प्रवीण तिवारी, अयोध्या। भव्य नव्य राम मंदिर में विराजित रामलला का ठाठ भी राजसी है। उनके रागभाेग में विशिष्ट व्यंजनों का समावेश है। साथ ही वह नित्य नये अलग अलग रंगों के वस्त्र धारण करते हैं। वह भी सिल्क के। अधिकांशत: वस्त्र राजस्थान, बंगाल, कश्मीर, उड़ीसा, आंध्र के सिल्क के बनते हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
वह सोमवार को सफेद, मंगलवार को लाल, बुधवार को हरा, गुरुवार को पीला, शुक्रवार को क्रीम, शनिवार को नीला व रविवार को गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करते हैं। नित्य नई धोती व दो पटका पहनते हैं। इसमें एक छोटा पटका और दूसरा बड़ा होता है। इन पर गुलाबी रंग की डाइंग (छपाई) की जाती है। ये पूर्णतया भारतीय व परंपरागत परिधान हैं।
रामलला के वस्त्र डिजाइनर मनीष त्रिपाठी अनवरत नए वस्त्र तैयार करने में ही जुटे रहते हैं। इन्हें श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के परामर्श के बाद अंतिम रूप से दिल्ली में तैयार किया जाता है। बुनाई आंध्र प्रदेश के धर्मावरम के हथकरघा में होती है।
इन वस्त्रों को तैयार करने में देश के विभिन्न प्रदेशों के सिल्क का प्रयोग होता है। अब तक असम के हरे रंग के सिल्क, उड़ीसा की संबलपुरी, बंगाल की जामदानी, राजस्थान की बंधेज बांधनी, आंध्र की इक्कत सिल्क है। मौसम के अनुसार भी वस्त्र बदलते रहते हैं।
डिजाइन मनीष ने बताया कि व गर्मी व सावन में काटन सिल्क, सर्दी में ऊनी, प्रचंड ठंडक में पश्मीना से बने वस्त्र पहनाए जाते हैं। प्रचंड सर्दी में ऊनी वस्त्र लद्दाख, हिमाचल व कश्मीर की पश्मीना सिल्क से तैयार किये जाते हैं।
इन सिल्क से तैयार वस्त्रों पर विभिन्न प्रदेशों के क्राफ्ट की छाप होती। मनीष बताते हैं कि भगवान को ऐसे वस्त्र पहनाये जाते हैं, जो उन्हें चुभे न, इसका भी खास ख्याल रखा जाता है। |