बिहार विधानसभा चुनाव। फोटो जागरण
उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद)। वर्ष 1977 से ओबरा विधानसभा क्षेत्र वर्तमान स्वरूप में विद्यमान है। वैसे यह क्षेत्र 1952 के चुनाव से वजूद में है। तब से यहां यादव जाति के विधायक बनते रहे हैं। बीच में एक बार भूमिहार, एक राजपूत, एक रविदास और दो बार कुशवाहा विधायक रहे हैं। इसलिए इसे यादव समाज के लिए सुरक्षित गढ़ माना जाता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
वर्ष 2020 का चुनाव छोड़ दें तो वैश्य कभी प्रतिद्वंदी तो छोड़िए तीसरे चौथे स्थान पर नहीं रहा। यहां की लड़ाई सीधी है और इन्हीं दो विचारों के बीच संघर्ष चल रहा है। एक तरफ गढ़ बचाने की चुनौती महागठबंधन के राजद प्रत्याशी यादव जाति के ऋषि कुमार के कंधे पर है तो दूसरी तरफ राजग समर्थित लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के प्रत्याशी वैश्य समाज के प्रकाश चंद्र के कंधे पर परंपरा तोड़कर नया इतिहास लिखने की जिम्मेदारी का भार है।
जन सुराज के सुधीर कुमार शर्मा और बसपा के संजय कुमार तीसरा कोण बनाने की कोशिश में लगे हैं। दोनों जाति से भूमिहार हैं। कौन एक दूसरे से अधिक मत ला पाते हैं, इस पर चुनावी राजनीति में रुचि रखने वालों को दिलचस्पी है। राजद से निवर्तमान विधायक ऋषि कुमार पर दूसरी बार चुनाव जीतने का दबाव है।
इससे पहले मात्र चार नेता ऐसे रहे जो दो या इससे अधिक बार चुनाव जीते हैं। जिसमें पदारथ सिंह वर्ष 1952 एवं 1969 में विधायक बने। लेकिन लगातार दो जीत सिर्फ राजाराम सिंह 1995 और 2000 में, सत्यनारायण सिंह 2005 के फरवरी और अक्टूबर महीने में तथा रामविलास सिंह 1985 और 1990 में दर्ज करने में सफल रहे हैं। ऐसे में ऋषि के सामने बड़ी चुनौती है।
एकमात्र रामविलास सिंह ऐसे नेता रहे हैं जो ओबरा विधानसभा क्षेत्र से तीन और दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक बने हैं। यहां खुलेआम इस बात की चर्चा है कि जिस ओबरा से 11 बार सिर्फ यादव जीते हैं इस बार 12वीं बार भी जीत सकेंगे। यह जीत हासिल करने के लिए ही प्रत्याशी के जितने विरोधी थे उनको साथ लाने की कोशिश की गई। अधिकतर साथ आ गए। कुछ ऐसे भी हैं जो साथ खड़े नहीं दिखते।
चुनाव प्रचार के अंतिम समय तक विरोध का सामना ऋषि को करना पड़ा। जनता का पांच साल तक नहीं दिखने और फोन नहीं उठाने का आरोप उनके आधार वोटर लगाते रहे हैं जिस कारण उन्हें कई गांवों में माफी मांगनी पड़ी।
विरोध झेलना पड़ा, इसके बावजूद राजद के आधार वोट में टूट कितना हो सकेगा यह चुनाव परिणाम से पता चलेगा, क्योंकि असंतुष्टों का एक खेमा है और दूसरी समस्या यह है कि एनडीए समर्थित लोजपा रामविलास के प्रत्याशी प्रकाश चंद्र ने काफी समय यादव और मुस्लिम मतदाताओं को अपने पाले में लाने में संघर्ष किया है।
उम्मीद की जा रही है कि इस बार ‘एमवाय’ समीकरण दरकेगा और इसका सीधा लाभ एनडीए के प्रत्याशी को मिलेगा। राजद की कोशिश कुशवाहा वोट बैंक को साथ जोड़ने की है परंतु रालोमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के रहते यह संभव नहीं दिखता।
दूसरी तरफ एनडीए प्रत्याशी प्रकाश चंद्र के साथ भाजपा के कैडर वोटरों के साथ आधार जातियों का वोट जुड़ता है लेकिन कुशवाहा और भूमिहार समाज के एक धड़े में विरोध के स्वर सुनाई पड़ते हैं जिसे पाटने की कवायद की जा रही है।
भाजपा के आधार वोटरों और एनडीए नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच यह बात कही जा रही है कि 1980 में जीत के बाद इस बार यादवगढ़ में जीता जा सकता है।
ध्यान रहे कि 2010 में प्रमोद सिंह चंद्रवंशी और 2015 में चंद्रभूषण वर्मा को जिताने का अवसर एनडीए समर्थक चूक गए हैं। वैश्य समुदाय में यह है कि पहली बार कोई वैश्य सीधी टक्कर में है। इसलिए चूकना नहीं है।
ओबरा विधानसभा क्षेत्र में मुद्दे हवा में हैं और जातीय समीकरण जमीन पर है। जिसे साधने की कवायद दोनों तरफ से की जा रही है और यही वजह है कि दोनों पक्ष जातियों को साधने के लिए संबंधित जातियों के नेता को चुनावी मैदान में उतारे हैं।
जाति के नेता यह संदेश दे रहे हैं कि हम नीचे न देखकर ऊपर देखें। यानी यह साफ कहा जा रहा है कि प्रत्याशियों की गलतियां या उनसे असंतोष को भुला दिया जाए और सीधे ऊपर देखा जाए।
जिस समाज में नाराजगी है या नाराज समूह के बीच संबंधित जाति के नेता जाकर यही कह रहे हैं कि बताशा के लिए मंदिर नहीं तोड़ा जाता है ऊपर देखें। ऐसी स्थिति में वास्तव में कौन विजेता बनकर आएगा यह वक्त बताएगा।
ओबरा विधानसभा- मतदाता एवं मतदान केंद्र विवरण
| कुल मतदाता | 3,18,686 | | पुरुष मतदाता | 1,68,770 | | महिला मतदाता | 1,49,906 | | थर्ड जेंडर मतदाता | 10 | | सर्विस वोटर | 1,229 | | कुल मतदान केंद्र | 387 |
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