दा बना रखा है। सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिकाओं में एसआईआर की प्रक्रिया पर सवाल उठाने के साथ ही एसआईआर कराने के चुनाव आयोग के अधिकार और एसआईआर की संवैधानिकता पर भी सवाल उठाया गया है। एसआईआर की संवैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट में आधी सुनवाई हो चुकी है जनवरी में आगे फिर सुनवाई होगी जिसमें चुनाव आयोग अपना पक्ष रखेगा।
एसआईआर पर आने वाला फैसला बहुत अहम होगा क्योंकि उससे देश भर में चल रही एसआईआर प्रक्रिया का भविष्य तय हो जाएगा। दूसरा महत्वपूर्ण मामला देखा जाए तो नौ जजों की संविधान पीठ में लंबित है जिसमें विभिन्न धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी का मुद्दा विचाराधीन है। इस मामले में हिन्दू-मुस्लिम दोनों के कई धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी के मुद्दे उठाए गए हैं।
सबरीमाला का मुद्दा भी इसी में शामिल है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने 2018 में बहुमत से दिए फैसले में केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को गलत ठहराया था। ये फैसला अभी भी लागू हे लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका स्वीकार कर ली थी और धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी के इस मुद्दे को और व्यापक बनाते हुए नौ जजों की पीठ को विचारार्थ भेज दिया था। इस मामले में आने वाला फैसला महिलाओं के धार्मिक स्थलों के प्रवेश में लिंग आधारित भेदभाव पर व्यवस्था तय करेगा।
राष्ट्रद्रोह कानून की वैधानिकता का मुद्दा भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 152 भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को अपराध घोषित करती है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में इस कानून को यह कहते हुए चुनौती दी गई है कि यह कानून आइपीसी में दिए गए राजद्रोह कानून की ही तरह है।
जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में आइपीसी के राजद्रोह कानून को पहली निगाह में औपनिवेशिक काल का कहा था और इस कानून में नया केस दर्ज करने पर रोक लगा दी थी। उस समय केंद्र सरकार ने कहा था कि वह कानून की समीक्षा कर रही है। तब तक बीएनएस लागू नहीं हुई थी।
विभिन्न राज्यों के मतांतरण विरोधी कानूनों की वैधानिकता भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इन कानूनों में प्रलोभन, दबाव या जबरदस्ती धर्मान्तरण को दंडनीय अपराध माना गया और कड़ी सजा का प्रविधान है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इन मतांतरण कानूनों में एक समुदाय विशेष को निशाना बनाया जा रहा है और उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात आदि कई राज्यों ने मतांतरण विरोधी कानून लागू किये हैं। इन राज्यों का कहना है कि जबरन और धोखे से मतांतरण की बढ़ती घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए कानून लाया गया है।
वैसे तो सुप्रीम कोर्ट एक साथ तीन तलाक पर रोक लगा चुका है और उसके खिलाफ कानून भी बन चुका है लेकिन मुसलमानों में तलाक के प्रचलित अन्य तरीकों में मनमाने रवैये और WhatsApp आदि पर तलाक देने के तौर-तरीके के मामले अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं। जिस पर आने वाला फैसला बड़े वर्ग को प्रभावित करेंगे।
नफरती भाषण, आवारा कुत्तों की समस्या, ऑनलाइन गेमिंग, डिजिटल अरेस्ट, वक्फ संशोधन कानून की वैधानिकता जैसे मुद्दे भी लंबित हैं जिन पर नजर रहेगी। |