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लड़कियों को लेकर हुआ बड़ा बदलाव, देश में जन्म के समय लिंगानुपात में सकारात्मक सुधार

Chikheang 2025-10-7 07:06:34 views 568

  फोटो का इस्तेमाल प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है।





डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र सरकार की \“बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ\“ योजना के अब सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं। इस योजना के माध्यम से समाज में लड़कियों के प्रति दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण बदलाव आया है जिससे न केवल लिंगानुपात सुधरा है, बल्कि लड़कियों के शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी सकारात्मक प्रगति देखी गई है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

नमूना पंजीकरण प्रणाली रिपोर्ट 2023 के अनुसार, देश में जन्म के समय लिंगानुपात में सकारात्मक सुधार हुआ है जो 2016-18 के दौरान 819 से बढ़कर 2021-23 में 917 हो गया है।


क्या कहा केंद्रीय मंत्री ने?

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव एवं मिशन निदेशक आराधना पटनायक ने कहा कि गर्भधारण पूर्व एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन निषेध) अधिनियम, 1994 को सुदृढ़ करने से जन्म के समय लिंगानुपात (एसआरबी) में सुधार हुआ है और वर्ष 2021-23 के दौरान प्रति 1,000 लड़कों पर 917 लड़कियां दर्ज की गईं। सोमवार को यहां आयोजित एक बैठक में उन्होंने पिछले एक दशक में एसआरबी में हुई प्रगति पर प्रकाश डाला।



उन्होंने कहा, \“\“देश ने जन्म के समय लिंग अनुपात में सकारात्मक सुधार दर्ज किया है। नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) रिपोर्ट 2023 के अनुसार, एसआरबी में 18 अंकों की वृद्धि हुई है - 2016-18 के दौरान प्रति 1,000 लड़कों पर 819 लड़कियों से 2021-23 में प्रति 1,000 लड़कों पर 917 लड़कियों तक। इस प्रकार 2021-23 की अवधि के लिए जन्म के समय राष्ट्रीय लिंग अनुपात प्रति 1,000 लड़कों पर 917 लड़कियां पर है, जो गर्भधारण पूर्व एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक (¨लग चयन निषेध) अधिनियम के सु²ढ़ कार्यान्वयन के माध्यम से हुई प्रगति को दर्शाता है।\“\“


लिंग भेदभाव पर क्या कहा?

आराधना पटनायक ने कहा कि यह अधिनियम केवल एक कानूनी साधन नहीं है, बल्कि लिंग-भेदभावपूर्ण लिंग चयन के विरुद्ध एक नैतिक और सामाजिक सुरक्षा भी है। उन्होंने यह भी कहा कि लड़कियों की प्रतिरक्षा प्रणाली जन्म से ही अधिक मजबूत होती है, इसलिए एक लड़की का जीवित रहना स्वाभाविक रूप से एक लड़के की तुलना में अधिक संभव है।

उन्होंने यह भी कहा, \“\“लिंग-भेदभावपूर्ण लिंग चयन के विरुद्ध कार्रवाई करने के बजाय हमें इस अधिनियम के रोकथाम संबंधी पहलू पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।\“\“


\“स्वस्थ बच्चे पर होना चाहिए ध्यान\“

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि समाज या व्यक्ति का ध्यान बच्चे के लिंग के बजाय एक स्वस्थ बच्चे के जन्म पर होना चाहिए। बैठक में उभरती चुनौतियों के मद्देनजर गर्भधारण पूर्व एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन निषेध) अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन को सुदृढ़ करने पर ध्यान केंद्रित किया गया। इसमें कमियों को दूर करने, अनुपालन सुनिश्चित करने और कानून के उद्देश्यों को बनाए रखने के लिए समन्वित प्रयासों पर भी जोर दिया गया।



इसके अलावा, इसमें नियमों के उल्लंघन और नई प्रौद्योगिकियों के दुरुपयोग के ज्वलंत मुद्दे पर भी प्रकाश डाला गया, तथा अधिनियम की भावना को बनाए रखने के लिए डिजिटल मध्यस्थों के साथ सक्रिय सहभागिता और मजबूत अनुपालन तंत्र की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया।

(न्यूज एजेंसी आईएएनएस के इनपुट के साथ)

यह भी पढ़ें- दिल्ली में पिछले चार सालों में लिंगानुपात घटा, घट रही है लड़कियों की संख्या
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