आंखें नम कर देगी रजनी की कहानी, जन्मदिन पर छलका इंसानी ममता का सागर  
 
  
 
  
 
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। मंगलवार को दलमा की पहाड़ियों ने एक ऐसा उत्सव देखा, जहां जंगल की एक शहजादी के लिए इंसानी बस्तियों से चलकर प्यार आया था। हवा में बच्चों की खिलखिलाहट घुली थी और हर चेहरे पर वात्सल्य का नूर था। यह जश्न था दलमा की आत्मा में बस चुकी, सबकी प्यारी हथिनी \“रजनी\“ का, जो आज अपने जीवन का 16वां बसंत देख रही थी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
 
जब तालियों की गड़गड़ाहट के बीच रजनी ने अपनी लंबी सूंड को शाही अंदाज में उठाकर धीरे से केक को छुआ, तो लगा मानो उसने खामोशी से सबको अपना आशीर्वाद दे दिया हो।  
 
  
खुशियों के इंद्रधनुषी रंग में सराबोर माहौल  
 
माकुलाकोचा का परिसर किसी मेले से कम न था। आसपास के गांवों के बच्चे अपनी सबसे प्यारी दोस्त के जन्मदिन पर ऐसे चहक रहे थे, मानो घर में ही कोई उत्सव हो। जब 16 पाउंड का केक रजनी के सामने रखा गया, तो उसकी गहरी, समझदार आंखों में एक कौतुक भरी चमक थी। एक पल को उसने सब पर नजर दौड़ाई और फिर सूंड हिलाकर जैसे शुक्रिया अदा किया।  
 
विधायक सबिता महतो और डीएफओ सबा आलम ने जैसे ही केक काटा, बच्चों की किलकारियों से जंगल गूंज उठा। इसके बाद शुरू हुआ रजनी के लिए दावत का सिलसिला।  
 
  
 
अमृत जैसे मीठे केले, रस से भरे गन्ने के टुकड़े और ठंडी-ठंडी लौकी की दावत जब उसे दी गई, तो वह एक बच्चे की तरह मग्न होकर खाने लगी। यह दृश्य देख हर किसी का हृदय स्नेह से भर गया। लोग उसे प्यार से निहार रहे थे और रजनी इंसानी दुलार में भीगी, अपनी ही धुन में मस्त थी।  
जब मौत के जबड़े से लौटी थी जिंदगी  
 
आज खुशियों के इस इंद्रधनुष के पीछे अतीत के कुछ स्याह पन्ने भी हैं। डीएफओ सबा आलम उस भयावह दिन को याद करते हुए भावुक हो जाते हैं, जब 13 साल पहले नियति का क्रूर खेल इस नन्ही हथिनी को झुंड से अलग कर मौत के मुहाने पर ले आया था।  
 
  
 
मरणासन्न और बेबस पड़ी इस बच्ची को वन विभाग ने मौत के जबड़े से छीनकर नया जीवन दिया। ममता की छांव में उसका इलाज हुआ, उसे \“रजनी\“ का खूबसूरत नाम मिला और वह दलमा परिवार का एक अटूट हिस्सा बन गई। आज रजनी सिर्फ एक हथिनी नहीं, बल्कि इंसानी संवेदनाओं और जंगल के भरोसे का जीवंत प्रतीक है।  
 
वह दलमा की वह शान है, जिसके साथ सेल्फी लेने को पर्यटक लालायित रहते हैं। वह बच्चों की वह दोस्त है, जो बिना कुछ कहे सब समझ जाती है। उसका जन्मदिन मनाना केवल एक रस्म नहीं, बल्कि प्रकृति और मनुष्य के उस पवित्र रिश्ते का उत्सव है, जो सिखाता है कि प्रेम हर घाव भर सकता है। |