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पीके और ओवैसी की एंट्री से उड़ सकती है राजग और महागठबंधन की नींद, क्या काम करेगा मुस्लिम फैक्टर?

Chikheang 2025-10-13 22:37:14 views 938

  

प्रशांत किशोर और असदुद्दीन ओवैसी।



संवाद सहयोगी, कटिहार। बिहार-पश्चिम बंगाल की सीमा पर अवस्थित कटिहार जिले के सभी सात विधानसभा सीटों पर मुस्लिम फैक्टर हमेशा से प्रभावी रहा है। मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण किसी भी प्रत्याशी की हार-जीत का पैमाना होता है। काफी हद तक चुनावी समीकरण को प्रभावित करता है। ऐसे में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान और राष्ट्रीय प्रवक्ता आदिल हुसैन द्वारा कटिहार जिले के सात में से पांच विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार देने की घोषणा का सबसे अधिक असर महागठबंधन पर पड़ सकता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

एआईएमआईएम की इस घोषणा ने सीमांचल में महागठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। गौर करने वाली बात यह है कि सीमांचल के चार जिलों में से पार्टी ने सबसे अधिक पांच प्रत्याशियों को कटिहार जिले में ही उतारने की घोषणा की है। इसमें बलरामपुर, कदवा, मनिहारी, प्राणपुर और बरारी शामिल है।

ओवैसी की पार्टी पूर्णिया जिले से तीन, किशनगंज जिले से चार और अररिया जिले से दो प्रत्याशियों को मैदान में उतार रही है। साल 2020 के चुनाव में बलरामपुर, मनिहारी और कदवा में महागठबंधन ने जीत का परचम लहराया था। प्राणपुर सीट पर 1.5 प्रतिशत की मार्जिन ने भाजपा को जीत मिली थी। इधर, प्रशांत किशोर की जन सुराज पाटी ने प्राणपुर सीट पर उम्मीदवार उतार राजग की बीपी भी बढ़ा दी है।
प्राणपुर विधानसभा:

प्राणपुर में बदल सकता समीकरण

प्राणपुर विधानसभा में जनसुराज पार्टी और औवेसी की उपस्थिति चुनावी समीकरण बदल सकती है। जनसुराज ने निषाद जाति पर भरोसा दिखा कुणाल निषाद उर्फ सोनू सिंह को टिकट दिया है। वही ओवैसी की पार्टी भी प्राणपुर विधानसभा में अपना उम्मीदवार दे रहे है।

प्राणपुर विधानसभा में लगभग 50-50 पर एच व एम हैं। मलहा और केवट जाति का वोट भी लगभग 18 प्रतिशत है। ऐसे में दोनों पार्टी राजग और महागठबंधन को टेंशन दे सकती है। मामूली उलट फेर चुनावी नतीजा प्रभावित कर सकता है।  
कदवा विधानसभा

कदवा में बढ़ सकती महागठबंधन की परेशानी

कदवा विधानसभा में ओवैसी की एंट्री महागठबंधन को टेंशन बढ़ाने वाली है। कुछ दिन पूर्व कदवा से सटे बारसोई में औवेसी की सभा में हुजूम उमड़ा था। यह क्षेत्र बलरामपुर विधान सभा अंतर्गत आता है, लेकिन इसका संदेश यहां भी पहुंचा। 52-48 एच-एम मतदाता वाले कदवा विधानसभा में फिलवक्त कांग्रेस का कब्जा है, लेकिन स्थानीय और बाहरी का विवाद गरम है। ऐसे में ओवैसी विक्षुब्धों का चहेता बनकर महागठबंधन के रास्ते में रोड़ा खड़ा कर सकते हैं।  
बलरामपुर विधानसभा

संवाद सूत्र, बारसोई: मुस्लिम बाहुल्य बलरामपुर विधानसभा चुनाव का मिजाज फिलवक्त बदला नजर आ रहा है। इस बार त्रिकोणीय मुकाबला की संभावना बनती दिख रही है। एएमआईएम के मैदान में उतरने की घोषणा महागठबंधन की नींद उड़ा दी है। यहां 60-40 एम और एच के मतदाता हैं।

ओवैसी की सभा में बड़ी संख्या में हुजूम आया था। इससे समीकरण बदलने का संकेत मिलने लगा है। हालांकि यह भी सच है कि 2015 के चुनाव में भी एएमआईएम ने उम्मीदवार उतारा था लेकिन ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पाए थे। उस समय मात्र 7000 वोट पर सिमट गए थे।
मनिहारी विधानसभा

मनिहारी विधानसभा क्षेत्र में 60-40 एच-एम का रेसियो है। यहां ओवैसी की मौजूदगी महागठबंधन को टेंशन देगी। हालांकि पिछले चुनाव में भी ओवैसी ने यहां उम्मीदवार उतारा था, लेकिन महागठबंधन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा था। इस बार मतदाताओं के बदले मिजाज के बीच ओवैसी की एंट्री महागठबंधन को तनाव दे सकती है।  
बरारी विधानसभा

बरारी विधानसभा में 68 प्रतिशत एच और 32 प्रतिशत एम मतदाता हैं। यहां एम-वाई की संख्या 42 प्रतिशत है। यही कारण है कि माय समीकरण यहां मजबूत है। अब ओवैसी की इंट्री इस समीकरण में अगर सेंधमारी करती है तो राजग के लिए बल्ले-बल्ले हो सकता है। यहां एम फैक्टर हमेशा से महागठबंधन के साथ ही रहा है। वाई फैक्टर इधर-उधर होता रहा है। ऐसे में ओवैसी के आने से महागठबंधन से वाई फैक्टर के खिसकने से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। पिछले 2020 चुनाव में भी औवेसी की मौजूदगी का नुकसान राजद को उठाना पड़ा था और जदयू की जीत हुई थी।
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