बिहार विधानसभा चुनाव 2025। फोटो जागरण
अरुण अशेष, पटना। बिहार विधानसभा 2025 का चुनाव रिकार्ड मतदान के साथ-साथ सकारात्मक मुद्दों को केंद्र में रखने के लिए भी याद किया जाएगा। पहली बार हर आदमी के कल्याण और रोजी-रोजगार को राजनीतिक दलों ने केंद्रीय मुद्दा का दर्जा दिया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इससे पहले तो नारा से ही काम चला लिया जाता था। वोट देने की अपील कहीं से शुरू हो, अंत जन कल्याण से ही हुआ। दोनों प्रमुख गठबंधनों-एनडीए और महागठबंधन ने पूरे प्रचार में रोजी-रोजगार के आश्वासन को गारंटी के रूप में प्रस्तुत किया।
इसी बहाने श्रमिकों या आम बिहारियों का प्रवासन भी चुनाव के केंद्र में आ गया। रोजी-नौकरी के आश्वासन पहले भी दिए जाते थे। तब आरक्षण की चर्चा होती थी। इस बार आरक्षण के साथ-साथ नौकरी की गारंटी की भी चर्चा हुई।
पहले आरक्षण की चर्चा मात्र से विवाद की आशंका होती थी। इस बार महागठबंधन ने जब आरक्षण का दायरा बढ़ाने का वादा किया किया, कहीं से नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई।
राजद को लंबे समय से मुस्लिम और यादव के साथ जोड़कर देखा जाता है। इसके नेता तेजस्वी यादव ने हरेक भाषण में सभी जाति के कल्याण की घोषणा की। सबसे बड़ी उपलब्धि यह मानी जा सकती है कि चुनाव में राजनीतिक दलों ने जाति के बदले वर्ग को संबोधित किया।
महिला, युवा, छात्र, किसान, उद्यमी, कारीगर, व्यवसायी आदि वर्ग के कल्याण की भावी योजनाएं उनके घोषणा पत्र में दर्ज की गईं। वोट देने की अपील में भी वर्ग की चर्चा हुई। बाढ़ और सूखा-राज्य की बड़ी आबादी के लिए गंभीर समस्या है।
इनके स्थायी निदान का भरोसा दिया गया। मतदान के दौरान आम लोगों से बातचीत के आधार पर जो तस्वीर उभरकर सामने आई, उसका संदेश भी यही है कि जातियों के बदले लोगों ने अपने तुरंत या दीर्घकालिक लाभ को प्राथमिकता दी।
बहुत विधानसभा क्षेत्रों में यह भ्रम दूर हुआ कि अमुक-अमुक जातियों के लोग किसी खास दल के बंधुआ वोटर हैं। जाति की तरह धर्म के आधार पर मतदान की धारणा भी कई विधानसभा क्षेत्रों में खंडित हुई। सबसे बड़ी बात यह कि मतदाताओं ने भावना के बदले लाभ के पक्ष में निर्णय किया।
चुनाव में दोनों गठबंधनों को बहुत पसीना बढ़ाना पड़ा है। दोनों गठबंधन जरूर चाहेंगे कि सरकार बनाने का अवसर मिला तो घोषणा पत्रों और चुनावी आश्वासनों को पूरा करें। यह होता है तो राज्य में नई राजनीतिक परिपाटी की नींव पड़ेगी।
कम काम करने वाले या पार्टी के वोट के भरोसे पांच साल गुजारने वाले विधायकों को खदेड़ने और खरी-खोटी सुनाने की घटनाएं खूब हुईं। उम्मीद की जा सकती है कि जनता का यह रुख परिणाम में भी दिखाई देगा। इसका मतलब यह है कि इस बार जो विधायक बनेंगे, वे अगले पांच वर्ष तक काम करेंगे। यह भी इस चुनाव के सकारात्मक पक्ष में लिखा जाएगा।
दोनों तरफ से मिला आश्वासन
महागठबंधन-तेजस्वी प्रण
- हर घर में सरकारी नौकरी
- पांच साल में सवा करोड़ रोजगार का सृजन
- ग्रेजुएट-पोस्ट ग्रेजुएट बेरोजगारों को क्रमश: दो और तीन हजार का मासिक भत्ता
- संविदा कर्मियों को स्थायी नौकरी
- हरेक पंचायत में एमएसएमइ के तहत तीन सौ रोजगार का सृजन
एनडीए: संकल्प पत्र
- हर युवा को नौकरी एवं रोजगार
- हर जिले में फैक्ट्री, हर घर रोजगार
- 100 एमएसएमई पार्क, 50 हजार कुटीर उद्योग, वोकल फार लोकल को बढ़ावा
- पूर्वी भारत का नया टेक हब बनेगा बिहार
- औद्योगिक क्रांति की गारंटी
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