रेटिना पर शोध की जानकारी देते बीएचयू आइआइटी मैथमेटिकल साइंस विभाग के डॉ. राजेश कुमार पांडेय। जागरण
मृत्युंजय मिश्रा, प्रयागराज। मानव शरीर के भीतर छिपे रोगों का रहस्य अब खून की जांच, एक्सरे या लंबी रिपोर्टों में नहीं, आंख की रेटिना की सूक्ष्म नसों से जानेंगे। आइआइटी बीएचयू के डिपार्टमेंट ऑफ मैथमेटिकल साइंस के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजेश कुमार पांडेय ने ऐसी स्वचालित कंप्यूटर तकनीक विकसित की है, जो रेटिना की सबसे बारीक रक्त वाहिकाओं को भी स्पष्ट रूप से पहचान लेती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
वे नसें जो संकेत देती हैं कि शरीर में मधुमेह, रक्तचाप (बीपी), धमनी काठिन्य (आक्सीजन युक्त रक्त पहुंचाने वाली धमनियां मोटी और सख्त हो जाती हैं, जो रक्त प्रवाह को बाधित कर हृदय रोग या स्ट्रोक का कारण बन सकता है) चुपचाप पनप रहे हैं।
मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआइटी) में आयोजित सेमिनार में पेश की गई यह शोध तकनीक ‘पंक्चर्ड विंडो’ एल्गोरिद्म पर आधारित है, जो कम रोशनी और कम कंट्रास्ट वाली छवियों में भी कामयाबी से नसों को उभार देती है, जबकि परंपरागत तकनीकें असफल हो जाती हैं। लंदन स्थित पब्लिकेशन एल्सेवियर के प्रतिष्ठित जर्नल कंप्यूटर इन बायोलाजी मेडिसिनमें प्रकाशित यह शोध अब पेटेंट की ओर बढ़ रहा है और चिकित्सा निदान की दुनिया में नई क्रांति का संकेत दे रहा है।
मानव रेटिना की रक्त वाहिकाएं बेहद पतली और मुड़ी-तुड़ी होती हैं। सामान्य परिस्थितियों में, खासकर कम रोशनी या कम कंट्रास्ट वाली तस्वीरों में इन्हें पहचानना काफी कठिन हो जाता है। अब तक उपयोग किए जाने वाले पारंपरिक लाइन डिटेक्टर एल्गोरिदम इन नसों की पहचान करने में अक्सर चूक जाते थे। इन तकनीकों की मुख्य कमजोरी यह थी कि वे छवि की पृष्ठभूमि को गलत तरीके से समझ लेती थीं, जिसकी वजह से नसों की वास्तविक आकृति और मोटाई सामने नहीं आ पाती थी।
शोधकर्ता डॉ. राजेश कुमार पांडेय ने इस कमजोरी को चुनौती के रूप में स्वीकार किया और समाधान ‘पंक्चर्ड विंडो एल्गोरिद्म’ से खोजा।वह कहते हैं कि यह एल्गोरिदम आंखों के भीतर मौजूद बेहद पतली और अक्सर मुश्किल से दिखाई देने वाली रक्त वाहिकाओं को अत्यंत स्पष्टता से पहचान सकती है। इन रक्त वाहिकाओं में होने वाले सूक्ष्म बदलाव शरीर के संपूर्ण स्वास्थ्य की स्थिति को दर्शाते हैं। चिकित्सा विज्ञान पहले ही यह मान चुका है कि रेटिना की नसें शरीर के दूसरे अंगों में होने वाले परिवर्तनों की झलक देती हैं। मधुमेह, उच्च रक्तचाप, धमनी काठिन्य (आर्टीरियोस्क्लेरोसिस) और कई हृदय संबंधी रोग अक्सर रेटिना की नसों में पहले दिखाई देते हैं।
तीन चरणों में काम करती है तकनीक
सबसे पहले रेटिना की छवि से शोर हटाकर रेटिना की छवि को साफ और स्पष्ट बनाया जाता है।फिर नसों को अलग-अलग गहराई और मोटाई पर परखा जाता है।जैसे कोई चित्रकार हर बार अलग ब्रश से गहराई खोजता हो।अंत में एक विशेष तकनीक से केवल उन पिक्सेल्स को चुना जाता है जो वास्तविक नसों का हिस्सा होते हैं।परीक्षणों पर खरा उतरने के बाद शोधकर्ता इसे मोबाइल एप के रूप में तैयार कर रहे हैं। यानी आने वाले समय में शायद आपका स्मार्टफोन ही आपकी आंख की तस्वीर लेकर बता दे कि आपको कब डाक्टर से मिलना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफल परीक्षण
इस एल्गोरिद्म की परीक्षा चार अंतरराष्ट्रीय डाटासेट्स आरसी-एसएलओ, स्टेयर, चेज-डीबी1 और ड्राइव पर की गई। जिसके परिणाम चौंकाने वाले थे। यह नयी विधि न केवल अन्य स्टेट आफ आर्ट तकनीकों से बेहतर निकली, बल्कि हर परीक्षण में समान सटीकता बनाए रखी। जहां पुराने एल्गोरिद्म कमजोर पड़ते थे, वहीं पंक्चर्ड विंडो एल्गोरिद्म ने धुंधले, जटिल और कम रोशनी वाले क्षेत्रों में रक्त वाहिकाओं को अत्यंत स्पष्टता से पहचान लिया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि यह एक सुपरवाइज्ड एल्गोरिद्म है। यानी इसे बड़े प्रशिक्षण डाटा की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसका अर्थ है कि यह तकनीक उन ग्रामीण अस्पतालों व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी इस्तेमाल की जा सकती है, जहां विशेषज्ञ डॉक्टर और उच्च स्तरीय उपकरण आसानी से उपलब्ध नहीं होते। |