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पाक के लिए जासूसी करने वाला अख्तर के हैं इतने कारनामें कि सुनकर रह जाएंगे दंग, 19 हजार में बना देता वैज्ञानिक, एमबीए तक की मिलती डिग्री

cy520520 4 day(s) ago views 280

  

यहां चंद हजार रुपये में किसी को भी \“\“वैज्ञानिक\“\“ बनाया जा सकता था।



जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। जमशेदपुर के मानगो स्थित एशिया इंटरनेशनल ह्यूमन रिसोर्स कंसल्टेंसी का संचालक मोनाजिर खान सिर्फ जासूसों का मददगार ही नहीं, बल्कि एक ऐसी फैक्ट्री चला रहा था जहां चंद हजार रुपयों में किसी को भी \“\“वैज्ञानिक\“\“ बनाया जा सकता था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

मुंबई क्राइम ब्रांच की जांच में खुलासा हुआ है कि मोनाजिर ने परमाणु जासूसी के आरोपी अख्तर हुसैन को महज 19 हजार रुपये में एक नई पहचान \“\“एलेक्जेंडर पामर\“\“ दी। उसने न सिर्फ अख्तर के लिए एक नहीं, बल्कि तीन-तीन फर्जी पासपोर्ट, आधार और पैन कार्ड बनाए, बल्कि उसे भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) का वैज्ञानिक साबित करने के लिए फर्जी डिग्रियों की पूरी खेप तैयार की थी।

मुंबई क्राइम ब्रांच ने 25 अक्टूबर को मोनाजिर को उसके मानगो चौक स्थित कार्यालय से गिरफ्तार किया था। उसकी निशानदेही पर कार्यालय से सात डिजिटल स्टोरेज डिवाइस, कंप्यूटर और कई दस्तावेज जब्त किए गए हैं।

जांच में पता चला है कि मोनाजिर ने 2016-17 में अख्तर के लिए यह पूरा फर्जीवाड़ा किया था। अख्तर की साख को मजबूत दिखाने के लिए उसने 10वीं, 12वीं, बीएससी, बीई (मैकेनिकल) और यहां तक कि एमबीए की फर्जी डिग्रियां भी तैयार की थीं।

इन्हीं दस्तावेजों के सहारे अख्तर 2017 से 2025 के बीच कई देशों की यात्रा करने में सफल रहा। जांच एजेंसियों को अब शक है कि मोनाजिर का गोरखधंधा सिर्फ हुसैनी बंधुओं तक ही सीमित नहीं था।

उसके कार्यालय से मिले सबूत इस ओर इशारा कर रहे हैं कि वह झारखंड में बड़े पैमाने पर फर्जी शैक्षणिक प्रमाण पत्र और पहचान पत्र बेचने का रैकेट चला रहा था। पुलिस अब जब्त किए गए डिजिटल डिवाइस का फारेंसिक विश्लेषण कर रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि मोनाजिर ने और कितने लोगों को इस तरह के फर्जी दस्तावेज मुहैया कराए हैं और वे लोग कौन हैं।

मोनाजिर शनिवार तक मुंबई पुलिस की हिरासत में है, जहां उससे लगातार पूछताछ की जा रही है। उसकी गिरफ्तारी ने जमशेदपुर में चल रहे कंसल्टेंसी सेंटरों की आड़ में होने वाले फर्जीवाड़े की पोल खोल दी है।

यह मामला अब सिर्फ जासूसी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह एक बहु-राज्यीय फर्जीवाड़ा और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा एक गंभीर मुद्दा बन गया है, जिसकी जांच मुंबई, दिल्ली और झारखंड पुलिस मिलकर कर रही है।
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