फिल्म जस्सी वेड्स जस्सी का रिव्यू (फोटो-इंस्टाग्राम)
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। आज जब ज्यादातर कॉमेडी फिल्में बड़े-बड़े सेट्स, चटक रंग और ऊंची आवाज में हंसी ढूंढने की कोशिश करती हैं, वहीं इस बीच एक ऐसी फिल्म आई जो बिना ज्यादा दिखावे के हमारे होठों पर मुस्कान लाने में कामयाब रही। फिल्म का नाम है जस्सी वेड्स जस्सी। परन बावा की यह फिल्म हमें 90 के दशक की उस सादगी में ले जाती है जहां कहानी, किरदार और रिश्ते ही असली नायक हुआ करते थे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
क्या है फिल्म की कहानी?
फिल्म की पृष्ठभूमि 1996 के हल्द्वानी (उत्तराखंड) की है। जसप्रीत उर्फ जस्सी (हर्षवर्धन सिंह देओ) एक ऐसा लड़का है जो सच्चे प्यार के सपने देखता है। किस्मत उसे मिलवाती है जसमीत (रहमत रतन) से, लेकिन उनकी मोहब्बत के बीच आ जाता है एक और जस्सी — जसविंदर (सिकंदर खेर)। इसके बाद शुरू होती है गलतफहमियों, ड्रामे और हंसी से भरी एक हल्की-फुल्की जंग की।
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इस दौरान जस्सी टकरा जाता है सेहगल (रणवीर शौरी) और उनकी पत्नी स्वीटी (ग्रूशा कपूर) से, जिनकी शादी पहले से ही ऊबन के दौर से गुजर रही है। सबके जीवन में जो तूफान आता है, वही असल में फिल्म की असली मजा देता है।
पर्दे पर ताजगी लाएगी रहमत रतन की जोड़ी
फिल्म की जान हैं इसके कलाकार। हर्षवर्धन सिंह देओ ने जस्सी को मासूमियत और सच्चाई के साथ निभाया है। उनकी और रहमत रतन की जोड़ी पर्दे पर नई और ताजगीभरी लगती है। रहमत अपने हावभाव और नेचुरल एक्टिंग से मन मोह लेती हैं। रणवीर शौरी, हमेशा की तरह, अपनी कॉमेडी और शार्प टाइमिंग से दृश्य चुरा ले जाते हैं। सिकंदर खेर का किरदार शुरू में गंभीर लगता है लेकिन आगे जाकर वह कॉमिक सरप्राइज़ देता है। सुदेश लेहरी और मनु ऋषि चड्ढा अपनी देसी कॉमेडी से फिल्म को और जमीनी बना देते हैं, जबकि ग्रूशा कपूर हर सीन में सहज और प्रामाणिक लगती हैं।
कैसा है फिल्म का संगीत?
संगीत फिल्म का मजबूत पहलू है। चमकीला, मेकअप ना लाया कर, भूल जावांगा और इश्क-ए-देसी जैसे गाने फिल्म की थीम के साथ खूबसूरती से मेल खाते हैं। इन धुनों में पुराने जमाने की मिठास और आज की ऊर्जा दोनों झलकती हैं। \“चमकीला\“और \“मेकअप ना लाया कर\“पहले ही सोशल मीडिया पर पॉपुलर हो चुके हैं। आर्ट डायरेक्शन और लोकेशन डिज़ाइन हल्द्वानी की असलियत दिखाते हैं गलियों की रंगत, शादी-ब्याह की चहल-पहल, और 90s की खुशबू हर फ्रेम में महसूस होती है।
भावनाओं को पर्दे पर उकेरने में कामयाब
परन बावा ने फिल्म को बहुत ईमानदारी से निर्देशित किया है। उन्होंने ह्यूमर को जबरदस्ती नहीं ठूंसा, बल्कि हालातों से निकाला है। फिल्म का सबसे मज़ेदार हिस्सा वह रामलीला से प्रेरित सीन है जो जाने भी दो यारों की याद दिलाता है — बेहद क्रिएटिव और चुटीला। क्लाइमेक्स की ओर कहानी थोड़ी नाटकीय होती है लेकिन वहीं इसकी सबसे बड़ी ताकत भी उभरती है जो है भावनाएं।
कहानी में कहा हैं कमियां?
जस्सी वेड्स जस्सी कोई बड़ी या शोर-शराबे वाली फिल्म नहीं है, लेकिन यह अपने सरल अंदाज़ में बहुत कुछ कह जाती है। यह फिल्म परिवार के साथ बैठकर देखने लायक है — बिना डबल मीनिंग चुटकुलों के, बिना बनावटी भावनाओं के। पहला हिस्सा थोड़ा खिंचा हुआ लगता है, मगर दूसरा हाफ पूरी तरह मनोरंजक और दिल छू लेने वाला है। यह फिल्म हमें याद दिलाती है कि असली कॉमेडी दिल से आती है, न कि शोर से। अगर एक ईमानदार, मनोरंजक और प्यारी फैमिली कॉमेडी देखना चाहते हैं तो सिनेमाघरों में इसका आनंद जरूर लें।
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