जबलपुर हाईकोर्ट (प्रतीकात्मक चित्र)
डिजिटल डेस्क, जबलपुर। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने एक अहम और संवेदनशील मामले में नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता की इच्छा को प्राथमिकता देते हुए उसे बच्चे को जन्म देने की अनुमति प्रदान की है। न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने स्पष्ट किया कि पीड़िता की सहमति के बिना गर्भपात का आदेश नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिए कि डिलीवरी से जुड़ा समस्त खर्च राज्य सरकार वहन करे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
कोर्ट के आदेशानुसार पीड़िता की डिलीवरी भोपाल स्थित हमीदिया अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सकों की निगरानी में कराई जाएगी, ताकि मां और नवजात की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
पीड़िता की उम्र 16 वर्ष 7 माह
मामला तब हाई कोर्ट पहुंचा जब संबंधित जिला न्यायालय ने नाबालिग पीड़िता के गर्भपात को लेकर मार्गदर्शन के लिए पत्र भेजा। इसके बाद कोर्ट ने पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट तलब की। रिपोर्ट में पीड़िता की उम्र 16 वर्ष 7 माह और गर्भावधि 29 सप्ताह 1 दिन बताई गई, जो प्रसव की वैधानिक सीमा के भीतर है। पीड़िता को गर्भपात और प्रसव से जुड़े सभी विकल्पों की जानकारी भी दी गई।
गर्भपात से इन्र, बयान को कोर्ट ने माना निर्णायक
पीड़िता ने अपने बयान में गर्भपात कराने से साफ इन्कार किया और कहा कि उसने अपनी इच्छा से शादी की है तथा बच्चे को जन्म देना चाहती है। हालांकि, पीड़िता के माता-पिता उसे साथ रखने के लिए तैयार नहीं हैं। कोर्ट ने इस बयान को रिकॉर्ड पर लेते हुए कहा कि पीड़िता की मर्जी सर्वोपरि है और उसकी इच्छा के विरुद्ध गर्भपात की अनुमति नहीं दी जा सकती।
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चाइल्ड वेलफेयर कमेटी को जिम्मेदारी
हाई कोर्ट ने चाइल्ड वेलफेयर कमेटी को निर्देश दिए हैं कि वह पीड़िता को बालिग होने तक अपने संरक्षण में रखे और नवजात बच्चे की सुरक्षा व देखभाल के लिए हर संभव कदम उठाए जाएं। |