नदिया के पार (फोटो-सोशल मीडिया)।
डिजिटल डेस्क, पटना। भोजपुरी भाषा और बिहार की ग्रामीण संस्कृति को राष्ट्रीय पहचान दिलाने वाली कालजयी फिल्म ‘नदिया के पार’ एक बार फिर दर्शकों के बीच लौट रही है। वर्ष 1982 में रिलीज हुई इस बहुचर्चित फिल्म का विशेष प्रदर्शन पटना में किया जाएगा। इसका उद्देश्य बिहार के युवाओं को राज्य की सांस्कृतिक जड़ों, पारंपरिक सामाजिक मूल्यों और लोक-परंपराओं से जोड़ना है। यह आयोजन बिहार सरकार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के अंतर्गत बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
फिल्म विकास निगम लिमिटेड के अधिकारी अरविंद रंजन दास ने बताया कि निगम द्वारा संचालित \“कॉफी विद फिल्म\“ कार्यक्रम के तहत प्रत्येक सप्ताह ऐसी फिल्मों का प्रदर्शन किया जाता है, जो बिहार की संस्कृति, परंपरा और सामाजिक जीवन को प्रतिबिंबित करती हैं।
इसी कड़ी में इस बार ‘नदिया के पार’ को हाउस ऑफ वेराइटी, रीजेंट सिनेमा कैंपस, गांधी मैदान, पटना में प्रदर्शित किया जाएगा। फिल्म प्रदर्शन के साथ-साथ दर्शकों के साथ संवाद और परिचर्चा का भी आयोजन होगा।
राजश्री प्रोडक्शंस के बैनर तले बनी ‘नदिया के पार’ का निर्देशन गोविंद मुनीस ने किया था, जबकि इसके निर्माता ताराचंद बड़जात्या थे। यह फिल्म प्रसिद्ध लेखक केशव प्रसाद मिश्र के उपन्यास ‘कोहबर की शर्त’ पर आधारित है।
ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित इसकी कथा प्रेम, सामाजिक मर्यादा, रिश्तों की गरिमा और परंपराओं को बेहद सादगी और संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करती है।
फिल्म के गीतों ने इसे कालजयी बना दिया। स्वर्गीय रविंद्र जैन द्वारा रचित कर्णप्रिय गीत आज भी लोगों की जुबान पर हैं। विशेष रूप से \“कौन दिशा में लेके चला रे बटोहिया\“ गीत ने भोजपुरी और लोक-संगीत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। यही कारण है कि चार दशक बाद भी यह फिल्म नई पीढ़ी को उतनी ही आकर्षित करती है, जितनी अपने समय में करती थी।
इस विशेष कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के सचिव प्रणव कुमार होंगे। कार्यक्रम की निवेदिका बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम लिमिटेड की महाप्रबंधक रूबी होंगी। आयोजन के दौरान “बिहार की क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में, अपनी जड़ों से जुड़ाव” विषय पर एक परिचर्चा भी आयोजित की जाएगी, जिसमें शहर के कला, साहित्य, संगीत और सिनेमा जगत से जुड़े गणमान्य लोग भाग लेंगे।
उल्लेखनीय है कि ‘नदिया के पार’ भोजपुरी भाषा की मौलिक पहचान, संवादों की सरलता और लोक-संस्कृति की सौंधी खुशबू को सशक्त रूप से सामने लाती है। यह फिल्म आज भी युवाओं के लिए एक सांस्कृतिक दस्तावेज की तरह है, जो उन्हें अपनी भाषा, परंपरा और सामाजिक मूल्यों पर गर्व करना सिखाती है। |