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Lucknow Jagran Samvadi 2025: छोटे-छोटे कार्यक्रमों को बड़ी पाठशाला बनाकर संगीत का ज्ञान बांटते थे पं. छन्नूलाल मिश्र

cy520520 2025-11-8 18:37:16 views 60

  

संगीत मर्मज्ञ यतीन्द्र मिश्र, लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी व दूरदर्शन के कार्यक्रम प्रमुख आत्मप्रकाश मिश्र






आनंद त्रिपाठी, जागरण, लखनऊ : सुंदर ललाट, गौर वर्ण और गजब की आवाज। दुनिया जिसे सुनने को दीवानी थी...ऐसे थे पं.छन्नूलाल मिश्र। वह शास्त्रीय संगीत के मर्मज्ञ थे, लेकिन गाते समय आमजन के कथाकार हो जाते। जैसे कोई भक्त भजन साधना में लीन हो। कुछ भी गाते तो उसका अर्थ साथ समझाते चलते। गायन शैली और उनके चेहरे के भाव श्रोताओं को हर्ष से भर देते। उनके छोटे कार्यक्रम भी अपने आप में बड़ी पाठशाला थे। जिसने भी एक बार सुना, वह जीवन पर्यंत उनके रस में डूबा रहा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में दैनिक जागरण संवादी के अंतर्गत छन्नूलाल मिश्र जी की स्मृति में सत्र की शुरुआत हुई तो पूरा हाल खचाखच भर गया। लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी, संगीत अध्येता यतीन्द्र मिश्र से दूरदर्शन के कार्यक्रम प्रमुख आत्मप्रकाश मिश्र ने संवाद को गति दी। आत्मप्रकाश मिश्र ने पंडित छन्नूलाल मिश्र का परिचय कराते हुए बताया कि उनकी जीवन यात्रा तीन अगस्त 1936 से शुरू होकर दो अक्टूबर 2025 को समाप्त होती है। वह नरेन्द्र मोदी के चुनाव में प्रस्तावक रहे। एक छोटे से कमरे में लोग उनसे मिलने को आतुर रहते थे। वह सबसे पूछते थे का सुनबा बचुआ।

यतीन्द्र मिश्र बात आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि छन्नूलाल का अर्थ है बनारस। उन्होंने किराना घराने से सीखा। ठाकुर जयदेव सिंह ने उन्हें आगे बढ़ाया, लेकिन किराना उनको अपना मानने को तैयार नहीं। वह पूरा का पूरा बनारस थे। जैसे लव-कुश ने पूरी रामायण गाकर सुनाई, उसी के वाहक रहे पंडित छन्नूलाल।

लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने पं.छन्नूलाल मिश्र के साथ अपने अनुभव साझा किए। बताया कि कई बार उनसे मुलाकात हुई। उनके जीवन के कई रंग देखे हैं। उनमें असाधारण पांडित्य कला परंपरा का दर्शन होता था। वर्ष 1993 में जौनपुर में तत्कालीन जिलाधिकारी प्रदीप कुमार के साले प्रमोद का गाना सुना। उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि पं. छन्नूलाल मिश्र से सीख रहा हूं। बात यहीं समाप्त हो जानी चाहिए थी, लेकिन प्रदीप कुमार का पूरा परिवार एक घंटे तक पंडितजी की बात करता रहा। इस प्रकार उनसे पहला साक्षात्कार हुआ।

मालिनी अवस्थी ने बताया कि कुछ दिन बाद हम लोग बनारस आ गए। वहां एक जगह प्रस्तुति दे रही थी कि होली खेलौ रे नंदलालों के लाल, इतने में एक व्यक्ति ने बुला लिया। बोले इधर आओ, तुम नए कलेक्टर की दुल्हिन हो का। बताया कि इसमें मात्रा छूट गई है। दो दिन बाद अप्पाजी को बताया तो उन्होंने कहा कि जरूर पं.छन्नूलाल होंगे। मालिनी बताती हैं कि पंडितजी ने अपनी शैली स्वयं गढ़ी। संगीत की राह नदी की धारा जैसी होती है, जो अपनी राह बनाती चलती है। शास्त्रीयता में जो रस खो गया था, उसे पंडितजी अपने साथ लेकर आए।

वह सौ में 70 प्रतिशत मुजफ्फरपुर के थे। 40 वर्ष की आयु में वह बनारस आए। दिग्गजों से लोहा लिया। संगीत में रस नहीं तो कुछ नहीं है, उस लिहाज से पंडितजी में रस ही रस था। आत्मप्रकाश ने प्रश्न किया कि छन्नूलाल को देर से पहचान मिली, जिसे यतीन्द्र ने सिरे से खारिज कर दिया। कहा कि यह तो भाग्य की बात है। गद्य की ठुमरी शास्त्रीय गायन में निषेध थी, लेकिन पंडितजी ने उसे गाया। राजन-साजन मिश्र के मुंबई जाने के बाद खाली स्थान को छन्नूलान ने भरा।
गुरु पर बात आई तो पुरजोर असहमति जताई
अपने वक्तव्य के दौरान यतीन्द्र ने जब बनारस के सांगीतिक मूर्धन्यों के शहर से दुराव की बात की तो उसमें गिरिजा देवी के कोलकाता जाने का भी जिक्र किया। इस पर मालिनी अवस्थी ने कहा कि मैं इस बात पर पूरी असहमति जताती हूं कि अप्पा जी का बनारस से कोई दुराव हुआ। उत्तरदायित्वों के निर्वहन के लिए उन्हें कोलकाता जाना पड़ता था, लेकिन बनारस सदा उनके साथ रहा। एक किस्सा सुनाते हुए उन्होंने बताया कि अप्पा जी ने कहा था, महादेव की नगरी में गिरिजा(पार्वती) ही न रहेंगी तो क्या शिव स्वयं यहां रहेंगे।
...तो 50 हजार ही पकड़ लेते
यतीन्द्र मिश्र ने बताया कि लखनऊ में एक कार्यक्रम होना था, जिसका पूरा बजट पांच लाख रुपये था। नवनीत सहगल ने कहा कि छन्नूलाल मिश्र से बात कर लें। जब उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि पांच लाख रुपये लेंगे। यतीन्द्र ने उनसे कहा कि दो लाख दे सकते हैं। बाद में कार्यक्रम में राजन-साजन मिश्र को बुलाया गया। कुछ अंतराल के बाद एक दिन छन्नूलाल मिश्र मिले तो उन्होंने कहा कि कुछ कम कर कार्यक्रम में बुला लेते। यतीन्द्र ने उनसे कहा कि मात्र 50 हजार रुपये उस कार्यक्रम के लिए दूसरे कलाकार को दिए गए, जिस पर पंडितजी बोले हमसे बता देते तो हम इतने ही रुपये पकड़ लेते।
बाइयां सीखती थीं परंपरा
यतीन्द्र ने एक रोचक किस्सा सुनाया। बताया कि बनारस के मुइनुद्दीन की परंपरा वहां की बाइयां सीखती थीं। वह सबको सिखा देते थे, लेकिन इस बात से दुखी थे कि वे उसे चुरा लेती हैं। बनारस में चलन था कि जो लुप्त है, उसे लुप्त रहने दो। कोई जान न पाए। बाद में पं. छन्नूलाल ने इसे सबके लिए खोल दिया। आत्म प्रकाश मिश्र ने बताया कि दिल्ली में आयोजित दैनिक जागरण के एक कार्यक्रम में छन्नूलाल आए थे। तभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आगमन होता है, जिस पर पंडितजी ने झट से पूछा कैसन बा। मोदी ने सब ठीक कहकर उन्हें उत्तर दिया।
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