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Raghopur Assembly Seat: तेजस्वी यादव को अपने गढ़ में मिल रही चुनौती! राघोपुर सीट में क्या है माहौल?

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सभा को संबोधित करते हुए तेजस्वी यादव। फाइल फोटो  



रवि शंकर शुक्ला, हाजीपुर। गंगा मैया की गोद में बसा राघोपुर। एक ओर दियारा और दूसरी ओर बिदुपुर का ऊपरी हिस्सा। यहां का चुनावी माहौल हर बार की तरह इस बार भी दो धाराओं में बंटा दिख रहा है। दो यदुवंशियों (राजद के तेजस्वी यादव और भाजपा के सतीश कुमार) के बीच आमने-सामने की लड़ाई है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

जन सुराज पार्टी से चंचल कुमार की उपस्थिति भी चर्चा में है। लालू-राबड़ी के रूप में मुख्यमंत्री देने वाले इस इलाके में इस बार भी इस बात की ही चर्चा खास है : यह मेरा मुख्यमंत्री। एक ओर महागठबंधन के समर्थक तेजस्वी को बिहार का भावी मुख्यमंत्री बता रहे तो दूसरी ओर एनडीए के समर्थक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विकास-गाथा सुना रहे।

पटना से जो राघोपुर चौहत्तर कोस दूर लगता था, उसे गंगा पर सिक्स लेन पुल ने अब गोद में बिठा दिया है। भूमि के बढ़ते मूल्य के साथ क्षेत्र का मान-सम्मान बढ़ा है। इसका असली कारण विकास है, जिसका श्रेय नीतीश को दिया जा रहा।

चुनावी इतिहास बता रहा कि इस क्षेत्र ने पिछले 63 वर्षों से यदुवंशियों पर ही भरोसा जताया है। 2010 में राबड़ी देवी की हार को भूल जाएं, तो लालू परिवार का इसने भरपूर साथ दिया है।

लालू यहां से दो बार (1995, 2000) जीते और राबड़ी देवी भी 2005 में विधायक चुनी गईं। तेजस्वी की पहली और दूसरी जीत यहीं से। इस बार हैट्रिक का प्रयास कर रहे। 2020 में तेजस्वी ने सतीश कुमार यादव को 38,174 वोटों से हराकर राबड़ी देवी की पराजय का बदला लिया था, लेकिन इस बार माहौल तनावपूर्ण और अनिश्चित है।

2010 में सतीश ने यहां राबड़ी को करारी शिकस्त दी थी। इस बार दोनों ओर से जबरदस्त मोर्चाबंदी है, जिसे तेजप्रताप की इंट्री और रोचक बना रही। तेजस्वी ने बड़े भाई तेजप्रताप की महुआ सीट पर उनके विरुद्ध प्रचार किया। प्रत्युत्तर में तेजप्रताप ने राघोपुर में अपनी रैली में भीड़ जुटाकर राजद को सन्नाटे में ला दिया है।

उनके जनशक्ति जनता दल से यहां प्रेम कुमार प्रत्याशी हैं। तेजप्रताप से पहले यहां तेजस्वी के लिए माहौल बनाने पहुंची राबड़ी देवी के वाहन को ग्रामीणों ने रोककर बाढ़, कटाव, सड़क आदि की स्थिति पर प्रश्न किया था। प्रशांत किशोर ने तेजस्वी के लिए “अमेठी जैसी हार” की भविष्यवाणी कर रखी है, लेकिन एक जनसभा के बाद फिर मैदान की ओर रुख नहीं किए।

अलबत्ता केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय आदि एनडीए के नेता “विकास बनाम जंगलराज” का नैरेटिव सेट करने के साथ यादवों में सेंधमारी का प्रयास कर रहे। इलाके में यादवों की बहुलता है, लेकि अनुसूचित जाति और सवर्ण मतदाता हार-जीत में निर्णायक हैं। शुक्रवार को नित्यानंद राघोपुर पहुंचे थे।

यहां जदयू से जुड़े पूर्व जिला परिषद सदस्य सुरेश राय के यहां सभा की थी। इसी बीच शनिवार को तेजस्वी वहां पहुंचे। सुरेश उनके साथ हो लिए। सुरेश कभी लालू के लिए अपनी सीट छोड़ने वाले उदय नारायण राय उर्फ भोला राय के पुत्र हैं। हालांकि, दिवंगत होने के कुछ वर्ष पहले ही समाजवादी नेता एवं तीन बार राघोपुर से विधायक रहे भोला बाबू जदयू में शामिल हो गए थे।

इधर, भाजपा ने बृजनाथी सिंह के पुत्र राकेश सिंह को अपनी पार्टी में शामिल करा दिया। राघोपुर दियारे में विकास की चर्चाओं के बीच लोगों के दर्द भी झलक रहे हैं। करीब पांच हजार करोड़ रुपये की लागत से बने पुल की बात जैसे ही गौतम शुरू करते हैं कि राजाराम कहते हैं कि बाढ़ और कटाव की बात क्यों नहीं करते।

तेजस्वी ने 2200 करोड़ रुपये की रिंग बांध की योजना की मंजूरी दी थी, सरकार ने क्यों ठंडे बस्ते में डाल दिया। महिला रधिया कहती है कि 10 हजार रुपये मिले हैं, पेंशन की राशि बढ़ गई है और मुफ्त का अनाज भी मिल रहा है।

वहीं दूसरी महिला बात को काटते हुए बोलती है कि हमें तो नहीं मिला। छात्र-छााओं का दर्द है कि सरकारी उच्च शिक्षण संस्थान कालेज नहीं है। बाकी लोगों के भी अपने-अपने पक्ष और उसके काट भी हैं।
63 वर्षों से यदुवंशी ही विधायक

यह बिहार का ऐसा विधानसभा क्षेत्र है, जहां पिछले 63 वर्षों से यदुवंशी ही प्रतिनिधित्व कर रहे। लालू यहां से जनता दल के टिकट पर 1995 में जीते। हालांकि, बाद में चारा घोटाले में लालू जेल चले गए।  

बाद में उनकी पत्नी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं। राबड़ी ने 2010 तक राघोपुर का प्रतिनिधित्व किया। 2010 में जदयू से सतीश कुमार ने राबड़ी देवी को पराजित कर दिया। तेजस्वी यादव यहां तीसरी बार मैदान में हैं।
लालू-राबड़ी को लेकर चर्चित हुआ इलाका

राघोपुर वर्ष 1995 में तब चर्चा में आया, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने इसे अपना क्षेत्र चुना। 1980 से 1995 तक लगातार तीन बार विधायक रहे उदय नारायण राय उर्फ भोला राय ने लालू के लिए यह सीट खाली कर उन्हें यहां से चुनाव लड़ने का आफर दिया था। हालांकि, भोला बाबू को इस त्याग का पुरस्कार भी मिला। लालू ने सरकार में उन्हें राज्य मंत्री बनाया और कई बार एमएलसी भी रहे।
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