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पिथौरागढ़, नैनीताल और पौड़ी से उठी थी आरक्षण विरोध की पहली चिंगारी। आर्काइव
जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़ । जुलाई 1994 का दूसरा पखवाड़ा प्रदेश के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ लेकर आया। कुमाऊं विश्वविद्यालय में प्रवेश प्रक्रिया शुरू हुई ही थी कि इसी दौरान 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की घोषणा ने छात्रों में आक्रोश भड़का दिया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
16 जुलाई को नैनीताल में छात्रों ने आरक्षण के विरोध में प्रतीकात्मक प्रदर्शन किया। इसकी खबर पिथौरागढ़ पहुंची तो यहां भी छात्र वर्ग उबल पड़ा। 19 जुलाई को पिथौरागढ़ महाविद्यालय के छात्रों ने प्रवेश काउंटर बंद कराते हुए कॉलेज में तालाबंदी कर दी। नगर में विरोध जुलूस निकाला गया। सामान्य वर्ग बहुल क्षेत्र होने के कारण आरक्षण के विरोध की चिंगारी जल्द ही पूरे जिले में फैल गई। उसी दिन पौड़ी और टिहरी में भी छात्रों ने प्रदर्शन किया। विरोध की यह लहर धीरे-धीरे आमजन के आंदोलन में तब्दील हो गई। 20 जुलाई से हालात उबाल पर पहुंच गए।
कर्मचारी, अधिवक्ता, व्यापारी, शिक्षक और ग्रामीण तक सड़कों पर उतर आए। तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार के विरुद्ध व्यापक आक्रोश फैल गया। जगह-जगह सरकार की प्रतीकात्मक अर्थियां निकाली गईं और गांव-गांव में धरना स्थलों पर लोगों ने डेरा डाल लिया। आंदोलन दिन-ब-दिन प्रचंड होता गया। खटीमा और मसूरी गोलीकांड ने आग में घी डालने का काम किया। पूरे कुमाऊं-गढ़वाल में सरकारी कामकाज ठप हो गया। अधिकारी दफ्तर खोलने तक की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे।
छात्र, कर्मचारी, शिक्षक, व्यापारी, अधिवक्ता, महिलाएं, पूर्व सैनिक और ग्रामीण सभी आंदोलन में कूद पड़े। इसी बीच यह भावना और गहरी होती चली गई कि अगर अपना पर्वतीय राज्य होता, तो इस तरह का आरक्षण नहीं थोपा जाता। इसी विचार ने आंदोलन की दिशा बदल दी आरक्षण विरोध आंदोलन धीरे-धीरे अलग उत्तराखंड राज्य की मांग में बदल गया। इस जनलहर में राजनीतिक दल हाशिये पर चले गए, और आंदोलन पूरी तरह जनता का बन गया। अंततः मुजफ्फरनगर कांड के बाद राज्य की मांग इतनी प्रबल हुई कि केंद्र सरकार को उत्तराखंड राज्य का गठन करना पड़ा।
उत्तराखंड आंदोलन में धूमकेतु की तरह उभरे थे पिथौरागढ़ के स्व. निर्मल पंडित
19 जुलाई 1994 को पिथौरागढ़ महाविद्यालय में काउंटर बंद और तालाबंदी स्व. निर्मल पंडित के नेतृत्व में हुई थी। इस आंदोलन को मुकाम तक पहुंचाने के लिए निर्मल पंडित ने अपने सामान्य वस्त्र उतारकर कफन के कपड़े बनाए और सिर पर भी कफन बांधा। उनके क्रांतिकारी रूप को देखकर पूरे उत्तराखंड में निर्मल पंडित छा गए थे। पिथौरागढ़ जिले में सरकार के दमन में सबसे पहले फतेहगढ़ जेल भेजा गया। जहां पर वह दो माह से अधिक समय तक बंद रहे।
1998 में शराब विरोधी आंदोलन के तहत शराब की दुकानें की नीलामी के विरोध में कलक्ट्रेट में आत्मदाह में बुरी तरह झुलसने से निर्मल पंडित की मौत हो गई। राज्य आंदोलन के दौरान तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष गजेंद्र सिंह गंगू और 17 वर्षीय गोविंद महर गोपू भी गिरफ्तार कर फतेहगढ़ जेल भेज दिए गए थे। जो 57 दिनों तक फतेहगढ़ जेल में बंद रहे। लगभग प्रतिदिन विभिन्न संगठनों के लोगों की गिरफ्तारी होती थी।
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