न दफ्तर, न कुर्सी और न कोई लग्जरी... पहली जॉब में रतन टाटा को मजदूरों संग मिला था ये काम; कैसे शुरू हुआ था करियर?

Chikheang 2025-12-28 11:56:35 views 169
  

न दफ्तर, न कुर्सी और न कोई लग्जरी... पहली जॉब में रतन टाटा को मजदूरों संग मिला था ये काम; कैसे शुरू हुआ था करियर?



Ratan Tata Birthday 2025: आज 28 दिसंबर है और आज मशहूर उद्योगपति रहे रतन टाटा का जन्म दिन है। रतन टाटा की पहचान ग्लोबल बिजनेस लीडर और शानदार व्यक्तित्व वाली रही। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन्होंने अपने करियर (Ratan Tata Career) की शुरुआत फावड़ा चलाने और चूना ढोने से की थी? जी हां, ये बात बहुत कम लोग ही जानते हैं। चलिए आज उनके जन्म दिन पर आपको बताते हैं रतन टाटा की पहली जॉब की वो कहानी, जिसने उन्हें कंपनी की असली ताकत समझाई। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पहली जॉब... मजदूर की तरह किया काम

दरअसल, साल 1962 में जब रतन टाटा ने टाटा स्टील जॉइन किया, तो उन्हें कोई खास पद या आरामदायक ऑफिस नहीं मिला। उनकी पहली पोस्टिंग जमशेदपुर प्लांट में हुई, जहां उन्हें मजदूरों के साथ खड़े होकर शॉप फ्लोर पर काम करना पड़ा। वहां वे फावड़ा चलाते थे, चूना ढोते थे और एक आम कर्मचारी की तरह पसीना बहाते थे। आज जिनके नाम पर अरबों डॉलर के सौदे होते हैं, उन्होंने अपने करियर की नींव एक मजदूर की तरह रखी थी।
रतन टाटा ने समझी कंपनी की असली ताकत

शॉप फ्लोर पर काम करते हुए रतन टाटा ने बहुत करीब से समझा कि किसी भी कंपनी की असली ताकत उसकी मशीनें नहीं, बल्कि वहां काम करने वाले लोग होते हैं। यही वजह रही कि आगे चलकर जब वे बड़े पद पर पहुंचे, तो कर्मचारियों की भलाई हमेशा उनकी पहली प्राथमिकता रही। कई बार कंपनी को नुकसान होने के बावजूद मजदूरों और कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाई गई।

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हालांकि उनका शुरुआती करियर आसान नहीं था। उन्हें NELCO और एम्प्रेस मिल्स जैसी बीमार कंपनियों की जिम्मेदारी दी गई। हालात इतने खराब थे कि इन कंपनियों को संभालना मुश्किल हो गया। इस दौरान उनकी काफी आलोचना हुई। कई लोगों ने यहां तक कहा कि उनमें लीडरशिप की कमी है। लेकिन रतन टाटा ने कभी हार नहीं मानी।
1981 में सौंपी गई टाटा इंडस्ट्रीज की कमान

साल 1981 में उन्हें टाटा इंडस्ट्रीज की कमान सौंपी गई और 1991 में वे पूरे टाटा समूह के चेयरमैन बने। यहीं से उनकी असली पहचान बनी। उन्होंने पुराने और गैर-जरूरी कारोबार से दूरी बनाई और आईटी, ऑटोमोबाइल और रिटेल जैसे भविष्य के सेक्टर पर फोकस किया।

उनके नेतृत्व में भारत की पहली स्वदेशी कार इंडिका बनी (ratan tata indica launch) और फिर सबसे सस्ती कार नैनो (ratan tata nano car story) का सपना देखा गया। भले ही नैनो बाजार में ज्यादा सफल न रही, लेकिन इसने दुनिया को दिखा दिया कि भारतीय इंजीनियरिंग किसी से कम नहीं है।

एक समय फावड़ा चलाने वाला यही इंसान बाद में टाटा समूह को 100 बिलियन डॉलर की कंपनी बनाने में सफल रहा। आज टाटा ग्रुप की मार्केट वैल्यू 445 बिलियन डॉलर से ज्यादा है। रतन टाटा की कहानी यही सिखाती है कि कोई भी काम छोटा नहीं होता। मेहनत, ईमानदारी और सोच बड़ी हो, तो इंसान किसी भी ऊंचाई तक पहुंच सकता है।

बता दें कि 9 अक्टूबर 2024 को रतन टाटा का निधन मुंबई के Breach Candy अस्पताल में हुआ था।
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