राष्ट्रपति का जमशेदपुर दौरा। (जागरण)
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। लौहनगरी जमशेदपुर के करनडीह स्थित दिशोम जाहेरथान की पवित्र धरा सोमवार को एक ऐतिहासिक और भावुक पल की साक्षी बनेगी।
देश की प्रथम नागरिक राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अपनी जड़ों की ओर लौटते हुए सखुआ (साल) कुंज की छांव में बसी इस देवस्थली में माथा टेकेंगी।
अवसर बेहद खास है, संताली लिपि \“ओल चिकी\“ का शताब्दी समारोह। राष्ट्रपति यहां प्रकृति शक्ति मरांग बुरु और जाहेर आयो की पारंपरिक पूजा कर अपनी माटी को नमन करेंगी। उनके स्वागत में सेंदरा की वीर रस से भरी धुन और मांदर-नगाड़े की थाप गूंजेगी, जो आदिवासियत के गौरव को नए शिखर पर ले जाएगी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जब दिशोम जाहेरथान की देहरी पर कदम रखेंगी, तो यह महज एक संवैधानिक दौरा नहीं, बल्कि हापड़म (पुरखों) के आशीर्वाद और अपनी संस्कृति के प्रति कृतज्ञता का एक महापर्व होगा। सखुआ के ऊंचे वृक्षों से छनकर आती धूप और मिट्टी की सौंधी महक के बीच राष्ट्रपति अपने कार्यक्रम की शुरुआत करेंगी।
सेंदरा की धुन: शौर्य का संगीत और अद्भुत स्वागत
राष्ट्रपति के आगमन पर जो स्वागत होगा, वह प्रोटोकॉल से परे, भावनाओं और परंपराओं का संगम होगा। संताली और हो समाज में सेंदरा (शिकार) केवल एक प्रथा नहीं, बल्कि साहस, अनुशासन और सामूहिक जीवन का प्रतीक है।
जैसे ही राष्ट्रपति का काफिला जाहेरथान पहुंचेगा, पारंपरिक वाद्ययंत्र तुमदा (मांदर) और तमाक (नगाड़ा) की गूंज से आसमान गूंज उठेगा। स्थानीय आदिवासी कलाकार सेंदरा सेरेंग (शिकार गीत) की धुन छेड़ेंगे।
यह संगीत सामान्य स्वागत गान नहीं है, इसमें जंगल की ललकार और वीरों का ओज समाहित है। वाद्ययंत्रों की तीव्र और लयबद्ध थाप, जो कभी जंगल में शिकारियों को एकजुट करती थी, आज देश के सर्वोच्च पद पर आसीन अपनी \“बेटी\“ के स्वागत में बजेगी। इस धुन के बीच राष्ट्रपति पूजा स्थल से मंच की ओर बढ़ेंगी, तो वह दृश्य रोमांचित करने वाला होगा।
जाहेरथान: जहां सरजोम की छांव में बसते हैं देवता
करनडीह का दिशोम जाहेरथान आदिवासियों का वेटिकन सरीखा पवित्र है। यहां ईंट-गारे का मंदिर नहीं, बल्कि सरजोम दारे (साल के वृक्ष) ही देवालय हैं। यह स्थल इस बात का प्रमाण है कि आदिवासी समाज प्रकृति का रक्षक है।
राष्ट्रपति मुर्मू यहां सबसे पहले मरांग बुरु (विशाल पर्वत देवता), जो शक्ति और संरक्षण के प्रतीक हैं, और जाहेर आयो (जाहेर एरा/ग्राम देवी), जो ममता और समृद्धि की देवी हैं, की आराधना करेंगी।
जाहेरथान की पूजा पद्धति पूर्णतः प्रकृतिवादी है। यहां नायके (पुजारी) द्वारा साल के पत्तों (सरजोम साकम) पर शुद्ध जल, अरवा चावल, सिंदूर और फूलों का अर्पण किया जाता है। राष्ट्रपति भी इसी सात्विक विधि से, बिना किसी आडंबर के, जल और फूल अर्पित कर मोंणे को-तुरुई को (पांच-छह लोक देवता) का आह्वान करेंगी।
यह पूजा समाज में सुख, शांति, अच्छी बारिश और महामारी से रक्षा के लिए की जाती है। राष्ट्रपति का यह नमन, प्रकृति और मानव के बीच के उस आदिम रिश्ते को पुनर्जीवित करेगा, जो आधुनिकता की दौड़ में कहीं खोता जा रहा है।
ओल चिकी के 100 साल: अस्मिता का उत्सव
पूजा-अर्चना के बाद राष्ट्रपति मुर्मू उस तपस्वी को श्रद्धांजलि देंगी, जिन्होंने संताली भाषा को अक्षर दिए। वे गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू की प्रतिमा पर माल्यार्पण करेंगी। वर्ष 2025 ओल चिकी लिपि के अस्तित्व में आने का 100वां साल है।
1925 में मयूरभंज की धरती पर रची गई इस लिपि ने करोड़ों आदिवासियों को अपनी भाषा में लिखने और पढ़ने का अधिकार दिया। इस ऐतिहासिक मौके पर राष्ट्रपति 12 ऐसी विभूतियों को सम्मानित करेंगी, जिन्होंने ओल चिकी और संताली साहित्य की मशाल को जलाए रखा है। यह सम्मान उस संघर्ष को सलाम है, जिसने भाषा को विलुप्त होने से बचाया।
साहित्य, सिनेमा और संस्कृति का महाकुंभ
जाहेरथान परिसर में आयोजित ट्राइबल बुक फेयर और इंडीजीनस शार्ट फिल्म फेस्टिवल ने इस आयोजन को एक बौद्धिक आयाम दे दिया है। देशभर से जुटे आदिवासी साहित्यकार, फिल्मकार और कलाकार अपनी-अपनी बोलियों- संताली, हो, मुंडारी, कुड़ुख—के साथ यहां उपस्थित हैं।
किताबों के स्टाल और फिल्मों का प्रदर्शन यह बता रहा है कि आदिवासी समाज अब केवल मौखिक परंपरा तक सीमित नहीं है, बल्कि वह विश्व पटल पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रहा है। राष्ट्रपति की उपस्थिति इस सांस्कृतिक नवजागरण को एक नई ऊर्जा देगी।
यह भी पढ़ें- Droupadi Murmu: तीन दिवसीय दौरे पर झारखंड पहुंचेंगी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, सोहराय पेंटिंग से सजाया गया राजभवन |