बम निरोधक दस्ता। (फाइल)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आम आदमी और आंतरिक सुरक्षा से जुड़े इंतजामों को मजबूत करने की दिशा में अहम कदम उठाया गया है। राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के मौके पर बम निष्क्रिय करने वाले उपकरणों के लिए नया भारतीय मानक (आइएस 19445:2025) जारी किया गया है। इसकी मदद से रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, बाजार, धार्मिक स्थल एवं भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में मौजूद आम लोगों की सुरक्षा को अधिक मजबूत किया जा सकेगा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
मौजूदा दौर में बम एवं आईईडी का खतरा सिर्फ सीमावर्ती क्षेत्रों तक सीमित नहीं रहा। सार्वजनिक जगहों पर संदिग्ध वस्तु मिलने की घटनाएं बढ़ी हैं। ऐसे हालात में बम निरोधक दस्ता सबसे पहले मौके पर पहुंचता है और जिन उपकरणों का इस्तेमाल करता है, उन्हीं पर तय होता है कि खतरा टलेगा या नुकसान बढ़ेगा।
उपभोक्ता मामले विभाग की सचिव निधि खरे ने कहा कि अभी तक इन उपकरणों के लिए देश में कोई एक समान स्पष्ट मानक नहीं था। अलग-अलग एजेंसियां अलग गुणवत्ता वाले उपकरण इस्तेमाल करती थीं, जिनकी क्षमता हर बार एक जैसी नहीं होती थी। नया भारतीय मानक इसी कमी को दूर करता है। यह तय करता है कि बम निष्क्रिय करने में इस्तेमाल होने वाले उपकरण कैसे होने चाहिए और उनकी जांच किस तरह होगी।
बम को ढकने वाली चादर यानी ब्लैंकेट अब सिर्फ मोटी चादर नहीं होगी, बल्कि ऐसी खास सामग्री से बनी होगी जो विस्फोट की ताकत को रोक सके, छर्रों को बाहर उड़ने से बचाए और विस्फोट के असर को आसपास फैलने से पहले कमजोर कर दे। इसी तरह बम बास्केट के लिए भी नियम तय किए गए हैं। देखा जाएगा कि विस्फोट के झटके में बास्केट न टूटे। बास्केट का ढांचा ऐसा होना चाहिए कि विस्फोट की ताकत चारों ओर फैलने के बजाय ऊपर की ओर जाए, जिससे आसपास खड़े लोग सुरक्षित रहें।
मानक में छर्रों पर भी खास ध्यान दिया गया है, क्योंकि अधिकतर नुकसान छर्रों से ही होता है। अब तय किया जाएगा कि विस्फोट होने पर छर्रे कितनी दूरी तक जा सकते हैं और किस दायरे में खतरा रहेगा। उपकरण तभी मंजूर होंगे, जब वे छर्रों की दूरी और असर को तय सीमा में रोक पाने में सक्षम होंगे। इससे पुलिस और प्रशासन को यह समझने में आसानी होगी कि लोगों को कितनी दूर हटाना जरूरी है।
नए मानक का सबसे बड़ा फायदा बम निरोधक दस्ते और आम लोगों को मिलेगा। बम निरोधक कर्मी ज्यादा सुरक्षित होकर काम कर सकेंगे और उनकी जान पर खतरा कम होगा। मानक को तैयार करने में डीआरडीओ, पुलिस, सुरक्षा बल और अन्य विशेषज्ञ संस्थानों की भागीदारी है। इसलिए यह कागजों तक सीमित नहीं है, बल्कि जमीन पर काम करने वालों के अनुभव से निकला है। साथ ही इससे देश में बनने वाले सुरक्षा उपकरणों की गुणवत्ता भी सुधरेगी और कमजोर उपकरणों पर रोक लगेगी। |