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जासूस आदिल के मोबाइल में क्या था... जिसे देख चौक गए जांच एजेंसियों के अधिकारी

cy520520 6 day(s) ago views 1156

  

जागरण नेटवर्क, नई दिल्ली/जमशेदपुर। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने एक ऐसे जासूसी नेटवर्क का पर्दाफाश किया है, जिसने वैज्ञानिक बनकर देश के परमाणु प्रतिष्ठानों तक पहुंच बनाई थी। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने सीलमपुर से गिरफ्तार किए गए जमशेदपुर निवासी आदिल हुसैनी के पास से भारतीय परमाणु संस्थानों के नक्शे और गोपनीय दस्तावेज बरामद किए हैं। जांच में खुलासा हुआ है कि आदिल पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ के इशारे पर काम कर रहा था और भारतीय परमाणु प्रतिष्ठानों की जासूसी कर रहा था।   आदिल के मोबाइल से (बीएआरसी) के एक कर्मचारी का नंबर मिला : आदिल के मोबाइल से जांच एजेंसियों को भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) के एक कर्मचारी का नंबर, कई संवेदनशील नक्शे और दस्तावेज मिले हैं। सूत्रों के मुताबिक, उसने रूसी मूल के एक वैज्ञानिक से प्राप्त परमाणु हथियार डिजाइन ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन के एजेंट को बेचे थे। पुलिस अब यह पता लगाने में जुटी है कि उसे इन संस्थानों तक पहुंचाने में किसने मदद की।

जमशेदपुर का रहने वाला, सीमापुरी में बसा परिवार :
आदिल हुसैनी मूल रूप से झारखंड के जमशेदपुर (टाटानगर) का रहने वाला है। दो दशक पहले उसका परिवार दिल्ली के सीमापुरी में आकर बस गया था। जांच एजेंसियों का कहना है कि जमशेदपुर में रहते हुए ही उसने विदेश संपर्कों के जरिए दुबई और अन्य देशों में नेटवर्क बनाया। बाद में इसी नेटवर्क का इस्तेमाल उसने जासूसी और फर्जी दस्तावेज तैयार करने में किया।  विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें जाली दस्तावेजों के जरिए कई बार पाकिस्तान की यात्रा की : जमशेदपुर से निकलकर दुबई तक पहुंचे आदिल ने वहीं से पाकिस्तान और ईरान से संपर्क बनाए। एजेंसियों को शक है कि उसने जाली दस्तावेजों के जरिए कई बार पाकिस्तान की यात्रा की और वहां आइएसआइ एजेंटों से मुलाकात की। उसके पास से एक असली पासपोर्ट और दो फर्जी पासपोर्ट मिले हैं — जिन पर अलग-अलग नाम दर्ज थे: अलेक्जेंडर पामर और अली रजा हुसैन।

भाई अख्तर भी गिरफ्तार, दोनों बने वैज्ञानिक :
आदिल का भाई अख्तर हुसैनी भी इस जासूसी नेटवर्क का हिस्सा बताया जा रहा है। मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच ने हाल ही में अख्तर को गिरफ्तार किया था। दोनों भाई खुद को भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) के वैज्ञानिक बताकर संवेदनशील संस्थानों तक पहुंच बनाते थे।

फर्जी पहचान बनाकर सरकारी संस्थानों से जुड़ने की कोशिश :
पूछताछ में सामने आया कि आदिल और अख्तर दोनों ने फर्जी पहचान बनाकर सरकारी संस्थानों से जुड़ने की कोशिश की। दोनों पहले संयुक्त अरब अमीरात में तेल कंपनियों में काम करते थे, वहीं से उन्होंने जासूसी के एवज में मिली रकम को दुबई में संपत्तियों में निवेश किया।

कई देशों में फैला नेटवर्क :
एजेंसियों को शक है कि आदिल और उसके भाई ने भारत से जुड़ी कई संवेदनशील जानकारियां दूसरे देशों को बेचीं। बरामद दस्तावेजों से यह भी संकेत मिला है कि आदिल के ईरान और रूस के परमाणु संस्थानों से संपर्क थे। जांच में यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि उसकी मुलाकातें कब और किन संस्थाओं से हुईं।

डिजिटल उपकरणों और बैंक खातों की गहन जांच :
आदिल के डिजिटल उपकरणों और बैंक खातों की गहन जांच की जा रही है। पुलिस ने उसे सात दिन की रिमांड पर लिया है ताकि उसकी विदेश यात्राओं, पैसों के स्रोत और संपर्कों का पूरा खुलासा हो सके।

फर्जी पहचान और गहरी साजिश :
आदिल के पास से मिले दस्तावेज बताते हैं कि उसने फर्जी पहचान पत्रों और पासपोर्ट का इस्तेमाल कर कई देशों की यात्रा की। शुरुआती जांच में पाकिस्तान, ईरान और रूस की यात्राओं के सबूत मिले हैं। एजेंसियां यह जांच रही हैं कि क्या उसकी पाकिस्तान यात्रा जासूसी मिशन का हिस्सा थी। यह भी सामने आया है कि उसने दुबई में जासूसी से कमाई रकम से कई संपत्तियां खरीदीं। नकली पासपोर्ट रैकेट में उसकी संलिप्तता की पुष्टि भी हुई है।

देश की सुरक्षा एजेंसियों में सतर्कता बढ़ी :
इस खुलासे के बाद भारतीय खुफिया एजेंसियों ने देश के प्रमुख परमाणु प्रतिष्ठानों की सुरक्षा समीक्षा शुरू कर दी है। ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि जासूस अब वैज्ञानिक या शोधकर्ता बनकर भी देश की सुरक्षा प्रणाली को निशाना बना रहे हैं। जमशेदपुर से निकलकर अंतरराष्ट्रीय जासूसी जाल में फंसे आदिल हुसैनी का मामला अब राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा सबक बन गया है।
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