जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। औषधीय महत्व वाली काली हल्दी की खेती अब कोरापुट जिले में किसानों के लिए नई उम्मीद बनकर उभर रही है। पारंपरिक हल्दी उत्पादन के लिए प्रसिद्ध यह इलाका अब पहली बार काली हल्दी की खेती में कदम रख चुका है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
 
जलवायु और उपजाऊ मिट्टी की अनुकूलता ने इसे इस दुर्लभ फसल के लिए आदर्श क्षेत्र बना दिया है। जिले में जहां करीब 3300 हेक्टेयर में सामान्य हल्दी की खेती हो रही है।  
 
वहीं, इस वर्ष से काली हल्दी का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर यह काला खजाना कैंसर, अस्थमा और श्वसन रोगों के लिए रामबाण उपचार माना जा रहा है।  
कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि रोकने वाला करक्यूमिन  
 
विशेषज्ञों के अनुसार, काली हल्दी में मौजूद करक्यूमिन तत्व कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने की क्षमता रखता है।इसमें प्रचुर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट और एंटीमाइक्रोबायल गुण पाए जाते हैं, जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करते हैं। इसी कारण यह अस्थमा, श्वसन रोग, पाचन गड़बड़ी और त्वचा रोगों से पीड़ित मरीजों के लिए बेहद उपयोगी है।  
20 महिला किसानों को दिए गए 50 किलो बीज  
 
दशमंतपुर ब्लॉक के आड़मंडा क्षेत्र में आइटीडीए की ओर से 20 महिला किसानों को 50 किलो काली हल्दी बीज वितरित किए गए। जैविक पद्धति अपनाते हुए जून महीने में रोपाई की गई, जो अब खेतों में मजबूत फसल का रूप ले चुकी है।मार्च 2026 से उत्पादन की उम्मीद जताई जा रही है।  
फ़ार्मा कंपनियों की बढ़ी दिलचस्पी  
 
काली हल्दी की संभावनाएं देख कुछ बड़ी फ़ार्मास्युटिकल कंपनियां किसानों से संपर्क कर इसकी गुणवत्ता की जांच कर चुकी हैं। जहां सामान्य हल्दी 100 से 200 रुपये प्रति किलो बिकती है, वहीं काली हल्दी का बाज़ार भाव 1200 से 2000 रुपये प्रति किलो तक पहुंच चुका है। सूखी काली हल्दी ई-मार्केट जैसे एमेजन पर भी उपलब्ध है।  
आइटीडीए की योजना: आय बढ़ेगी, पहचान बनेगी  
 
आइटीडीए परियोजना प्रशासक स्नेहाप्रभा माझी ने बताया कि यह खेती अभी पायलट आधार पर शुरू की गई है।यदि परिणाम आशानुरूप रहे, तो आने वाले वर्षों में इसे बड़े स्तर पर विस्तारित किया जाएगा। |