सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, अब जांच एजेंसियां वकीलों को मनमाने ढंग से समन नहीं भेज सकतीं

cy520520 2025-11-1 12:37:19 views 682
  

जांच एजेंसियां वकीलों को मनमाने ढंग से समन नहीं भेज सकतीं : सुप्रीम कोर्ट  (फोटो- पीटीआई)



जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि ईडी जैसी जांच एजेंसियां अभियुक्तों को कानूनी सलाह देने पर वकीलों को मनमाने ढंग से समन नहीं भेज सकतीं। वकीलों को केवल भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) 2023 की धारा 132 में उल्लेखित अपवादों में ही समन किया जा सकता है और अपवादों को स्पष्ट रूप से बताया जाएगा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
भारतीय साक्ष्य अधिनियम में मुवक्किल और वकील को विशेषाधिकार दिया गया है

सर्वोच्च अदालत ने जांच एजेंसी की ओर से वकील को भेजा गया समन रद करते हुए वकीलों को समन करने के बारे में दिशा-निर्देश भी जारी किया है। यह फैसला प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने मुवक्किलों के सलाह देने पर जांच एजेंसियों, ईडी आदि द्वारा वकीलों को भेजे गए समन के मामले में स्वत: संज्ञान लेकर की गई सुनवाई के बाद दिया।
जांच अधिकारी को सुनिश्चित करना चाहिए कि विशेषाधिकार का उल्लंघन न हो

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अरवfxद दत्तार और प्रताप वेणुगोपाल को ईडी द्वारा समन किए जाने के बाद उठे विवाद और ऐसा ही एक केस कोर्ट में आने पर सुनवाई शुरू की गई थी। शुक्रवार को दिए फैसले में कोर्ट ने कहा कि बीएसए की धारा 132 से 134 तक मुवक्किल और वकील को विशेषाधिकार और संरक्षण दिया गया है। अति उत्साही जांच अधिकारी को सुनिश्चित करना चाहिए कि विशेषाधिकार का उल्लंघन न हो।

कोर्ट ने जारी निर्देशों में कहा है कि बीएसए की धारा 132 में मुवक्किलों को विशेषाधिकार मिला हुआ है, जो विश्वास में वकील के साथ किए गए पेशेवर गोपनीय संवाद (कम्युनिकेशन) को सार्वजनिक नहीं करने के लिए वकील को बाध्य करता है।

मुवक्किल की अनुपस्थिति में, वकील द्वारा मुवक्किल की ओर से इस विशेषाधिकार का प्रयोग किया जा सकता है। किसी आपराधिक मामले में जांच करने वाला अधिकारी या किसी संज्ञेय अपराध की प्रारंभिक जांच करने वाला थाना प्रभारी, अभियुक्त का प्रतिनिधित्व करने वाले किसी वकील को मामले का विवरण जानने के लिए समन जारी नहीं करेगा, जब तक कि वह धारा 132 के तहत किसी अपवाद के अंतर्गत न आता हो।

कोर्ट ने ये भी कहा है कि जब किसी वकील को किसी अपवाद के तहत समन जारी किया जाता है, तो उसमें स्पष्ट रूप से उन तथ्यों का उल्लेख किया जाएगा, जिनको आधार बनाया गया है। साथ ही इसके लिए वरिष्ठ अधिकारी से सहमति ली जाएगी और वह अधिकारी पुलिस अधीक्षक से कम का नहीं होना चाहिए। वह वरिष्ठ अधिकारी समन जारी होने से पहले अपवाद के संबंध में अपनी संतुष्टि लिखित रूप में दर्ज करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल उपकरण पेश करने के बारे में भी निर्देश दिए

जारी समन बीएनएसएस की धारा 528 के तहत न्यायिक समीक्षा के अधीन होगा। कोर्ट ने कहा कि धारा 132 के तहत मुवक्किल का विवरण सार्वजनिक नहीं करने का दायित्व उस वकील पर होगा, जिसे मुवक्किल ने किसी मुकदमेबाजी में या गैर मुकदमेबाजी या मुकदमे के पूर्व सलाह ली होगी। सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल उपकरण पेश करने के बारे में भी निर्देश दिए हैं।

कहा है कि यदि जांच अधिकारी बीएनएसएस की धारा 94 के तहत कोई डिजिटल उपकरण पेश करने का आदेश देता है तो उसे सिर्फ संबंधित क्षेत्राधिकार न्यायालय में ही पेश किया जाएगा और वकील द्वारा डिजिटल उपकरण पेश किए जाने पर, कोर्ट उस पक्षकार को नोटिस जारी करेगा जिसके संबंध में विवरण प्राप्त करने की मांग की गई है। डिजिटल उपकरण को सिर्फ वकील की मौजूदगी में ही खोला जाएगा और उनकी पसंद के विशेषज्ञ व्यक्ति की सहायता से खोला जाएगा।
धारा 134 के तहत संरक्षण पाने के हकदार होंगे

कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कंपनी के कर्मचारी के तौर पर नियुक्त अधिवक्ता यानी इन-हाउस वकील धारा 132 के तहत प्राप्त विशेषाधिकार के हकदार नहीं होंगे क्योंकि वे अधिवक्ता नहीं हैं। हालांकि इन-हाउस वकील अपने नियोक्ता को कानूनी सलाह के बारे में किए गए किसी भी कम्युनिकेशन के लिए धारा 134 के तहत संरक्षण पाने के हकदार होंगे।
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