Goa Liberation Day: भारतीय सेना ने 36 घंटे में पुर्तगाली शासन को किया था खत्म।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश को 15 अगस्त, 1947 को आजादी मिल गई थी, लेकिन गोवा, दमन और दीव पुर्तगालों के कब्जे में था। पुर्तगाली देश छोड़कर जाने का नाम ले रहे थे। साल 1510 से चला आ रहा पुर्तगाली शासन 1961 तक बिना किसी रुकावट के जारी था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
आजाद भारत के प्रधानमंत्री बनते ही पंडित जवाहर लाल नेहरू ने गोवा, दमन और दीव को आजाद कराने के लिए बातचीत की, लेकिन पुर्तगाल का तानाशाह सालाजार जिद पर अड़ा था कि गोवा उसका हिस्सा है।
गोवा की आजादी के लिए 14 साल तक बातचीत चली। नाकाबंदी की गई और भरसक दबाव भी डाला गया, लेकिन जब कुछ काम नहीं आया तो भारतीय सरकार और सेना के सब्र का बांध टूट गया।
फिर आया 18 दिसंबर 1961 की तारीख, जब भारत ने \“ऑपरेशन विजय\“ शुरू कर धैर्य नहीं, बल्कि निर्णायक शक्ति का परिचय दिया। भारतीय वायुसेना, थलसेना और और नौसेना ने एक साथ मिलकर ऐसा प्रहार किया कि महज 36 घंटे में पुर्तगालियों का 450 साल पुराना शासन उखाड़ फेंका।
यह जीत केवल एक भूभाग की मुक्ति नहीं थी, बल्कि आजाद भारत की सेना के शौर्य, साहस और राष्ट्रीय स्वाभिमान का ऐतिहासिक एलान था। जीत का श्रेय सेना के साथ-साथ गोवा और दमन-दीव के उन क्रांतिकारियों को भी दिया गया था, जिन्होंने दशकों तक जेल काटी, जंगल में छिपे रहे और जान पर खेलकर पुर्तगालियों को कमजोर किया।
लोहिया की गिरफ्तारी पर आजाद गोमांतक दल ने उठाई थी बंदूक
स्वतंत्रता आंदोलन चरम पर था। साल 1946 की बात है। डॉ. राम मनोहर लोहिया पुर्तगाली शासन के खिलाफ सभा करने गोवा पहुंचे तो उन्हें गिरफ्तार कर दिया गया। लोहिया की गिरफ्तारी से गोवा मुक्ति आंदोलन की शुरुआत हुई।
इसके बाद आजाद गोमांतक दल ने बंदूक उठाई। महाराष्ट्र से हथियार लाकर मोहन रानाडे, विश्वनाथ लावांडे और प्रभाकर वैद्य जैसे नौजवानों ने पुर्तगाली पुलिस थानों पर हमला किया।
1946 से शुरू जंग जारी रही। साल 1954 में रणबांकुरों ने दादरा-नगर हवेली को आजाद करा लिया। साल 1955 में मोहन रानाडे पकड़े गए तो 14 साल तक पुर्तगाली जेल में रहे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। पुर्तगाली फौजियों में क्रांतिकारियों का खौफ था, इसलिए जब 1961 में भारतीय सेना ने धावा बोला तो उसका काफी हद का काम पहले से ही आसान हो गया।
सेना ने पुर्तगालियों को संभलने का मौका नहीं दिया
18 दिसंबर, 1961.. घड़ी में देखकर ठीक 12 बजे ऑपरेशन विजय शुरू किया गया था। उत्तर से 17वीं इन्फैंट्री डिवीजन के टैंक ने अटैक किया तो पूर्व से 50वीं पैराशूट ब्रिगेड ने। समुद्री मार्ग से आईएनएस बेटवा, मैसूर और त्रिशूल जैसे युद्धपोत एक साथ आगे बढ़े। सुबह तक दाबोलिम एयरपोर्ट, मापुसा और वास्को पर तिरंगा लहरा रहा था।
पुर्तगाली जहाज \“अफोंसो डी अल्बुकर्क\“ ने अपनी आखिरी लड़ाई लड़ी, पर ज्यादा देर नहीं लड़ पाया। चार घंटे में डूब गया। पुर्तगालियों ने भारतीय सेना का रास्ता रोकने के लिए पुल उड़ा दिए तो हमारे इंजीनियरों ने रातों-रात नए पुल बना दिए।
19 दिसंबर की शाम 8:30 बजे पणजी में गवर्नर जनरल वासालो ई सिल्वा ने सफेद झंडा फहराकर बिना शर्त सरेंडर कर दिया।
दमन सिर्फ 6 घंटे में फतह किया
गोवा के साथ ही दमन-दीव को भी आजाद कराया गया था। दमन को महज 6 घंटे के अंदर भारतीय सेना ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारतीय सेना की मराठा लाइट इन्फेंट्री ने दमन पर सुबह तड़के 4 बजे हमला किया और दोपहर तक दमन का किला फतह कर लिया था।
दीव में बिना गोली चलाए सरेंडर
जब बारी दीव की आई तो दीव में तो पुर्तगाली कमांडर ने बिना गोली चलाए ही सरेंडर कर दिया। दमन और दीव दोनों में कुल मिलाकर सिर्फ 10 पुर्तगाली सैनिक मारे गए थे। जबकि भारतीय सेना ने अपना एक भी सैनिक नहीं खोया था।
इस तरह 19 दिसंबर को ऑपरेशन विजय के जरिये तीनों पुर्तगाली इलाके आजाद करवा लिए गए और भारतीय गणराज्य का नक्शे पर विस्तार हुआ था।
गोवा में आज के दिन लोग फरिया चौक पर फूल चढ़ाते हैं और उन क्रांतिकारियों को नमन करते हैं, जिन्होंने 1940-50 के दशक में जान की बाजी लगाकर गोवा, दमन-दीव को पुर्तगालियों से आजाद कराया था।
पुर्तगाल में वॉन्टेड थे ब्रिगेडियर सगत सिंह
गोवा मुक्ति ऑपरेशन में भारतीय सेना के ब्रिगेडियर सगत सिंह अहम योगदान था। उनके नेतृत्व में टुकड़ी ने पणजी में मोर्चा संभाला था। मजेदार किस्सा तब सामने आया, जब ऑपरेशन विजय के एक दिन बाद कुछ अमेरिकी पर्यटकों ने ब्रिगेडियर सगत सिंह को घेर लिया। कहा- सर, पुर्तगाल में आपके पोस्टर लगे हैं। आपको ढूंढकर लाने वाले को 10 हजार डॉलर का इनाम भी मिलेगा।
यह सुनकर भगत सिंह खिलखिलाकर हंस पड़े और बोले- अगर आप चाहो तो मुझे अपने साथ पुर्तगाल ले जा सकते हो। आखिरकार 10 हजार डॉलर का इनाम जो है। इस पर पर्यटक भी हंस पड़े और बोले- सर, अब तो हम ही पुर्तगाल जाने वाले नहीं हैं। |