जागरण संवाददाता, लखनऊ। लखनऊ में प्रवेश के साथ ही प्रदूषित होने वाली गोमती नदी जीवन रेखा है। 320 एमएलडी कच्चा पानी गोमती नदी से लेकर ही शहर की 20 लाख आबादी को पेयजल की सप्लाई की जाती है। इसके लिए गोमती बैराज के पास पानी के बहाव को रोका जाता है, जिससे गऊघाट के पास पानी का लेवल बना रहे। इसमें 120 एमएलडी पानी बालागंज जलकल को और 200 एमएलडी ऐशबाग जलकल को दिया जाता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
लखनऊ में 101 किमी क्षेत्र में गोमती बहती है और उसमें 30 किमी शहरी क्षेत्र आता है। गोमती में 39 नाले गिरते हैं और 13 तो बिना ट्रीटमेंट या आंशिक ट्रीटमेंट के गिरते हैं। 2010 से 2025 तक गोमती को स्वच्छ और निर्मल करने में करीब 2,500 करोड़ रुपये खर्च किए गए, लेकिन गोमती का पानी काला ही बना रहा।
घुलित आक्सीजन की कमी से कई बार मछलियों को भी जान गंवानी पड़ी। गोमती की इस बदहाली के लिए वे सभी विभाग दोषी हैं, जिन पर नदी को साफ करने की जिम्मेदारी है।
बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के प्रमुख प्रो.वेंकटेश दत्ता और गोमती टास्क फोर्स के कंपनी कमांडर मेजर केएस नागी के नेतृत्व में गोमती में गिरने वाले नालों का सर्वेक्षण किया गया। हैदर कैनाल, कुकरैल नाला, घसियारी मंडी नाले में पाया कूड़ा-कचरे के साथ सीवेज भी सीधे गोमती में पहुंच रहा है।
नालों पर पंप काम नहीं कर रहे और न ही सीवेज पंपिंग स्टेशन से सीवेज एसटीपी को भेजा जा रहा था। वर्ष 2011 में 500 करोड़ से अधिक धनराशि खर्च कर भरवारा में 345 एमएलडी और दौलतगंज में 56 एमएलडी का एसटीपी बनाया गया।
यही नहीं, सीवेज लाइन डालने के लिए शहर को खोद डाला। अब तक करीब 2,500 करोड़ खर्च किए गए, लेकन सीवेज अब भी गोमती में ही गिर रहा है। गोमती में गिरने वाले बरसाती नालों को सीवर निस्तारण का माध्यम बना दिया। नगर निगम नदी किनारे कहीं-कहीं नदी की कोख में कूड़ा डालता रहा है। घैला में कूड़ा बारिश में बहकर सीधे गोमती में आता है। |