सातवें वेतन आयोग में हुए भेदभाव को लेकर शिक्षक नाराज, खटखटाएंगे न्यायालय का दरवाजा

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तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतीकरण के लिए किया गया है। जागरण



राज्य ब्यूरो, जागरण, देहरादून। सातवें वेतन आयोग के तहत चयन एवं प्रोन्नत वेतनमान पर बढ़ोत्तरी न दिए जाने को लेकर शिक्षकों में भारी आक्रोश है। इस संबंध में जारी शासनादेश के खिलाफ अब शिक्षक न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में हैं।  विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

एससीईआरटी राजकीय शिक्षक संघ इकाई के अध्यक्ष विनय थपलियाल ने कहा कि यह फैसला न केवल शिक्षकों के साथ भेदभावपूर्ण है, बल्कि संविधान के मूल सिद्धांतों का भी उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार प्रदेश के लगभग डेढ़ लाख राज्य कर्मचारियों और करीब 50 हजार निगम कर्मचारियों को चयन एवं प्रोन्नत वेतनमान पर वार्षिक वेतनवृद्धि दी जा रही है, जबकि केवल शिक्षकों को इससे वंचित किया गया है। यह सरकार की हठधर्मिता को दर्शाता है। इसके खिलाफ शिक्षक सड़क से लेकर कोर्ट तक संघर्ष करेंगे।

थपलियाल ने बताया कि उत्तराखंड वेतन नियमावली 2016 के उपनियम के अनुसार एक जनवरी 2016 या उसके बाद प्रोन्नति, समयमान अथवा चयन वेतनमान पर एक वेतनवृद्धि दिए जाने का स्पष्ट प्रविधान था, जिसका लाभ शिक्षकों सहित सभी राज्य कर्मियों को मिला। लेकिन अब उत्तराखंड सरकारी वेतन (प्रथम संशोधन) नियमावली 2025 के तहत शिक्षकों के लिए इस वेतनवृद्धि को समाप्त कर दिया गया है और इसे एक जनवरी 2016 से प्रभावी भी कर दिया गया है।

उन्होंने कहा कि यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक सेवा में समान अवसर) का सीधा उल्लंघन है। समान परिस्थितियों में कार्यरत शिक्षकों को अन्य संवर्गों से अलग करना मनमाना वर्गीकरण है। साथ ही यह वैध अपेक्षा के सिद्धांत का भी हनन है, क्योंकि शिक्षक वर्षों से इस लाभ को प्राप्त कर रहे थे। उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार यदि वित्तीय कारणों का हवाला देती है तो यह निर्णय सभी संवर्गों पर समान रूप से लागू होना चाहिए, न कि केवल शिक्षकों पर।

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2019 में न्यायालय ने शिक्षकों के पक्ष में दिया था फैसला : पैन्यूली
राजकीय शिक्षक संघ के प्रांतीय महासचिव रमेश पैन्यूली ने पूर्व की स्थिति का उल्लेख करते हुए बताया कि वर्ष 2019 के शिक्षा विभाग के शासनादेश के आधार पर शिक्षकों से वेतनवृद्धि की वसूली के आदेश जारी हुए थे, जिन्हें हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।

न्यायालय ने शिक्षकों के पक्ष में फैसला देते हुए वसूली पर रोक लगाई और वसूली गई राशि लौटाने के निर्देश दिए। बावजूद इसके अब 2025 में नियमों में पिछली तिथि से संशोधन कर शिक्षकों को वित्तीय नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
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