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आयरलैंड में भारत के राजदूत ने दी पंडित छन्नूलाल मिश्र को दी श्रद्धांजलि, सुनाया अनोखा अनुभव

Chikheang 2025-10-8 23:36:33 views 994

  आयरलैंड में भारत के राजदूत अखिलेश मिश्र स्वर्गीय पंडित छन्नूलाल मिश्र के साथ।





जागरण संवाददाता, वाराणसी। आयरलैंड में भारत के राजदूत अखिलेश मिश्र ने स्वर्गीय पंडित छन्नूलाल मिश्र को श्रद्धांजलि अर्पित की है। उन्होंने एक पत्र के माध्यम से लिखा कि उनका पंडित जी से केवल एक बार साक्षात्कार हुआ था, जब वे 2019 में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के महानिदेशक के रूप में वाराणसी यात्रा पर थे। उस समय पंडित जी ने भारतीय संगीत और संस्कृति की सेवा के लिए उनके प्रति आभार व्यक्त किया था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें



पंडित छन्नूलाल मिश्र जी के आवास पर उनकी अर्धांगिनी रीति के साथ, उनके बाल्यकाल के मित्र ललित कुमार मालवीय और उनकी पत्नी भी उपस्थित थे। बिना किसी पूर्व निर्धारित समय के, पंडित जी ने सभी अतिथियों का स्वागत अत्यंत सहजता और आत्मीयता से किया। उन्होंने अपने पारिवारिक अक्षय पत्र से सभी के लिए बनारसी कचौड़ी और गुलाब जामुन भी प्रस्तुत किए। जब पंडित जी से कुछ सुनने की इच्छा व्यक्त की गई, तो उन्होंने कहा, “अरे, खाना खा लो या गाना, दोनों ही उचित समय और स्थिति में श्रद्धा पूर्वक होना चाहिए।“



इस बातचीत में पंडित जी ने अपनी अद्भुत संगीत साधना और सांस्कृतिक ज्ञान के बारे में चर्चा की। उन्होंने कबीर, तुलसी और अन्य महान साहित्यकारों की रचनाओं पर भी प्रकाश डाला। इस चर्चा में लगभग डेढ़ घंटे कैसे बीत गए, इसका पता ही नहीं चला। पंडित जी ने अपने मधुर स्वर में रामचरितमानस के कई प्रसिद्ध दोहे और चौपाइयाँ सुनाईं, जो आज भी उनके अंतःकरण में गूंजती हैं।

पंडित छन्नूलाल मिश्र जी की गायकी के पीछे उनकी दर्शनिकता और लोक साहित्य का गहरा ज्ञान था। उन्होंने संगीत को शास्त्रीय और लोक दोनों दृष्टिकोण से देखा। उनका मानना था कि भारतीय पारंपरिक संस्कृति में सभी प्रकार के सृजनात्मक प्रयास एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि गायन केवल कंठ और मुक्तक तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके चार स्तर होते हैं: परा, पश्यंति, मध्यमा और वैखरी।



पंडित जी का मानना था कि भारतीय संगीत की विविधता में भेद करना अनुचित है। जब वे गाते थे, चाहे वह अवधि, हिंदी, भोजपुरी, ब्रज या संस्कृत में हो, वे सभी को एक रस और एक भाव में समाहित कर देते थे। उनका संगीत केवल एक कला नहीं, बल्कि भक्ति का एक माध्यम था।

पंडित जी ने यह भी कहा कि जन्म और मृत्यु के बीच का संबंध अटूट होता है, लेकिन सत्य साधकों और भक्तों को इस नश्वरता का भय नहीं होता। जैसे जल की बूँद महासागर में मिलकर विशालता प्राप्त करती है, वैसे ही एक भक्ति साधक भी अपने अस्तित्व को त्यागकर अनंत में विलीन हो जाता है।



पंडित छन्नूलाल मिश्र जी की यात्रा और उनके संगीत ने भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया। उन्होंने अपने जीवन में अनेक विधाओं को अपनाया और समाज के कल्याण के लिए अपने ज्ञान का उपयोग किया। उनकी गायकी में न केवल संगीत की मिठास थी, बल्कि उसमें गहरी सोच और भावनाएँ भी समाहित थीं।

उनकी विदाई ने भारतीय संगीत जगत को एक अपूरणीय क्षति दी है। पंडित जी का योगदान हमेशा याद रखा जाएगा। उनके संगीत ने न केवल भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया, बल्कि उन्होंने समाज में एक नई चेतना भी जागृत की।



पंडित छन्नूलाल मिश्र जी का जीवन और उनकी कला हमें यह सिखाती है कि संगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव है। उनके द्वारा गाए गए भक्ति गीत और रचनाएँ आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं।

उनकी स्मृति में आयोजित कार्यक्रमों में उनकी रचनाओं का गायन किया जाएगा, ताकि नई पीढ़ी उनके संगीत और विचारों से प्रेरित हो सके। पंडित जी का जीवन एक प्रेरणा है, जो हमें सिखाता है कि कला और संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन करना हमारी जिम्मेदारी है।



पंडित छन्नूलाल मिश्र जी की अद्वितीयता और उनकी संगीत साधना को हमेशा याद रखा जाएगा। उनका योगदान भारतीय संगीत और संस्कृति के इतिहास में अमिट रहेगा। उनकी विदाई ने हमें यह सोचने पर मजबूर किया है कि हमें अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संजोकर रखना चाहिए और उसे आगे बढ़ाना चाहिए।

उनकी आत्मा को शांति मिले और उनके संगीत की गूंज सदैव हमारे साथ रहे। पंडित जी की याद में हम सभी को उनके विचारों और संगीत को आगे बढ़ाने का संकल्प लेना चाहिए।



इस प्रकार, पंडित छन्नूलाल मिश्र जी का जीवन और उनकी कला हमें यह सिखाती है कि संगीत केवल एक कला नहीं, बल्कि यह जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

बूंद समाना समुंद में जानत है सब कोई।

समुद्र समाना बूंद में बूझे व‍िरला कोई।।
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