सीआईए के पूर्व अधिकारी रिचर्ड बार्लो ने खोले राज।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। शीतयुद्ध काल के दौरान पाकिस्तान ने अमेरिका का जमकर फायदा उठाया और खुद को परमाणु संपन्न देश बनाने में सफल हो गया। अमेरिकी प्रशासन को पाकिस्तान के हाथ परमाणु तकनीक लगने के दुष्परिणामों और दूरगामी असर के बारे में पता था, लेकिन अपने स्वार्थ में अधिकारियों ने कोई एक्शन नहीं लिया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पाकिस्तान का परमाणु संपन्न बनना अमेरिकी खुफिया एजेंसी की विफलता नहीं, बल्कि नीति निर्माताओं की दगाबाजी का नतीजा थी। अमेरिकी विदेश विभाग ने 1980 के दशक में परमाणु तस्करी में शामिल एक रिटायर पाकिस्तानी जनरल को गिरफ्तार होने से बचा लिया था। सीआईए के पूर्व अधिकारी रिचर्ड बार्लो ने ऐसी ही चौंकानेवाली जानकारियां साझा की हैं।
कौन सी जानकारियां कीं शेयर?
समाचार एजेंसी के साथ विशेष साक्षात्कार में बार्लो ने बताया कि सीआईए और अमेरिकी सीमा शुल्क विभाग ने संयुक्त अभियान में अरशद परवेज नामक एक पाकिस्तानी एजेंट को पकड़ने की तैयारी कर ली थी। परवेज एक अमेरिकी इस्पात कंपनी से 25 मीट्रिक टन मैराजिंग 350 स्टील खरीदने का प्रयास कर रहा था। ये स्टील यूरेनियम संवर्धन में इस्तेमाल होने वाली एक महत्वपूर्ण सामग्री है।
बार्लो ने बताया कि परवेज सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर जनरल इनाम-उल-हक के निर्देशन में काम कर रहा था, जो उस समय गुप्त परमाणु हथियार कार्यक्रम के लिए जिम्मेदार दो संस्थानों, खान रिसर्च लैबोरेटरीज (केआरएल) और पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग (पीएईसी) का खरीद एजेंट था।
बार्लो ने बताया कि हमने परवेज को दबोचा और पेंसिल्वेनिया में इनाम उल हक को गिरफ्तार करने के लिए पहुंचे। लेकिन वह वहां नहीं पहुंचा। बाद में मुझे पता चला कि विदेश विभाग के कुछ लोगों ने उसकी गिरफ्तारी की सूचना पाक सरकार को लीक कर दी थी। इस ऑपरेशन का खुलासा होने पर अमेरिकी कांग्रेस में हंगामा हो गया था।
पाकिस्तान को हर तरह की मदद बंद करने की आवाजें तेज होने लगीं, लेकिन राष्ट्रपति रीगन ने सब संभाल लिया। उस समय किसी को चिंता नहीं थी कि पाकिस्तान परमाणु संपन्न बन गया तो क्या होगा। नीति निर्माता हर चीज को शीतयुद्ध के चश्मे से देख रहे थे। 1986-87 तक पाकिस्तान ने परमाणु हथियारों के लिए जरूरी संसाधन तैयार कर लिए थे।
पाक परमाणु राज खोलने पर बर्बाद हुआ मेरा जीवन: बार्लो
रिचर्ड बार्लो ने कहा कि पाकिस्तान के परमाणु राज खोलने से उनका काफी नुकसान हुआ। उन्होंने बताया कि उनके खिलाफ साजिशें शुरू हो गईं। लोगों को डर था कि मैं सारे मामले की पोल कांग्रेस के सामने खोल दूंगा। उन्हें मनोवैज्ञानिक समस्याओं से ग्रस्त बताते हुए मनगढ़ंत दावे किए गए। इसके बाद उनको बर्खास्त कर दिया गया। पत्नी से विवाद बढ़ गया और उन्होंने भी मुझे छोड़ दिया। मेरे पास पैसे नहीं थे। इस वजह से मुझे घर छोड़ना पड़ा और न्यू मेक्सिको के सांता फे में समय गुजारने को मजबूर होना पड़ा।
उन्होंने बताया कि 18 साल तक मुझे मोटर होम कैंपिंग में रहना पड़ा। मुजे 300 डालर महीने न्यूनतम पेंशन मिलती थी, जो बढ़कर 1600 हो गई है। मुझे फूड बैंकों से मिले खाने पर गुजारा करना होता था। उन्होंने कहा कि अंत में मेरी बात साबित हुई। 2005 में पाकिस्तानी विज्ञानी अब्दुल कादिर खान के नेटवर्क का भंडाफोड़ हुआ, जिसमें लीबिया, ईरान और उत्तर कोरिया को परमाणु तकनीक हस्तांतरण के बारे में दुनिया को पता चला। हालांकि, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
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