1981 में हुई थी जेपी ग्रुप की शुरुआत
नई दिल्ली। जेपी ग्रुप की कई कंपनियां आज दिवालिया प्रोसेस (Jaypee Group Insolvency) से गुजर रही हैं। पर एक समय इस ग्रुप का सितारा काफी बुलंद था। जेपी ग्रुप की शुरुआत अब से 44 साल पहले सन 1981 में पेशे से इंजीनियर जयप्रकाश गौड़ (Jaiprakash Gaur) ने की थी। इस ग्रुप को शुरू करने के लिए उन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ दी थी।
नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने कई सेक्टरों में बिजनेस का विस्तार भी किया। पर एक गलती की वजह से उनका कारोबारी साम्राज्य डूब गया। क्या थी वो गलती, आइए जानते हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
अलग-अलग सेक्टरों में कारोबार फैलाया
1981 में शुरुआत के बाद धीरे-धीरे जेपी ग्रुप ने कई सेक्टरों में बिजनेस फैलाया। इनमें सीमेंट, पावर, रियल एस्टेट, होटल, एक्सप्रेसवे और अस्पताल शामिल हैं। साथ ही शिक्षण संस्थान सेगमेंट में भी एंट्री की। 1981 में ही ग्रुप ने पहला होटल खोला, 1986 में सीमेंट सेक्टर में एंट्री की और 1992 में पावर सेक्टर में कदम रखा। फिर 2008 में यमुना एक्सप्रेसवे का निर्माण शुरू किया
कई बड़े प्रोजेक्ट्स किए शुरू
जेपी ग्रुप ने 21वीं सदी की शुरुआत में रियल एस्टेट सेक्टर में एंट्री की और नोएडा, ग्रेटर नोएडा में बड़े प्रोजेक्ट्स शुरू किए। पर इनमें से कई प्रोजेक्ट्स कंप्लीट नहीं हो पाए। फिर साल 2006-2012 के दौरान ग्रुप ने 60,000 करोड़ रु का निवेश किया।
इस निवेश पर बाद में ग्रुप को भारी नुकसान हुआ। इसके नतीजे में कर्ज बढ़ा और 2013 में ग्रुप को सीमेंट प्लांट बेचने पड़े। प्रोजेक्ट पूरा न कर पाना इस ग्रुप की सबसे बड़ी गलती रही। रही सही कसर कर्ज और घाटे ने पूरी कर दी और ये बिजनेस ग्रुप डूब गया।
बढ़ता गया घाटा
समय बीतने के साथ-साथ ग्रुप का घाटा बढ़ता गया। इसी से कर्ज में भी बढ़ोतरी हुई। फिर रियल एस्टेट मार्केट में मंदी घाटे और कर्ज का एक और कारण बन गई। अनुमान है कि जयप्रकाश एसोसिएट्स पर 54,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है।
कर्ज चुकाने के लिए इसने गुजरात सीमेंट प्लांट, बोकारो सीमेंट और हाइड्रो पावर प्लांट्स को बेचा और अब इसकी कंपनियां ही बिक रही हैं।
70वें सबसे अमीर भारतीय थे जयप्रकाश गौड़
2012 में फोर्ब्स मैगजीन ने जयप्रकाश गौड़ को भारत के 70वें सबसे अमीर व्यक्ति के रूप में रैंक किया था। तब उनकी अनुमानित नेट वर्थ उस समय 855 मिलियन डॉलर (आज के हिसाब से भारतीय करेंसी में 7582 करोड़ रुपये) थी।
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