राम मंदिर पर ध्वजारोहण से पूर्व बही अनुष्ठान की धार।
संवाद सूत्र, अयोध्या। राम मंदिर के शिखर पर ध्वजारोहण से पूर्व रामनगरी का उल्लास वृहद अनुष्ठानों से छलक रहा है। विद्याकुंड स्थित प्रतिष्ठित पीठ रामधाम में भव्य शोभायात्रा के साथ पांच दिवसीय साकेतोत्सव का आरंभ हुआ। शोभायात्रा में पूरी भव्यता से आस्था का संचार हुआ। रथ पर आराध्य एवं आचार्यों की प्रतिष्ठा के साथ कलशधारी माताओं के साथ बड़ी संख्या में संकीर्तन करते भक्त शामिल हुए। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
रामधाम के पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर महंत प्रेमशंकरदास के संयोजन में संचालित साकेतोत्सव जंगलिया बाबा के नाम से विख्यात रामधाम के पूर्वाचार्य अयोध्यादास के प्रति समर्पित होगा। उनके आध्यात्मिक अवदान के अनुरूप 33वीं पुण्यतिथि पर उन्हें पूरी निष्ठा से याद किया जा रहा है।
सरयू तट से शोभायात्रा की वापसी के साथ 14 नवंबर तक के लिए आश्रम परिसर का पूर्वाह्न सीताराम महायज्ञ एवं सायंकालीन सत्र रामकथा महोत्सव के लिए सज्जित हुआ।
कथाव्यास के रूप में सत्यम पीठाधीश्वर स्वामी नरहरिदास ने रामकथा की तात्विकता प्रवाहित की। द्विआयामी अनुष्ठान के साथ पांच दिनों तक नित्य भंडारा का भी क्रम आरंभ हुआ।
महालक्ष्मी यज्ञ से भी बिखरा अध्यात्म का रंग
एक अन्य कलशयात्रा से भी अध्यात्म का रंग बिखरा। क्षत्रिय बोर्डिंग हाउस के विशाल प्रांगण में सोमवार से श्रीमहालक्ष्मी यज्ञ के आरंभ से पूर्व महनीय अनुष्ठान के सूत्रधार प्रख्यात पर्यावरण प्रेमी एवं आध्यात्मिक गुरु आचार्य शिवेंद्र के संयोजन में शोभायात्रा निकली।
आचार्य यज्ञ के माध्यम से महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के साथ सात दिनों तक श्रीमद्भागवत कथा की सुधाव़ृष्टि भी करेंगे। कलश यात्रा रिकाबगंज चौराहे से चौक घंटाघर होते हुए क्षत्रिय बोर्डिंग हाउस आकर समाप्त हुई।
आचार्य शिवेंद्र ने बताया कि यज्ञ में 121 यजमान सपरिवार शामिल हो रहे हैं। 21 आचार्य यज्ञ संपन्न कराएंगे। आचार्य शिवेंद्र ने यज्ञ की महिमा परिभाषित करते हुए कहा कि यज्ञ में सहभागिता न करने वाले पुरुष पारलौकिक सुखों के साथ इहलौकिक सुखों से भी वंचित होते हैं।
सनातनता के आरोह को मिलेगी नई ऊंचाई
चाहे आचार्य शिवेंद्र हों या महंत प्रेमशंकरदास उनका मानना है कि उनके अनुष्ठान के तो लोकमंगल जैसे मौलिक हेतु हैं, किंतु राम मंदिर का स्वर्ण शिखर सनातनता को आरोह को नई ऊंचाई प्रदान कर रहा है और ऐसे में वैदिक अनुष्ठान के प्रति अतिरिक्त ऊर्जा और उल्लास का विसर्जन स्वाभाविक है तथा इसके मूल में मात्र उत्सवधर्मिता ही न होकर गहन आस्था एवं धार्मिक मूल्यों तथा आध्यात्मिक आदर्शों के प्रति अनुराग है। |