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हाई कोर्ट ने कहा- बिना निर्धारित योग्यता वाले अभियंताओं से टाउन प्लानर का काम कराना कानून के विरुद्ध।
राज्य ब्यूरो, रांची । हाई कोर्ट के जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस एके राय की अदालत ने रांची नगर निगम में टाउन प्लानर की नियुक्ति और कामकाज पर नाराजगी जताते हुए प्रतिनियुक्ति पर आए दो इंजीनियरों के टाउन प्लानर का काम करने पर रोक लगा दी है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
अदालत ने निगम को नियमित रूप से नियुक्त सहायक टाउन प्लानर को ही नक्शा स्वीकृति की जिम्मेवारी देने का निर्देश दिया है। इसे लेकर धनंजय पी रायपत सहित अन्य की ओर से हाई कोर्ट में अपील याचिका दाखिल की गई थी।
खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि बिना निर्धारित योग्यता और अनुभव वाले अभियंताओं से टाउन प्लानर का काम कराना न केवल कानून के विरुद्ध है, बल्कि इससे अब तक स्वीकृत भवन नक्शों की वैधता पर भी गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं।
सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि रांची नगर निगम में अन्य विभागों से प्रतिनियुक्ति पर आए दो इंजीनियरों को टाउन प्लानर की तरह नक्शा पास करने का अधिकार दे दिया गया है, जबकि वे भर्ती नियमों के मुताबिक आवश्यक योग्यता और अनुभव नहीं रखते हैं।
दूसरी ओर सरकार ने नियमों के तहत योग्य असिस्टेंट टाउन प्लानर नियुक्त किए हैं, लेकिन रांची नगर निगम में उनसे टाउन प्लानर का वास्तविक काम नहीं लिया जा रहा था।
सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता की ओर से बताया गया कि भवन निर्माण में हुए विचलन को नियमित कराने के लिए 22 जुलाई 2016 को आवेदन दिया गया था, लेकिन आठ वर्षों से अधिक समय बीतने के बाद नगर निगम ने उस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया।
कोर्ट ने इसे गंभीर प्रशासनिक लापरवाही मानते हुए नगर निगम से जवाब मांगा और यह भी पूछा कि इतने वर्षों तक आवेदन लंबित रखने के लिए जिम्मेदार अधिकारी कौन हैं।
दो से ऊपर की मंजिलों के लिए नगर आयुक्त को अधिकार
सुनवाई के दौरान नगर निगम की ओर से पेश एक फ्लो चार्ट में दिखाया गया कि दो मंजिल तक की इमारतों के नक्शा पास करने का अधिकार टाउन प्लानर को दी गई है, जबकि उससे ऊपर की मंजिलों के लिए नगर आयुक्त को अधिकार है।
अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि झारखंड नगर पालिका अधिनियम, 2011 की धारा 427 और 429 के तहत नक्शा स्वीकृति की वैधानिक शक्ति नगर आयुक्त को दी गई है, इसलिए किसी आंतरिक फ्लो चार्ट या विभागीय व्यवस्था के जरिए टाउन प्लानर को यह शक्ति देना कानून और संविधान के साथ धोखा है।
नगर विकास विभाग के प्रधान सचिव ने अदालत को बताया कि असिस्टेंट टाउन प्लानर को स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति के लिए विभागीय मंत्री की मंजूरी ली जा रही है। इस पर कोर्ट ने कड़े शब्दों में कहा कि जब विधानसभा ने कानून बना दिया और राज्यपाल ने उसे मंजूरी दे दी, तो किसी मंत्री, यहां तक कि मुख्यमंत्री या राज्यपाल को भी उसके क्रियान्वयन में बाधा डालने का अधिकार नहीं है।
अपात्र इंजीनियरों के नक्शा पास किए जाने से गुणवत्ता प्रभावित
न्यायालय ने माना कि राज्य सरकार की यह दखल 74वें संविधान संशोधन के तहत शहरी निकायों को दी गई स्वायत्तता के विपरीत है। कोर्ट ने कहा कि अपात्र इंजीनियरों के नक्शा पास किए जाने से भविष्य में उन भवन की वैधता पर गंभीर सवाल खड़े हो सकते हैं और इसका सीधा नुकसान उन लोगों को होगा, जिन्होंने कर्ज लेकर मकान या इमारत बनाई है।
खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि रांची नगर निगम में टाउन प्लानिंग से जुड़े तकनीकी काम और नक्शा स्वीकृति की प्रक्रिया में अब केवल नियमों के तहत नियुक्त असिस्टेंट टाउन प्लानर को ही जिम्मेदारी दी जाए, ताकि कानूनी अनिश्चितता से बचा जा सके।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 29 जनवरी को निर्धारित की है। अपील याचिका पर सुनवाई के दौरान रांची नगर निगम के प्रशासक ने हाई कोर्ट के समक्ष आश्वासन दिया था कि टाउन प्लानर और लीगल सेक्शन की सेवाएं लेने का आदेश एक-दो दिन में जारी कर दिया जाएगा, लेकिन लंबे समय तक कोई आदेश जारी नहीं हुआ।
इसके बाद अवमानना याचिका दायर हुई और कोर्ट ने पाया कि प्रशासक की ओर से दिए आश्वासन को लागू करने में स्वयं नगर विकास विभाग और उसके प्रधान सचिव बाधा बन रहे हैं, जिसके चलते उनके खिलाफ अवमानना नोटिस जारी किया गया था। |
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