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पक्षी भी उत्तराखंड की हसीन वादियों और आबोहवा के दीवाने, प्रवासी पक्षियों का बना पसंदीदा ठिकाना

LHC0088 8 hour(s) ago views 1012

  



जागरण टीम, देहरादून। उत्तराखंड की हसीन वादियां सिर्फ देशी-विदेशी पर्यटकों को ही आकर्षित नहीं कर रहीं, प्रवासी पक्षी भी यहां की आबोहवा के दीवाने हैं। विशेषकर टिहरी झील, आसन बैराज, नैनीताल, कार्बेट टाइगर रिजर्व, राजाजी नेशनल पार्क, लैंसडौन वन प्रभाग, बदरीनाथ क्षेत्र और हरिद्वार का गंगा तटीय इलाका प्रवासी पक्षियों को खूब भा रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

हजारों किमी दूर साइबेरिया, मध्य एशिया और यूरोप में ठंड बढ़ने के साथ प्रवासी पक्षी उत्तराखंड की झीलों, नदियों और दलदली क्षेत्रों में नया बसेरा खोजने निकल पड़ते हैं। शीतकाल की दस्तक के साथ इनका आगमन शुरू हो गया है और पानी में इनकी अठखेलियां व हवा में कलाबाजी पर्यटकों को रोमांचित कर रही है।

उत्तराखंड के तमाम जलाशय पक्षियों के लिए आदर्श ठिकाने साबित हो रहे हैं। यहां की पारिस्थितिकी, वनस्पति, झीलों की स्वच्छता और जल की प्रचुरता उन्हें अनुकूल माहौल देती है। यही वजह है कि हर वर्ष अक्टूबर शुरू होते ही ये पक्षी यहां पहुंच जाते हैं और फरवरी तक यहीं प्रवास करते हैं।

वन्यजीव विशेषज्ञ बताते हैं कि नवंबर से फरवरी के बीच 150 से अधिक प्रजाति के पक्षी उत्तराखंड का रुख करते हैं। यहां उन्हें भोजन, गर्माहट और सुरक्षित वातावरण मिल पाता है। नदियों और झीलों पर सुबह सूरज की किरणें पड़ते ही जब परिंदों के झुंड उतरते हैं, तो लगता है कि प्रवासी पक्षियों का मेला-सा लगा है।

प्रवासी पक्षियों का स्थायी आश्रय बन चुका आसन बैराज

विकासनगर (देहरादून) स्थित देश का पहला कंजरवेशन रिजर्व एवं उत्तराखंड की पहली रामसर साइट आसन बैराज प्रवासी पक्षियों का स्थायी आश्रय बन चुका है। यहां हर वर्ष यूरोप, मध्य एशिया, साइबेरिया, रूस, अफगानिस्तान, ईरान और चीन से 140 से अधिक प्रजाति के पक्षी प्रवास पर आते हैं। ये परिंदे अक्टूबर से मार्च तक प्रवास पर रहते हैं। यहां दुर्लभ प्रजाति के पलाश फिश ईगल का एक जोड़ा वर्षों से प्रवास पर आ रहा है। आसन के अलावा डाकपत्थर बैराज और वीरभद्र बैराज ऋषिकेश में भी इन रंग-विरंगे परिंदों की उड़ान प्रकृति प्रेमियों को आनंदित करती है।

बदरीनाथ में यात्रियों का मन मोह रहा लातविया का राष्ट्रीय पक्षी

बदरीनाथ धाम से लेकर माणा पास तक प्रवासी पक्षियों का मधुर कलरव सुनाई देने लगा है। यहां मध्य एशिया से लेकर बाल्टिक क्षेत्र तक के प्रवासी पक्षी आते हैं। बर्ड वाचिंग के शौकीन संजय कुंवर ने बताया कि ग्रीष्मकालीन मेहमानों की वापसी के बाद अब शीतकाल में आने वाले पक्षियों की आमद शुरू हो गई है। बदरीनाथ धाम में बदरीश व शेषनेत्र झील के आसपास इन दिनों जहां वाइट वैगटेल के झुंड यात्रियों का मन मोह रहे हैं, वहीं देवताल में रुडी शेलडक आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। खासकर वाइट वैगटेल (सफेद खंजन) की अठखेलियां लोगों को खूब भा रही हैं। इसे यूरोपीय बाल्टिक देश लातविया के राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा प्राप्त है।

मानसरोवर से राजहंस पहुंचते हैं हरिद्वार

ठंड शुरू होने के साथ हरिद्वार में गंगातट पर प्रवासी पक्षी डेरा डालने लगे हैं। तिब्बत से सुर्खाब और मानसरोवर से राजहंस हरिद्वार पहुंचते हैं। पक्षी विज्ञानी डा. दिनेश चंद्र भट्ट ने बताया कि हरिद्वार के भीमगोड़ा बैराज, मिश्रपुर गंगा घाट, राजाजी टाइगर रिजर्व आदि स्थानों पर प्रवासी पक्षी आते हैं। इनके आने का सिलसिला सितंबर अंतिम सप्ताह से शुरू हो जाता है। सबसे अधिक पक्षी नवंबर और दिसंबर में पहुंचते हैं। यहां पक्षियों की 27 प्रजाति सुदूर देशों और 30 प्रजाति देश के विभिन्न हिस्सों से शीत प्रवास पर आती हैं। कुछ प्रवासी पहुंच गए हैं।

वर्षभर गुलजार रहता है लैंसडौन व कालागढ़ टाइगर रिजर्व

पौड़ी जिले में कार्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी नेशनल पार्क के मध्य अवस्थित लैंसडौन वन प्रभाग वैसे तो हाथियों के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन यहां का वातावरण प्रवासी पक्षियों को भी खूब भाता है। कालागढ़ टाइगर रिजर्व में भी प्रवासी पक्षियों की मधुर आवाज गूंजती रहती है। पक्षी विशेषज्ञ राजीव बिष्ट बताते हैं कि अन्य स्थानों पर प्रवासी पक्षी किसी खास मौसम में आते हैं, लेकिन लैंसडौन वन प्रभाग में वर्षभर इनकी आमद बनी रहती है। अब सर्दी शुरू होते ही इसमें बढ़ोतरी हो गई है। जैसे-जैसे ठंड बढ़गी, अप्रवासियों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। लैंसडौन वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी जीवन दगाड़े ने बताया कि प्रवासी परिंदों ने यहां चहचहाना शुरू कर दिया है।

समय के हैं पाबंद

डा. दिनेश चंद्र भट्ट ने बताया कि पक्षियों के मस्तिक के \“हाइपोथेलेमस\“ में लगी जैविक घड़ी इनको प्रवास के लिए आने की आंतरिक प्रेरणा देती हैं। इसी की मदद से वह वर्षों पुराने पारंपरिक रास्ते से झुंड के रूप में यहां पहुंचते हैं।

आर्थिकी को भी सहारा

पहले लोग इन पक्षियों को सिर्फ अजनबी मेहमान समझते थे, लेकिन अब उन्हें इनका महत्व समझ आने लगा है। कई जगह ईको-टूरिज्म समिति बनाई गई हैं, जो इन पक्षियों की सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दे रही हैं। पर्यटक भी अब पक्षी-दर्शन को लेकर यहां पहुंचने लगे हैं, जिससे अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिल रही है। सर्दियों में ऐसे स्थानों पर दूरबीन और कैमरों के साथ पक्षी प्रेमियों की भीड़ देखी जा सकती है।

प्रवास पर आने वाले प्रमुख पक्षी

रुडी शेलडक (सुर्खाब), ब्लैक स्ट्रोक, गूजेंडर, स्नोई ब्राउड फ्लाई कैचर, चेस्टनट हेडेड तिसिया, पलाश फिश ईगल, वाल क्रीपर, चाइनीज रूबी थ्रोट, सिल्वर ईयर्ड मीसिया, रिवर टर्न, कानल ग्रीन शैंक, रूफस बिल्ड नीलतवा, स्टैपी ईगल, स्लेटी ब्लू फ्लाई कैचर, ग्रे-बिल्ड टिसिया, ब्राउन डिपर, रूफस जार्जेट फ्लाईकैचर, स्पाटेड फ्राकटेल, नार्दन शावलर, गैडवाल, यूरेशियन विजन, इंडियन स्पाट बिल्ड डक, रेड क्रस्टेड पोचार्ड, टफ्ड डक, लिटिल ग्रेब, ग्रेट क्रेस्टेड पोचार्ड, राक पिजन, बार हेडेड गूज, मलार्ड, नार्दन पिनटेल्स, ग्रीन बिंग टेल, फेरीजिनस डक, कामन सेंडपाइपर, ग्रेट कारमोरेंट, लिटिल कारमोरेंट आदि।

(इनपुट विकासनगर से राजेश पंवार, कोटद्वार से अजय खंतवाल, हरिद्वार से शैलेंद्र गोदियाल और चमोली से देवेंद्र रावत)
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