अजय जायसवाल, लखनऊ। दो दशक बाद वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव में बहुमत की सरकार बनाने के लिए जमीन तैयार कर रही बसपा प्रमुख मायावती गुरुवार को अपनी ताकत दिखाएंगी। बसपा के संस्थापक कांशीराम के 19वें परिनिर्वाण दिवस पर राजधानी में आयोजित प्रदेशव्यापी श्रद्धांजलि कार्यक्रम में शक्ति प्रदर्शन के सहारे संगठन में नये उत्साह का संचार करने की कोशिश होगी। बहनजी ‘अपनों’ को वर्ष 2007 की तरह अगले विधानसभा चुनाव में भी बसपा की सरकार बनाने का संकल्प दिलाएंगी। आयोजन में प्रदेशभर से पांच लाख से ज्यादा के जुटने का दावा किया जा रहा है।
वर्ष 1984 में कांशीराम द्वारा बनाई गई बहुजन समाज पार्टी का कभी वंचित-शोषित समाज पर एकछत्र राज रहा है, लेकिन वर्ष 2012 में सत्ता से बाहर होने के बाद से पार्टी को चुनाव दर चुनाव झटका ही लग रहा है। लोकसभा से लेकर विधानसभा तक के चुनाव में ‘हाथी’ के चारों खाने चित होने से बसपा के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराता दिख रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
ऐसे में कांशीराम की पुण्यतिथि पर लाखों की भीड़ जुटाकर मायावती विरोधियों के बसपा के कमजोर होने के आरोपों का जवाब देना चाहती हैं। अपने नेताओं-कार्यकर्ताओं में नया उत्साह जगाने के साथ ही भीड़ से ताकत दिखाकर बसपा प्रमुख की कोशिश होगी कि पंचायत चुनाव व उसके बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी का पहले से बेहतर प्रदर्शन हो।
लखनऊ में बने कांशीराम के स्मारक स्थल पर राज्य स्तरीय श्रद्धांजलि कार्यक्रम में पार्टी के राष्ट्रीय स्तर तक के पदाधिकारियों के साथ ही प्रदेश की 403 विधानसभा सीट के 1.62 लाख से अधिक बूथ में से प्रत्येक से पांच-छह लोगों को लाने का लक्ष्य रखा गया है।
चूंकि श्रद्धांजलि कार्यक्रम में मायावती के सुबह नौ बजे ही पहुंचने का है इसलिए बुधवार रात से ही बड़ी संख्या में लोगों का कार्यक्रम स्थल के साथ ही रमाबाई आंबेडकर मैदान में पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया।
कांशीराम को श्रद्धा-सुमन अर्पित करने के साथ ही मायावती अपने संबोधन में विपक्ष पर हमला बोलते हुए बहुजन समाज को सपा व कांग्रेस आदि पार्टियों से सावधान तो करेंगी ही, यह भी बताएंगी कि सपा ने ही कांशीराम के जीते-जी दगा करके उनके मूवमेंट को यूपी में कमजोर करने की कोशिशें कीं। अब वोटों के स्वार्थ की खातिर दोनों पार्टियां कांशीराम जी को स्मरण करने का विशुद्ध दिखावा कर रही हैं। ऐसी जातिवादी व संकीर्ण सोच वाली सपा, कांग्रेस आदि पार्टियों से लोग जरूर सावधान रहें।
वर्ष 2007 में थे 206 विधायक, अब सिर्फ एक
वर्ष 2007 में पहली बार ‘दलित-ब्राह्मण’ सोशल इंजीनियरिंग के सहारे 403 में से 206 विधानसभा सीटें व 30.43 प्रतिशत वोट हासिल करने वाली बसपा के इस समय सिर्फ एक विधायक है। न कोई सासंद है और न ही विधान परिषद में एक भी सदस्य है। वर्ष 2012 में सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला फेल होने से सूबे की सत्ता गंवाने के बाद वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में तो पार्टी का खाता तक नहीं खुला था।
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी ‘दलित-मुस्लिम’ फार्मूला फेल रहा। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा से हाथ मिलाने पर पार्टी के 10 सांसद चुने गए, लेकिन वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का एक विधायक ही जीता। दलित वोटों की मजबूत दीवार दरकने से पार्टी का जनाधार नौ प्रतिशत से कहीं अधिक खिसक गया।
पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में मायावती ने ‘दलित-मुस्लिम’ फार्मूले पर बड़ा दांव लगाया, लेकिन न वंचित साथ आया, न मुस्लिम। पार्टी न केवल शून्य पर सिमट गई बल्कि 10 प्रतिशत और जनाधार खिसक गया। गर्त में जाती पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने के लिए मायावती, संगठन में नए प्रयोग करने के साथ ही अपने भतीजे आकाश आनंद पर दांव जरूर लगाया लेकिन अब तक वह भी कोई कमाल नहीं कर सके हैं।
मायावती ने लाखों जुटाकर पहले भी दिखाई ताकत
मायावती पहले भी राजधानी में लाखों को जुटाकर विरोधियों को बसपा की ताकत दिखा चुकी हैं। मुख्यमंत्री रहते 15 जनवरी 2009 को मायावती के जन्मदिन के अवसर पर राजधानी में हुए कार्यक्रम में अब तक सर्वाधिक भीड़ जुटने का दावा किया जाता रहा है। मायावती के जन्मदिन पर 15 जनवरी 2014 को लोकसभा चुनाव से पहले भी पार्टी का राज्य स्तरीय आयोजन किया गया था। विधानसभा चुनाव से पहले नौ अक्टूबर 2021 को कांशीराम की पुण्यतिथि पर भी प्रदेशभर से राजधानी में कार्यकर्ता जुटाए गए थे। |