प्रतीकात्मक तस्वीर।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। पटियाला हाउस स्थित जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत ने अधिवक्ता महमूद प्राचा की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या भूमि विवाद पर वर्ष 2019 के फैसले को धोखाधड़ी से प्रभावित बताते हुए निरस्त करने की मांग की थी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
जिला एवं सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने शनिवार को निर्णय सुनाते हुए कहा कि याचिका कानूनी और तथ्यात्मक गलतफहमी पर आधारित है। अदालत ने स्पष्ट किया कि तत्कालीन मुख्य न्यायमूर्ति ने अपने एक भाषण में भगवान से मार्गदर्शन मांगा था न कि अदालत में वादी बने भगवान श्रीराम से।
कोर्ट ने कहा कि प्राचा ने धर्म और कानून की अवधारणाओं को मिलाकर देखा, जबकि दोनों का स्वरूप अलग है। उन्होंने न तो किसी वास्तविक धोखाधड़ी का सुबूत प्रस्तुत किया और न ही अयोध्या मामले के आवश्यक पक्षकारों को अपनी याचिका में शामिल किया। अदालत ने यह भी कहा कि किसी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सिविल कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती।
कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह मुकदमा न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है और ऐसे मामलों से अदालतों के बहुमूल्य समय की बर्बादी होती है। कोर्ट ने कहा कि एक वरिष्ठ अधिवक्ता से ऐसी निराधार याचिका की उम्मीद नहीं की जा सकती। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई गई एक लाख के जुर्माने को भी बरकरार रखा गया है। साथ ही, पांच लाख रुपए और जुर्माना लगाया।
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