प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर। (जागरण)
जागरण संवाददाता, गोपालगंज। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इस बार गोपालगंज की सियासत में भावनाओं का ज्वार और समीकरणों का तूफान दोनों साथ उमड़ रहे हैं।
जिले की छह सीटों पर एनडीए और महागठबंधन से टिकट कटने की टीस ने अब चुनावी फिजा बदल दी है। बैकुंठपुर, बरौली और गोपालगंज सदर सीट से बागियों की एंट्री ने सियासी तापमान बढ़ा दिया है।
गोपालगंज की वर्तमान विधायक कुसुम देवी ने भाजपा से टिकट न मिलने पर भावुक होकर निर्दलीय मैदान में उतर चुकी है। सदर सीट से ही भाजपा के बागी अनूप लाल श्रीवास्तव ने भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
बरौली में भी वही दृश्य रहा। यहां के वर्तमान विधायक व पूर्व मंत्री रामप्रवेश राय ने भी अपने पुत्र राकेश कुमार सिंह के साथ नम आंखों में विद्रोह का इजहार किया और निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए अपना नामांकन पर्चा दाखिल कर दिया।
नामांकन के दौरान पिता-पुत्र भावनाओं में बहकर आंसू बहाने लगे। बगावत की यह लहर यहीं नहीं थमी, गोपालगंज के पूर्व विधायक व राजद नेता रेयाजुल हक राजू ने पार्टी से टिकट नहीं मिलने की आह में इंटरनेट मीडिया पर लाइव आकर फफक पड़े। उन्होंने आंखों से आंसू छलकाते हुए अपने समर्थकों से एकजुट होकर मदद करने की अपील की।
वे बरौली में राजद से बागी होकर अब बसपा के टिकट पर मैदान में हैं तो वहीं, बैकुंठपुर से राजद के बागी प्रदीप कुमार यादव भी बसपा प्रत्याशी बनकर चुनावी समीकरण बदलने को तैयार हैं। नामांकन यात्रा पर निकले प्रदीप कुमार यादव ने भी दिघवा दुबौली में पूर्व विधायक देवदत्त प्रसाद की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हुए रो पड़े।
भाजपा के बागी भी पीछे नहीं हैं। बैकुंठपुर से भाजपा के सक्रिय सिपाही रहे पूर्व डीआईजी रामनारायण सिंह अब नए बैनर के साथ चुनावी ताल ठोक रहे। वे राष्ट्रवादी जनलोक पार्टी (सत्य) के बैनर तले अपनी किस्मत आजमाएंगे।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि एनडीए समर्थित जदयू के टिकट पर बरौली से ताल ठोक चुके मंजीत सिंह ने भी नामांकन यात्रा के दौरान अपने आंसुओं को नहीं रोक पाए। समर्थकों के साथ वे भाऊक होकर नामांकन के लिए देवापुर से गोपालगंज के लिए निकल पड़े।
चुप्पी में छिपा इशारा, आंसुओं ने खोला सियासी पिटारा
टिकट से वंचित नेताओं के तेवर ने पूरी फिजा पलट दी है। सियासत की बिसात भांपने वालों का कहना है कि इन बागी नेताओं की सक्रियता वोट बंटवारे की धार तेज कर सकती है और प्रमुख प्रत्याशियों की रणनीतियों में हलचल मचा सकती है। इन बागियों की भूमिका से वोटों का गणित गड़बड़ा सकता है।
सत्ता समीकरणों के पारखी मान रहे हैं कि इस बार की बगावत ने सत्ता की सतरंज पर सारे मोहरे हिला दिए हैं। बागी चेहरों की चालें और जनता की खामोशी, दोनों ही इस चुनाव के सबसे रहस्यमयी किरदार हैं। मतदाता इस बार बोल नहीं रहे, बस देख रहे हैं, और यही खामोशी किसी के लिए जीत का सेहरा बन सकती है, तो किसी के लिए हार का सबब।
अब देखना यह है कि गोपालगंज की धरती पर बगावत की यह आग किसका सियासी घर जलाएगी और किसे नई पहचान दिलाएगी। |